Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 82
________________ अस्तित्व-अवक्तव्यनय, नास्तित्व-अवक्तव्यनय और अस्तित्व-नास्तित्व अवक्तव्यनय ७७ पर इन दोनों बातों के कहने में क्रम पड़ता है, अतः क्रम से ही बताया जा सकता है, एक साथ नहीं। एक साथ नहीं बताया जा सकता - बस इसी का नाम अवक्तव्यधर्म है। प्रश्न - एक साथ नहीं बताया जा सकता - यह तो वाणी की कमजोरी है, इसे आत्मा का धर्म कैसे माना जा सकता है ? उत्तर - भाई ! आत्मा के स्वभाव में ही यह विशेषता है कि वह वाणी द्वारा एक साथ व्यक्त नहीं किया जा सकता। आत्मा के इस स्वभाव का नाम ही अवक्तव्यस्वभाव या अवक्तव्यधर्म है। यह धर्म बताता है कि अनन्तधर्मों का अधिष्ठाता यह भगवान आत्मा वचनों से युगपत् नहीं बताया जा सकता है; पर ज्ञान द्वारा जाना जा सकता है। प्रश्न - अवक्तव्यनय से कहा नहीं जा सकता, पर अवक्तव्यनय से जाना तो जा सकता है ? उत्तर - भाई ! ऐसी बात नहीं है। अवक्तव्यनय से कहा भी जा सकता है और जाना भी जा सकता है; पर मात्र यही कहा जा सकता है कि भगवान आत्मा अवक्तव्य है और मात्र यही जाना जा सकता है कि वह अवक्तव्य है। तात्पर्य यह है कि अवक्तव्यनय से उसके अवक्तव्यधर्म को ही जाना जा सकता है; अनन्तधर्मों के अधिष्ठाता धर्मी आत्मा को जानने के लिए तो नयातीत होकर ही जानना होगा; क्योंकि वह तो श्रुतप्रमाणपूर्वक अनुभव से प्रमेय होता है - यह बात आरंभ में ही कही जा चुकी है। ___ अस्तित्व-अवक्तव्यधर्म का स्वरूप भी यही है कि आत्मा की अस्ति तो है, पर वह अस्तित्व के अतिरिक्त भी बहुत कुछ और भी है, उसमें नास्तित्वधर्म भी है, पर वह सब इस समय में कहा नहीं जा सकता। इसप्रकार वह अस्तित्वमय और अवक्तव्यरूप एक साथ है। अस्तित्वमय और अवक्तव्यरूप एक साथ होनेरूप भी एक धर्म आत्मा में है, जिसका नाम है अस्तित्व-अवक्तव्यधर्म। इस धर्म को जानने या कहनेवाला नय ही अस्तित्व-अवक्तव्यनय है।

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