Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 13
________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय उत्तर : विस्तार से स्पष्टीकरण तो इन शक्तियों के विशेष अनुशीलन में यथास्थान होगा; किन्तु संक्षेप में आशय यह है कि यदि एक शक्ति दूसरी शक्तिरूप हो तो फिर दोनों एक ही हो जायेंगी, उनमें परस्पर प्रदेशभेद तो है ही नहीं, भावभेद भी नहीं रहेगा। इसीप्रकार यदि एक शक्ति का रूप दूसरी शक्तियों में, उनकी निर्मल पर्यायों में तथा उनके आधारभूत द्रव्य में भी न मानें तो वस्तु का स्वरूप ही नहीं बनेगा। जीवत्वशक्ति का रूप यदि अन्य शक्तियों में न हो; उनकी निर्मल पर्यायों में न हो तथा उनके आधारभूत द्रव्य में भी न हो तो फिर शेष शक्तियाँ, उनकी निर्मल पर्यायें व आत्मद्रव्य अजीव हो जायेंगे। इसी प्रकार उनमें चितिशक्ति का रूप नहीं मानने पर आत्मद्रव्य की शक्तियों, उनकी निर्मल पर्यायें व उनका आधारभूत द्रव्य सभी जड़ हो जायेंगे; दृशि और ज्ञानशक्ति के रूप से इनकार करने पर सभी ज्ञान-दर्शन से रहित अचेतन हो जायेंगे। यहाँ तक कि प्रमेयत्वशक्ति के रूप को अस्वीकार करने पर सभी अप्रमेय हो जाने से जानने में ही नहीं आयेंगे। इसीप्रकार सभी शक्तियों के संदर्भ में घटित किया जा सकता है। आत्मा की अनंत शक्तियों में परस्पर प्रत्येक शक्ति का रूप अन्य शक्तियों में होने से सभी शक्तियाँ, उनकी निर्मल पर्यायें और उनका अभेद-अखण्ड पिण्ड भगवान आत्मा जीव है, चेतन है, ज्ञान-दर्शनमय है, प्रमेय है, त्यागोपादानशून्य है। इसप्रकार प्रत्येक शक्ति, उनकी निर्मल पर्यायें और उनका अभेदअखण्ड आत्मा अनंत शक्तिसंपन्न है, अनंत शक्तियों का संग्रहालय है और अनंत गुणों का गोदाम है। ___ अब प्रत्येक शक्ति का विवेचन प्रसंगप्राप्त है; जिसकी चर्चा आगे हो रही है।

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