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४७ शक्तियाँ और ४७ नय ५. सुखशक्ति अनाकुलत्वलक्षणा सुखशक्तिः। लक्षणवाली यह सुखशक्ति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए ४७ शक्तियों के निरूपण में जीवत्व, चिति, दृशि और ज्ञानशक्ति के तत्काल बाद इसकी चर्चा की गई है।
ज्ञान-दर्शनरूप चेतना तो भगवान आत्मा का लक्षण है; अतः उनकी चर्चा तो सर्वप्रथम होनी ही चाहिए थी। आत्मा को सच्चिदानन्द कहा जाता है। सत् में जीवत्व, चित् में चिति और ज्ञान-दर्शन में दृशि और ज्ञानशक्ति तथा आनन्द में सुखशक्ति आ जाती है।
इसप्रकार सच्चिदानन्द में आरंभ की पाँच शक्तियाँ आ जाती हैं। यद्यपि आत्मा में जो अनंत शक्तियाँ हैं, वे सब भगवान आत्मा में एकसाथ ही रहती हैं, उनमें आगे-पीछे का कोई क्रम नहीं है; तथापि कहने में तो क्रम पड़ता ही है क्योंकि सभी को एकसाथ कहना तो संभव है नहीं। __ ऐसी स्थिति में यह आवश्यक नहीं है कि किस शक्ति को पहले रखें
और किसको बाद में; फिर भी वस्तुस्वरूप आसानी से समझ में आ जाये' – इस दृष्टि से प्रस्तुतीकरण में आचार्यदेव एक क्रमिक विकास तो रखते ही हैं।
सुखशक्ति में श्रद्धाशक्ति और चारित्रशक्ति भीशामिलसमझनी चाहिए; क्योंकि ४७ शक्तियों में श्रद्धा और चारित्रशक्ति का नाम नहीं है। सुखशक्ति के निर्मल परिणमन में अर्थात् अतीन्द्रिय आनन्द की कणिका जगने में श्रद्धा और चारित्रगुण के निर्मल परिणमन का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
प्रश्न : इस सुखशक्ति के जानने से क्या लाभ है ? उत्तर : अनादि से यह आत्मा परपदार्थों में ही सुख जानता-मानता