Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 30
________________ त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति १६. त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति अन्यूनातिरिक्तस्वरूपनियतत्वरूपा त्यागोपादानशून्यत्वशक्तिः। इसप्रकार अकार्यकारणत्वशक्ति की चर्चा के उपरान्त अब परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति की चर्चा करते हैं - ___ इस पन्द्रहवीं परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति की परिभाषाआत्मख्याति में इसप्रकार दी गई है - ___परनिमित्तिक ज्ञेयाकारों के ग्रहण करने और स्वनिमित्तिक ज्ञानाकारों के ग्रहण कराने के स्वभावरूप परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति है। देखो, पहले अकार्यकारणत्वशक्ति में यह बताया गया था कि आत्मा न तो पर का कार्य है और न पर का कारण। अब इस परिणम्यपरिणामकत्वशक्ति में यह बताया जा रहा है कि पर का कार्य या कारण नहीं होने पर भी यह आत्मा पर को जानता है और पर के द्वारा जाना भी जाता है। न केवल पर को जानता है और पर के द्वारा जाना जाता है; अपितु स्वयं को भी जानता है और स्वयं के द्वारा जाना भी जाता है। इसप्रकार इस आत्मा का स्वभाव स्व और पर के जानने एवं स्व और पर के द्वारा जानने में आने का है। __ मैं स्वयं को जानूँ और पर को भी जानें; इसीप्रकार स्वयं के द्वारा जाना जाऊँ और पर के द्वारा भी जाना जाऊँ- इसप्रकार इसमें चार बिन्दु हो गये। __ पहला स्वयं को जानना, दूसरा पर को जानना, तीसरा स्वयं के द्वारा जानने में आना और चौथा पर के द्वारा जानने में आना । इन चारों प्रकार की योग्यता का नाम ही परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति है॥१५॥ परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति के उपरान्त अब त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति की चर्चा करते हैं -

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