Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 26
________________ प्रकाशशक्ति २१ १२. प्रकाशशक्ति स्वयंप्रकाशमानविशदस्वसंवित्तिमयी प्रकाशशक्तिः । द्वेष न हो - ऐसी वीतरागता भी तो चारित्रगुण में स्वच्छत्वशक्ति का रूप होने से ही हुई है। इस स्वच्छत्वशक्ति का स्वरूप ख्याल में आये तो कमाल हो जाये; पर के जानने से ज्ञान मलिन हो जायेगा, मेचक हो जायेगा, अनेकाकार हो जायेगा - इसप्रकार की आकुलता ही नहीं होगी । इसीकारण पर के जानने को मिथ्यात्व कहना भी सहज संभव न रहेगा ॥ ११ ॥ स्वच्छत्वशक्ति की चर्चा के उपरान्त अब प्रकाशशक्ति की चर्चा करते हैं - इस बारहवीं प्रकाशशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - जो स्वयंप्रकाशमान है, विशद, स्पष्ट और निर्मल स्वसंवेदनमय स्वानुभव से युक्त है; वह प्रकाशशक्ति है । ११ वीं स्वच्छत्वशक्ति में इस बात पर वजन दिया गया है कि यह आत्मा लोकालोक को जाने अथवा लोकालोक इसके ज्ञान में झलकें - - ऐसा इसका स्वभाव है। अब इस १२ वीं प्रकाशशक्ति में यह कहा जा रहा है कि न केवल लोकालोक को, अपितु स्वयं को स्पष्टरूप से जाने अर्थात् आत्मा का अनुभव करे - ऐसी भी एक शक्ति आत्मा में है, जिसका नाम है प्रकाशशक्ति । यहाँ एक प्रश्न संभव है कि लोकालोक में अपना आत्मा भी तो आ गया; अत: स्वच्छत्वशक्ति के कारण वह भी आत्मा के ज्ञानस्वभाव में, स्वच्छस्वभाव में झलक जायेगा, जान लिया जायेगा । उसके लिए अलग से इस प्रकाशशक्ति की क्या आवश्यकता है ? अरे भाई ! यह प्रकाशशक्ति स्वसंवेदनमयी है, स्वच्छत्वशक्ति स्वसंवेदनमयी नहीं है। परपदार्थ तो मात्र आत्मा में देखे जाने ही

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