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कर्मशक्ति और कर्तृत्वशक्ति
४१-४२. कर्मशक्ति और कर्तृत्वशक्ति प्राप्यमाणसिद्धरूपभावमयी कर्मशक्तिः। भवत्तारूपसिद्धरूपभावभावकत्वमयी कर्तृत्वशक्तिः।
तात्पर्य यह है कि यह भगवान आत्मा न तो पर का और न रागादि भावों का कर्ता है और न पर और रागादि भावों का कर्म ही है; इसीप्रकार उनका करण भी नहीं है, सम्प्रदान भी नहीं है, अपादान भी नहीं है और अधिकरण भी नहीं है। तात्पर्य यह है कि इस भगवान आत्मा का पर व रागादि के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी संबंध नहीं है।
इसीप्रकार ये परपदार्थ व विकारी भाव भी आत्मा के कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण नहीं हैं और न इनका आत्मा के साथ कोई संबंध ही है।
आत्मोन्मुखी निर्मल परिणमन के साथ आत्मा का उक्त कारकों रूप निर्विकल्प संबंध अवश्य है॥३९-४०॥
उक्त भावशक्ति और क्रियाशक्ति के प्रकरण में कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण संबंधी कारकों की चर्चा बार-बार आई है; अत: अब आगे उक्त षट्कारकों संबंधी छह शक्तियों की चर्चा की जा रही है और अन्त में इसका कोई संबंधी है भी या नहीं? ___ यदि है तो कौन है - इस बात का निर्णय करने के लिए संबंधशक्ति की चर्चा करेंगे।
४१वीं कर्मशक्ति और ४२वीं कर्तृत्वशक्ति को आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है -
कर्मशक्ति प्राप्यमाणसिद्धरूपभावमयी है और कर्तृत्वशक्ति होनेरूप और सिद्धरूप भाव के भावकत्वमयी है।
भगवान आत्मा में जीवत्वादि अनंत शक्तियों में एक कर्म नाम की शक्ति भी है और एक कर्तृत्व नाम की शक्ति भी है। इन शक्तियों के