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४७ शक्तियाँ और ४७ नय १५. परिणम्य-परिणामकत्वशक्ति - परात्मनिमित्तकज्ञेयज्ञानाकारग्रहणग्राहणस्वभावरूपा परिणम्यपरिणामकत्वशक्तिः। ___ द्रव्य और गुण तो अनादि-अनंत होते हैं; इसकारण वे कार्य ही नहीं हैं; अत: उनके संदर्भ में तो किसी परद्रव्य के कार्य होने का प्रश्न खड़ा नहीं होता। कार्य तो परिणमन को कहा जाता है, पर्याय को कहा जाता है। इस भगवान आत्मा का परिणमन भी किसी परद्रव्य का कार्य नहीं है।
तात्पर्य यह है कि आत्मा में होनेवाला परिणमन पर के कारण नहीं होता। इसीप्रकार परद्रव्यों के द्रव्य-गुण भी त्रिकाली होने से कार्य नहीं होते; उनका परिणमन ही उनका कार्य है। उनके परिणमन का कारण यह आत्मा नहीं है; इसलिए यह किसी का कारण भी नहीं है।
इसप्रकार न तो यह भगवान आत्मा किसी परद्रव्य का कार्य है और न किसी परद्रव्य का कारण है। किसी परद्रव्य का कार्य या कारण न बने - इस भगवान आत्मा का ऐसा ही स्वभाव है। भगवान आत्मा के इस स्वभाव का नाम अकार्यकारणत्वशक्ति है।
यह शक्ति अनंत स्वाधीनता की सूचक और निर्भार रहने का अमोघ उपाय है। यदि एकबार यह बात चित्त की गहराई में उतर जाये तो पर में कुछ करने की अनंत आकुलता और पर मुझमें कुछ करन दें- इसप्रकार का भय उसी समय समाप्त हो सकता है। ___ यह भगवान आत्मा पूर्णतः स्वाधीन है; न तो इसे पर में कुछ करना है और न स्वयं के कार्य के लिए पर के भरोसे ही रहना है; क्योंकि इसमें अनन्त शक्तियों के साथ-साथ एक ऐसी भी शक्ति है कि जिसके कारण यह आत्मा न तो किसी का कार्य है और न किसी का कारण ही है। किसी का कार्य व किसी का कारण नहीं होना ही अकार्यकारणत्वशक्ति का स्वभाव है, कार्य है।।१४।।