Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 42
________________ तत्त्वशक्ति और अतत्त्वशक्ति ३७ २९-३०. तत्त्वशक्ति और अतत्त्वशक्ति तद्रूपभवनरूपा तत्त्वशक्ति: । अतद्रूपभवनरूपा अतत्त्वशक्तिः । में एकसाथ रहते हैं। विभिन्न लक्षणोंवाले अनंतगुणों को धारण करना अनंतधर्मत्वशक्ति का कार्य है और परस्पर विरुद्ध प्रतीत होनेवाले अनंत धर्मयुगलों को धारण करना विरुद्धधर्मत्वशक्ति का कार्य है । इस विरुद्धधर्मत्वशक्ति में मात्र यही बताया गया है कि इस भगवान आत्मा में न केवल विभिन्न लक्षणवाले गुण एकसाथ रहते हैं; अपितु यह भी स्पष्ट किया गया है कि परस्परविरुद्ध प्रतीत होनेवाले अनंत धर्म भी एकसाथ ही रहते हैं ||२८|| इसप्रकार विरुद्धधर्मत्वशक्ति के निरूपण के उपरान्त अब तत्त्वशक्ति और अतत्त्वशक्ति की चर्चा करते हैं - इन उनतीसवीं और तीसवीं तत्त्वशक्ति और अतत्त्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - तद्भवनरूप तत्त्वशक्ति और अतद्भवनरूप अतत्त्वशक्ति है। २५वीं स्वधर्मव्यापकत्वशक्ति में यह बताया गया था कि यह भगवान आत्मा अपने सभी धर्मों (गुणों) में व्याप्त है। उसके बाद २६वीं शक्ति में यह बताया गया कि जिन धर्मों में आत्मा व्याप्त है; उन धर्मों में कुछ धर्म साधारण, कुछ धर्म असाधारण और कुछ साधारणासाधारण हैं। फिर २७ वीं अनंतधर्मत्वशक्ति में यह बताया गया है कि वे साधारण, असाधारण और साधारणासाधारण धर्म अनंत हैं। उसके बाद २८ वीं विरुद्धधर्मत्वशक्ति में कहा गया है कि उन अनंत धर्मों में कुछ धर्म परस्पर विरुद्ध प्रतीत होते हैं। ऐसे परस्पर विरोधी धर्मों को धारण करने की शक्ति इस भगवान आत्मा में है, जिसका नाम है विरुद्धधर्मत्वशक्ति । इन विरुद्ध धर्मों में तत् और अतत् धर्मों की चर्चा करते हुए इन

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