Book Title: Jagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Author(s): Ratanchand Kochar
Publisher: Charitra Smarak Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી યશોવિજયજી જૈન ગ્રંથમાળા દાદાસાહેબ, ભાવનગર, ફોન : ૦૨૭૮-૨૪૨૫૩૨૨ ૩૦૦૪૮૪૬ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ जगद्गुरु श्री हीर विजय सूरिजी का पूजा स्तवनादि संग्रह . प्रकाशकश्री चारित्र स्मारक अन्यमाना। मु. बीरममाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ seksEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEESESSESSERENCE श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला नं.३.. युग-प्रधान 6658-858 जद्गुरु श्रीहीरविजय सरिजी का फूजा स्तवनादि संग्रह 1 093988893999999tMaas.59999SEASE संग्रहकर्ता रतनचन्द कोचर, जयपुर । - - सहायक जयपुर निवासी बाबू चांदमलजी चन्दनमलजी कोच कलकत्त " SSCGE SEEEEEEEEEEEmotNSESIRE SEEEEEEO प्रकाशक २८ चारित्र-स्मारक ग्रन्थमाला, मु० वीरमगाम, गुजरात] कीमत पूजा प्रेमियों को भेंट। - वी• सं० २४६६ क.चा०सं० २२ प्रथम संस्करण । वि. सं. १९९७ १००० ई.सं. १९४० जगत्गुरु जयन्ती । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीः ॥ जगत्गुरु श्री हीरविजयसूरिश्वरजी का स्तवन राग (टेर घड़ी धन श्राज की सब को, मुबारक हो २ ) सदा जय हो सदा जय हो, जगत्गुरुदेव की जय हो । कुराशा नाथी के नन्दन, महावीर मार्ग के मण्डन । विजय श्री हीर की जयहो ॥ जगत• ॥१॥ नमें प्रताप और अकबर, अजमखान देवड़ा जुक्कर । हरे दिल की जो संशयहो ॥ जगत्० ॥२॥ गुरु उपदेश को सुनकर लिखे फरमान में अकबर । महिना है की अभयहो || जगत्० ॥३॥ गुरुके गुण को गावे, धर्म भण्डार सुख पावे | मति इज्जत व विजय हो ॥ जगत्० ॥ ४॥ ऐसे गुरुदेव के क्रम में, झुकाऊँ शोर हरदम मैं । बनूं रणजीत निर्भय हो ॥ जगत्० ॥५॥ पुस्तक मिलने का पता - बाबू चांदमलजी चन्दनमलजी कोचर, नं० ३३, अपर चीत्तपुर-रोड, कलकत्ता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुग़ल सम्राट् प्रतिबोध वि० सं० १६४० WINNI शेठमानसिंहजी शेठ थानसिंहजी अजुल फझलजी उ० श्रीशान्तिचंद्रमणि उभी दिसलहर्षगणि। ऋषिश्रीजगमाल जी मुग़ल सम्राटू बादशाह अकबर जगद्गुरु भट्टारक श्री विजयहीर सूरिश्वरजी Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जगद्गुरु जी का संक्षिप्त परिचय । मुगल सम्राट अकबर को प्रतिबोध देकर अहिंसा परमो. धर्म का अनुरागी बनाने का मुख्य श्रेय जगद्गुरु श्रीहीरविजय सूरीश्वर जी को ही है। इसके अनेक एतिहासिक प्रमाण विद्यमान हैं। हम यहां पर थोड़े से एतिहासिक प्रमाणों के साथ, सूरीजी का संक्षिप्त परिचय भी देते हैं। जिस से सुज्ञ पाठक भली प्रकार समझ सकेंगे कि उस महापुरुष ने कितना पुरुषार्थ और प्रयत्न कर अपने समय के विद्यमान बादशाह सूबेदार, और अन्यान्य राजा महाराजाओं को धर्मोपदेश देकर जगदगुरु विरुद को सुशोभित किया था। सूरीजी महाराज का जन्म वि.सं. १५८३ में मार्गशीर्ष शुक्ला १ सोमवार को गुजरात के उत्तरी किनारे स्थित पालनपुर शहर में हुआथा। श्राप पोसवाल जाति के थे। आप के पिता का नाम कुराशाह और माता का नाम नाथीबाई था। आप का नाम हीरजी था। आप की बुद्धि-मेधा बहुत ही तेजस्वी थी, इतनी छोटी अवस्था में ही आपने पाँचो प्रतिक्रमण जीव बिचार, नवतत्व संग्रहणीसूत्र, योग शास्त्र, उपदेशमाला, दर्शन सीत्तरी चउशरणषयन्ना संग्रह इत्यादि धार्मिक ज्ञान प्राप्त किया था। हीरजी जब बारह वर्ष के हुए तब इनके माता पिता का स्वर्गवास हो गया। बाद में हीरजी को वैराग्य प्राप्त होने से १३ वर्ष की छोटी सी अवस्था में वि. सं. १५६६ में मार्गशिर्ष शुदी २ सोमवार को ८ व्यक्तियों के संग, गच्छाधिपति शासन सम्राट आचार्य श्री विजयं दाल सरिजो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) महाराज के पास पाटण शहर में दीक्षा स्वीकार की उस वक्त आपका नाम हीरहर्षमुनि रक्खा गया था। मुनिहीरहर्ष ने अल्प समय में ही अपने गुरूजी के पास से समग्र वाङ्गमय शास्त्र का अध्ययन किया, बाद में उसी समय महाराष्ट्र प्रांत की प्रसिद्ध नगरी देवगिरी में आप न्याय शास्त्र पढने के लिये गये। वहां अनेक तर्क शास्त्र, तर्क परिभाषा, मितभाषणी, शशधर मणिकण्ठ वरद दाजि, प्रशस्त पदभाष्य, वर्धभान, वर्धमानेदु, किरणावली,चिन्तामणि, प्रमुख ग्रन्थोंकाअध्ययन किया, न्याय शास्त्र के प्रकाण्ड एवं धुरीण विद्वान बन कर हीरहरेजी मरु देश में गुरूजी के पासआये। गुरुजी ने योग्यता देख कर वि. सं. १६०७ में नाडलाइ में पंडित पद, वि. सं. १६०८ में उपाध्याय पद, और वि. सं. १६१० में शिरोही में प्राचार्य पद दिया। प्राचार्य पद का उत्सव सुप्रसिद्ध राणपुर के मंदिर जी का निर्माता संघपति धरणशाहका वंशजऔर दूदाराजा का मंत्रीश्वर चांगा संघपति ने किया था। जिस दिन आप आचार्य पद से अलंकृत किये गये उसी दिन दूदा राजा ने राज्य में अहिंसा का पालन कराया था। वहां से आप पाटण पधारे और वहां के सूबेदार शेरखान के मंत्री समरथ भणसाली ने गच्छानुज्ञा का महोत्सव किया (जै. सा. सं. प.५३८) वि. सं. १६२१-२२ में वडाली में प्राचार्य श्री विजय दान सूरिजी का स्वर्गवास होने के बाद श्री हीरविजय सूरिजी तपागच्छ नायक एवं शासन सम्राट बने । वि. सं. १६२८ में श्रीविजयसेनसूरिजी को अहमदाबाद में प्राचार्यपद दिया, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और उसी साल में लोंकागच्छ के मेघजीऋषि ने ३० साधुओं के साथ में लोकागच्छ की दीक्षा का त्याग कर श्री हीरविजयसूरीश्वरजी के पास में संवेग दीक्षा स्वीकार की, सूरिजी ने उनका नाम मुनिउद्योत विजय जी रखा, उसी समय अकबरने गुजरातको पूरा जीत लिया था जिससे उनके सूबेदार के साथ आगरा से सेठ थानसिंह जी यहां आये थे और मेघजीकी संवेग दीताका उत्सव उन्होंने किया था। _ वि.सं. १६२८ से १६३८ के दशवर्ष के समय में सरिजी ने मुसलमान सूबेदारों के अनेक परिषह एवं उपसर्ग सहकर अपनी साधुता, सरलता, सजनता एवं उदार वीरता का काफी परिचय दिया। सुवर्ण को जितना भी तपाया जाय अपनी स्वरूपता को ही प्रकाशित करता है। उसी समय भारतवर्ष का सर्वेसर्वा शहेनशाह बादशाह अकबर था, उसने अपनी राजधानी देहली से उठाकर आगरा में स्थापित की और खुद आगरा से १८ मील दूर फतेहपुर सीकरी में रहता था, सम्राट ने फतेहपुर सीकरी के पास में १२ कोश का विशाल डाबरसरोवर वनाया था,। अकबर ने अपने विनोद एवं धर्म बोध के लिये दीनालाही नामक ( ईश्वर का धर्म ) धर्म वि० सं० १६३५ चलाया था और अपनी राज सभा में अनेक धर्म के पंडितों को निमन्त्रण देकर बुलाये थे। निरंतर विविध धर्म गोष्ठी हो रही थी, एक दिन बादशाह अकबर ने कहा "मेरे महामंडल में सर्व दर्शनों में प्रसिद्ध ऐसा कोई साधु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरुष है जो निष्पाप धर्म मार्ग का उपदेश करता हो ? सभा में से उत्तर दिया की जैनधर्म के श्रीहीविजय सूरि ऐसे ही हैं" (जै. सा, सं. ई. प ५४० ) बादशाह के कानों तक महाप्रतापी श्री हीरविजयसूरिजी का नाम पहुँच गया था। वहां एक बार चम्पाबाई (सेठ थानसिहजी की माता ) ने छै महीने के उपवास किये, उसका जलूस निकलाथा बादशाह ने पूछा यह जलूस किसका है, जावाब मिला कि एक बाई ने छै महीने के व्रत किये हैं, यह सुनकर बादशाह को आश्चर्य हुआ, उसने बाई को बुलाकर उससे सब हाल पूछा छै महिने का निराहार व्रत सुनकर बादशाह चोकना हो गया। आखिर चम्पा बाई को पूछा तुम किस की कृपा से यह महातप कर रही हो। चम्पा बाई ने कहा देव पार्श्वप्रभु और गुरु सूरिपुरंदर युग प्रधान भट्टारक श्री हीरविजयसूरिजी की कृपा से यह तप कर रही हूँ, बादशाह ने चम्पा बाई की तपश्चर्या की परीक्षा की और सुवर्ण का चूड़ा इनाम में दिया । इसी समय सूरिजी गुजरात में हैं ऐसा मालूम हुअा, बादशाह के दिल में सूरिजी महाराज के दर्शनों की उत्कट भावना जाग्रत हुई, और मोदी और कमाल नामक दो आदमियों को अपना फरमान लेकर उनको गुजरात मेजे। दोनों आदमी अहमदाबाद के सूबेदार की चिट्ठी लेकर जैनसंघ के श्रावकों के संग उसी समय सूरिजी महाराज गंधार-बंदर में विराजमान थे वहां गये। बादशाह का अाग्रह पूर्वक निमन्त्रण प्राप्त कर बादशाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) को प्रतिबोध देने के लिये सूरिजी ने गंधार-बंदर से बिहार किया, बिहार कर के जब आप “वडदलु" गांव आये तब स्वप्न में शासन देवी ने प्रत्यक्ष आकर कहा आप खुशी से वादशाह के पास जाइए महानलाभ एवं शासनप्रभावना होगी सूरिजी अनुक्रम से अहमदावाद प्राय; अहमदाबाद के सूबेदार सिताबस्वां ने सूरिजीमहाराज को मानपूर्वक अपने पास बुलाकर बहुतही सत्कार सम्मान किया सूरिजी ने इनको धर्मोपदेश दिया; वहां से विहार करते हुए आप अनेक सूबेदार, और राजानों को प्रतिवोधदेते हुए सरात्तर (सरोत्रा) पधारे; वहां के भिल्लराजा सहसार्जुन ने सूरिजो महाराज का बहुत आदर सत्कार किया, और सूरिजी महाराज के उपदेश से शराव, मांस और परस्त्री का त्याग किया साथ में अन्य भिलों ने भी त्याग किया, सूरिजी वहां से आबू की यात्रा करके शिरोही पधारे, शिरोही के देवडा राजा सुरत्राण ने सूरिजी का बहुमान पूर्वक प्रवेशोत्सव कराया; और राय सुरत्राण नेसह कुटुम्ब शराब, मांस आदि का परित्याग किया। ऐसे ही नागोर के सूबेदार को भी प्रतिबोध देकर; फलोधी तीर्थ की यात्रा करते.हुए सांगानेर आदि होकर वि०सं.१६४० के प्रासाद बदि १३ (गु० जेठ बर्बाद १३) फतेहपुरसीकरि पधारे।प्रथम मुलाकात सम्राट अकबर के मुख्य मन्त्री अबुलफजल से हुई, और बाद में सविनय पूर्वकसम्राट ने भीसूरिजी के दर्शन किये, प्रथम मुलाकात में ही बादशाह पर सूरिजी का अच्छा प्रभाव पड़ा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बादशाह ने प्रसन्न होकर सुरिजी महाराज को अपने पास रहा हुवा पुस्तक भण्डार अर्पण किया, बाद में सुरिजी चातुमास के लिये आगरा पधारे । वहां सूरिजी के उपदेश से चिन्तामणि पाश्च नाथजी का मन्दिर मानमलजी चोरडीया ने बनाया, और सूरिजी के करकमलों से चार्तुमास के बाद प्रतिष्ठा करवाई, चार्तुमास में पयूषण के दिनों में बादशाह से अहिंसा पलवाई चातुमास बाद सूरिजी शौरीपुर तीर्थकी यात्राकोपधारे, वहांभीप्रतिष्टा कराई, वहां से मथुरा पधारे वहां ५२७ स्तूपों को वंदना कर पुनः फतेहपुर सीकरी पधारे; सूरिजी के दर्शन कर बादशाह बहुतही प्रसन्न हुये । सूरिजी ने बादशाह को अहिंसा धर्म का तत्व समझाया, प्राणीमात्र का कल्याण कारी मार्ग दिखाया; बादशाह को अहिंसा धर्म के प्रति प्रेम उत्पन्न हुवा और पयूषणा पर्व के ८ दिन और अपनी तरफ से ४ दिन उसमें मिला कर १२ दिन समस्त भारत में अहिंसा पलवाई जाय इनका फरमान दिया; डाबर सरोवर में से मछलियों और अन्य पक्षीयों काशिकार बंद कराया; और भी कै एक दिन हिंसा बंद कराई। सूरिजी का अद्भुत त्याग उत्तम चारित्र महापांडित्वत्यशुद्ध ब्रह्मचर्य और श्रादर्शअहिंसा आदि गुणों से बादशाह सूरिजी पर बहुतहीप्रसन्न हुआ और सूरिजी को "जगदगुरुजी' का अपूर्व मान का बिरुद दिया। वि० सं०१६४१ इसी समय बादशाह ने केदीयों को छोड़ दिये पिंजरे में से पक्षीयों को मुक्त कर दिये । (जै. साः स..पू. ५४७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरिजी ने सेठ थानसिंहजी और राजमान्य जौहरी दुर्जनमल्ल कृत प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराई दोनों ने महान उत्सव किया और शान्तिचंदजी को उपाध्याय पद दिया गया वि० सं० १६४१ का चातुर्मासा सुरिजी ने फतेहपुर-सीकरी में किया वि० सं० १६४२ का अभिरामाबाद में और १६४३ का प्रागरा में चातुर्मास किया; जगद्गुरु जी ने पुनः २ बादशाह के पास जाकर जैन धर्म समझाया और बादशाह को जैन धर्म का अनुरागी बनाया; सम्राट अकबर को अहिंसा धर्म का और जैन धर्म का अनन्य अनुरागी बनाने का श्रेय श्रीहीरविजय सरिजी को ही है । आपके बाद आपके प्रशिष्य वर्ग ने और अन्य साधु समुह ने बादशाह को उपदेश दिया है। बादशाह ने उनका यथोचित सत्कार सम्मान भी किया है। किन्तु मुगल सम्राटों का दरबार जैन साधुनों के लिये खोलने का मान जगद्गुरूजी को ही है; और प्रथम के समर्थ उपदेशक को ही सम्राट अकबर को जैनधर्मका अनुरागी बनानेका मान मिल सकता है अन्य को नहीं। सम्राट के दरबार में सुरिजी का महत्व का स्थान था इसलिये अबुलफजल ने अपनी पाइनेअकबरी में अकबर के दरबार के विद्वानों का पांच विभाग किया है। उसके प्रथम विभाग में श्री हीरविजयसूरिजी का नाम है, और पांचवे विभाग में आपके शिष्यरत्न श्री विजसेनसुरिजी का और उ० श्री भानुचन्द्रजी का नाम है । जगदगुरुजी के सदुपदेश से अकबर के जीवन में जो परिवर्तन दुवा था । इनके लिये अल बदाउनी अपने ग्रंथ में लिख रहे हैं कि"बास तौर से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८) सम्राट अन्य संप्रदाय के विद्वानों से मुमुनियों ( श्रमण, जैन साधु) और ब्राह्मयों के साथ ज्यादा समय एकान्त में बैठकर बात चीत करता था", "इससे सम्राट ने इस्लाम धर्म मान्य पुनर्जन्म का सिद्धान्त को; कयामत का दिन और उस संबन्धी बातों को और अपने पेगंबर संबन्धी खयालों से श्रद्धा हटाली थी"। डो०वि०स्मिथ लिखते हैं कि जैन साधुओं ने निःसन्देह वर्षों तक अकबर को उपदेश दिया था। बादशाह के कार्यों पर इस उपदेश का बहुत प्रभाव पड़ा था। उन्होंने बादशाह से अपने सिद्धान्तों के अनुसार इतने आचरण कराये कि लोग यह समझने लग गये कि बादशाह जैनी होगया।" (अकबर के जैन उपदेशक ले० वि० स्मिथ) डा०स्मिथ महाशय "अकबर" नामक अपनी पुस्तक के पृष्ट १६६ में लिखते हैं कि “सन् १५६२ के बाद उसकी जोकृतियां हुई हैं, उनका कारण बहुत अंशों में उसका स्वीकार किया हुआ जैनधर्म ही था, अबुलफजल ने विद्वानों की जो सूची दी है उसमें उस समय के तीन महान समर्थ विद्वानों के नाम आये हैं । वह हीरविजयसूरि, विजयसेनसूरि और भानुचन्द्र उपाध्याय ये तीनों जैन गुरु या धर्माचार्य थे।" डा० स्मिथ की "अकबर" नाम की पुस्तक में एक माके की बात यह है कि उन्होंने उक्त पुस्तक के पृष्ट २६२ में "पिन हरो” ( Pinheiro ) नाम के पोर्तुगीज पादरी के पत्र के उस अंश को प्रकट किया है, जो ऊपर की बात को जाहिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करता है। यह पत्र उसने ता० ३ सितंबर सन् १५६५ ईस्वी के दिन लाहौर से लिखा था उसमें उसने लिखा है- He follows the sect the Jains ( Vertic) "अर्थात् अकवर जैन सिद्धान्तों का अनुयायी है" ऐसा लिखकर उसने कई जैन सिद्धान्त भी उसमें लिखे हैं। इस पत्र के लिखने का वही समय है कि जिस समय विजयसेनसूरिजी लाहौर में अकबर के पास थे। श्री जगद्गुरुजी के धर्मोपदेश के प्रताप से ही सम्राट अकबर के विचारों में जो परिवर्तन हुआ था, उन पर प्रकाश डालते हुए अबुलफजल 'प्राइने अकबरी में लिखते हैं “अकबर कहताथा कि मेरे लिये कितनी सुख की बात होती यदि मेरा शरीर इतना बड़ा होता कि मांसहारी लोग केवल मेरे शरीरही को खाकर संतुष्ट होते और दूसरे जीवों का भक्षण न करते। अथवा मेरे शरीर का एक अंश काट कर मांसाहारियों को खिला देने के बाद यदी वह अंश वापिस प्राप्त होजाता तो भी मैं बहुत प्रसन्न होता । मैं अपने शरीर द्वारा मांसाहारियों को तृप्त कर सकता" (पाइने अकबरी खंड ३ रा पृष्ट ३६५) . जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरिजी और आपके शिष्य प्रशिष्यों के ही उपदेश से सम्राट अकबर ने भारत में छै. महिना तक अहिंसा पलाई शत्रुजय श्रादि पाँच जैन तीयों के टेक्स माफ कर दिये; और यह सब तीर्थ जगद्गुरुजी को अर्पण किये, जजीया टेक्स माफ किया, गाय, भैस, बैल, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) आदि की हिंसा बन्द करवाई, मृत्यु प्राप्त का धन लेना बन्द कर दिया बादशाह ने शिकार खेलना और मांसाहार करना बन्द कर दिया, जैन तीर्थ, जैन मन्दिर हिन्दू तीर्थ और हिन्दू मन्दिरों की भी रक्षा कराई। पूज्य जगद् गुरूजी महाराज और आपके प्रतापी एवं विद्वान शिष्य प्रशिष्यों के उपदेश से सम्राट अकवर ने छै महिने तक भारत में अहिंसा पलवाई थी इनके दिन इस मुताबिक है । “पर्युषणा पर्व में बारह दिन, वर्षभरके सर्व रविवार, सोफियान दिन, ईद के दिन, संक्रान्ति की सब तिथिये, जिसमासमें सम्राट अकबरका जन्महुवाथा वहपूरामहीना, मिहिर के दिन, नवरोज के दिन, सम्राट अकबर के तीनों पुत्र के जन्म जिस जिस दिन में और जिस जिस महीने में हुवा था वह सब ( तीन ) महीने, रजब (मोहरंम) के दिन, इसी तरह कुल छे हिने और छ दिनों में अहिंसा पलवाई थी। (जै० सा० सं० इ० पृष्ट ५४६) धन्य है प्रतापी जगद् गुरू सूरिजी को श्रापके प्रताप से एक मुसलमान सम्राट ने अहिंसाधर्म का पालन एवं स्वीकार कर अपनी प्रात्मा का और समस्त भारत का कल्याण किया। ___ जैन ग्रंथकारों ने जगद्गुरु के उपदेश से सम्राट ने जो छै महिने अहिंसा पलवाई थी इनके उल्लेख किये हैं, किन्तु एक कट्टर मुस्लिम लेखक जो कि उसी समय सम्राट अकबर की सभा में विद्यमान था वह अलबदाउनी भी लिखता है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) सम्राट ने महीनों तक अहिंसा पलवाई थी अमुक महीने में किसी भी जीव का बध-हिंसा न करने का हुकम निकाला था देखिये इनके शब्द "In these days (991-996-1563 A. D.) new orders were given, The killing vi animals on certain days was forbidden, as on Sundays because this day iş sacred to the Sunduring the first 18 days of the month of Farwardin, the whole month of Abein (the month in which his Majesty was born) and several other days to please the Hindoos, This order was extended over the whole realm and capital punishment was inficeted on every one who acted against the command" Badaoni P. 321. भावार्थ "इन दिनों (ही. सं. ६६१-६६६-ईस. १५८३) में नये हुकम निकाले गये कितनेक दिन जैसे कि रविवार सूर्य का दिन होने से सर्व रविवार, फरवर दिन, महीने के शुरुअात के १८ दिन, अवेन मास कि जिसमें सम्राट अकबर का जन्म हुवा था वह सारा महीना, उन्हीं दिनों में हिन्दुओं को खुश करने के लिये समस्त भारत में सर्वथा जीव हिंसा का निषेध किया गया था, इस हुकम के विरुद्ध जाने वाले को सख्त सजा-गर्दन मारने की सजा दी जाती थी" इसमें जहां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ami Gyanbhandar-Umara, Surat Www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) हिन्दू शब्द लिखा है वहां जैन शब्द ही समझने का है क्योंकि जैनाचार्य-जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरीजी के उपदेश से ही सम्राट ने अहिंसा स्वीकार की थी, और ऊपर ही० सं० ६६१ लिखा है वह ६६६ चाहिये, । और प्राइनेअकबरी पृ० ३३३१ में लिखा है कि रविवार और तहेवार के दिनों में पशुओं की हिंसा न करने को हुकम निकाले गये थे। (जै० सा० सं० इ० प० ५४९-५५०) श्रीयुत् रामस्वामी ऐयंगर एम. ए. एल. टी. नामक एक अजैन विद्वान अकवर और जैनधर्म नामक लेख में लिखते हैं कि 'भानुचन्द्र महोपाध्याय थे, उन्होंने अकबर को सूर्य के सहस्त्र नाम सिखाये और ई. सन् १५६३ में अकबर से कई ऐसे फरमान लिखवाये जो जैन समाज के लिये बहुत ही उपयोगी थे। भानुचन्द्र के पश्चात (भानुचन्द्रजी भी लाहोर में ही थे तब ) विजयसेनसूरिजी को अकबर ने. लाहौर में आमंत्रण दिया। उन्होंने लाहौर में ३६३ विद्वान ब्राह्मणों को बाद में परास्त किया अकबर इससे बहुत संतुष्ट हुश्रा और उन्हें 'सवाई' की पदवी प्रदान की, उन्होंने भानुचन्द्रजी को वहीं उपाध्याय पद दिया। इस विधि के करने में ६०० रुपये व्यतीत हुये, यह सब खर्च अबुलफजल ने दियेथे। यह विश्वास किया जाता है कि भानुचन्द्रजी अकबर के अन्त समय तक उसके पास ही रहे थे। (अकबर जैनधर्म पृष्ट-१०) श्री जगदगुरु जी महाराज के उपदेश से सम्राट अकबर ने जो अहिंसा पलवाई थी इनके अनेक प्रमाण मिलते हैं जिसमें से हमने थोड़े प्रमाण उध्धृत किये हैं किन्तु उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) समय के खरतर गच्छ के प्रसिद्ध प्राचार्य श्रीजिनचन्द्र सूरिजी को मुलतान के लिये एक फरमान प्राप्त हुआ था इसमें भी लेख मिलता है कि "उन्हों (जिनचन्द्रसूरि) ने प्रार्थना की कि इस से पहिले हीरविजयसरि ने सेवा में उपस्थित होने का गौरव प्राप्त किया था और हर साल बारह दिन मांगे थे, जिनमें बादशाही मुलकों में कोई जीव मारा न जावे और कोई आदमी किसी पक्षी, मछली और उन जैसे जीवों को कष्ट न दे । उनकी प्रार्थना स्वीकार हो गई थी। अब मैं भी अाशा करता हूं कि एक सप्ताह का और वैसा ही हुक्म इस शुभचिन्तक के वास्ते हो जाय.” (युःप्राजिनचन्द्रसूरि पृ-२७८) ____ इन सब ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्ध है कि जगदगुरु श्री विजयहोरसूरीश्वर जी और उनके शिष्य परिवार ने सम्राट अकबरपर अहिंसा की अमिट छाप जमादी थी,ऐसे महाप्रतापी सूरि पुगवने ही सम्राट को प्रतिवोध दिया और अहिंसा की भागीरथी भारत में बहाई, सूरिजी ने अनेक नगरों में प्रतिष्ठायें कराई अनेक शिष्य बनाये आपकी आशा में २५०० साधु थे,१०८ पंडितथेऔर ७ उपाध्याय थे। आपमहातपस्वीथे आप ने अपने जीवन में जो मुख्य तपस्या की थी उस का उल्लेख इस प्रकार है १८० बेले, २२५ तेले २००० अांबील २००० निवी बीस स्थान की तपस्या बीस दफे ग्यारह महीने की प्रतिमा इनके अलावा सूरिमन्त्र पाराधन समय और दूसरी भी तपस्या करने का लेख मिलता है। विशेष के लिये देखो हीरसूरि रास, आप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) सम्राट अकबर को प्रतिबोध देकर गुजरात की तरफ पधारे थे तब सम्राट के आग्रह से उनको प्रतिबोध देने के लिये शान्तिचन्द्रजी को सम्राट के पास रख कर गुजरात में पधारे । रास्ते में अनेक राजा महाराजाओं को प्रति बोध दिया शासन प्रभावना की, गुजरात में पधारने के बाद आपने उ. भानुचन्द्रजी और सिद्धिचन्दजी को सम्राट के पास भेजे थे। और बाद में बादशाह अकबर का श्राग्रह पूर्वक निमन्त्रण पाने से वि.स.१६४९ में प्राचार्य श्री विजयसेनमुरिजी को मेजे थे। आपने भी बादशाह पर बहुत ही अच्छा प्रभाव जमाया था। सूरिजी गुजरात में विचरते हुये सौराष्ट्र में सिद्ध गिरी की यात्रा को पधारे वहां से वि० संवत् १६५२ का चातुरमास ऊना में कियाथा तब भादवा सुदी ११ गुरुवार को शुभ ध्यान करते हुऐ रात्रि को स्वर्गवास पधारे, सम्राट ने सूरि जी के स्मारक मन्दिर के लिये ८४ बीघा जमीन भेट दी, सूरिजी का विशेष जीवन जानने के लिये श्रीहीर सौभाग्य महाकाव्य, विजय प्रशस्ति महाकाव्य, हीर सूरिरास, जगद्गुरु काव्य, कृपारसकोश, विजय देव महात्म्य, पट्टावली समुच्चय, पाइने अकबरी, उपाध्याय भानुचन्द्र चरित्र, वैराट नगर मंदिर का शिला लेख, श्री शत्रुजय तीर्थ प्रशस्ति, मालपुरा का मंदिर का शिला लेख, सूरीश्वर और सम्राट जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, वी. ए. स्मीथ का 'अकबर" सम्राट के फरमान श्रादि अनेक ग्रन्थ हैं जिज्ञासु सज्जन वहां से देखलें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभार प्रदर्शन जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरिजी की पूजा स्तवनादि संग्रह पुस्तक श्री संघ के हाथ में रखते हुए बहुत हर्ष होता है । इस में जो बड़ी पूजा है वह हमारी प्रार्थना से पू० पा० धर्म प्रचारक शासन दीपक मुनिमहाराज श्री दर्शनविजयजी महाराज ने बनाई है। श्राप त्रिपुटी का यह चातुर्मास जयपुर संघ की विनती से यहाँ ही हुवा है। यह हमारे संघ के लिये परम सौभाग्य का विषय है। आपके उपदेश से यहाँ अनेक धर्म कार्य हुये हैं और शासन प्रभावना अच्छी हुई है। जयपुर के इतिहास में सदा अमर रहने वाला बड़खेड़ा का छरीवालासंघ आपके उपदेश से श्रीयुत मांगीलालजी गोलेच्छाने निकाला था। यह "बड़ी पूजा" यहां के सबसे प्राचीन श्री तपों के मन्दिरजी में विराजमान श्री जगद्गुरुजी की पादुका समक्ष चतुर्विध संघ द्वारा बड़े समारोह पूर्वक पढ़ाई गई थी। गुरुदेव की बड़ी पूजा यहीं बनी और प्रथम यहीं पढ़ाईगई इसे यहां कासंघ परम सौभाग्य समझता है। पू० पा० शास्त्र विशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्मसूरिजी के उपदेश से आगरा श्री श्वे. जैन संघ द्वारा प्रकाशित जगत् गुरु श्री हीरविजयसूरिजी की अष्टप्रकारीपूजा और स्वतनादि पुस्तक छपी थी उसका हमने सब साहित्य उद्धृत किया है। इसलिये हम आप सबका आभार मानते हैं। इस पुस्तक के संग्रह करने में त्रुटि या अशुद्धि रह गई हों पाठकगण इसके लिये मुझे कृपा कर सूचित करें कि द्वितीय आवृति में सुधार कर दिया जायगा। रतनचन्द कोचर जयपुर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) सहायक का परिचय इस पुस्तक के सहायक महानुभाव का संक्षिप्त परिचय देना उचित समझते हैं । आपके दादाजी बीकानेर निवासी थे, आपका जन्म वि० सं० १८७५ में हुआ था, आपका नाम गोरूमलजी था, आप व्यापाराथें जयपुर पधारे और यहां ही कायम का वसावट कर लिया; आप व्यापारिक प्रवृत्ति बैठाते रहे थे, और साथ में सामाजिक और धार्मिक कार्य भी अच्छी तरह करते थे। जयपुर का सबसे प्राचीन “तपों का मन्दिर" के कार्यकर्ता एवं ट्रस्टी थे। श्रापके समय में मन्दिरजी में अच्छी तरक्की हुई थी। आपके सौभाग्यमलजी, समीरमलजी, हमीरमलजी और फतेलालजी चार पुत्र थे। आप अच्छी तरह धर्म ध्यान करते हुए वि० सं० १९६६ के प्रथम श्रावण सुदी २ को स्वर्गवासी हुए। आपके उस समय चार पुत्र के अलावा नव पौत्र और ४ पड़ पौत्र थे। जिनका नाम यह है दीपचन्दजी, रूपचन्दजी, अमरचन्दजी चाँदमलजी कन्हैयालालजी, भूरामलजी, गंभीरमलजी, नेमचन्दजी, प्रेमचन्दजी पौत्र और गुलाबचन्दजी, मेघराजजी, चन्दनमलजी,रतनचंदजी पड़ पौत्र थे। फतेलालजी के बड़े पुत्र का नाम चाँदमलजी है जिनका जन्म वि० सं० १९३१ के मार्गशीर्ष बुदि २ को जयपुर में हुवा था, आपके पुत्र का नाम चन्दनमलजी है और कलकत्त में जवाहरात का व्यापार करते हैं । फर्म का नाम चाँदमलजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) चन्दनमलजी कोचर पड़ता है । इस समय आपने व्यापार में अच्छी उन्नति की है, चाँदमलजी इस समय जयपुर के प्राचीन तपों के मन्दिर के ट्रस्टी हैं और "श्री जयपुर ज्वेलर्स एसो. सियेशन कलकत्ता के सभापति हैं और आप जयपुर वालों को तन मन धन से यथा शक्ति सहायता पहुँचाते हैं, यह बात किसी जयपुरवासियों से छिपी नहीं हैं और आपके एक पौत्र है जिसका कि नाम शिखरचन्द है। ___ चन्दनमलजी की धर्मपत्नी दौलतबाई के शान पंचमी के उद्यापन निमित यह पुस्तक प्रकाशित करने में आपने पूर्ण सहायता दी है। इसलिये श्रापको धन्यवाद देते हैं। मन्त्री-श्री चारीत्र-स्मारक ग्रन्थमाना, बीरम गाम, (गुजरात) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८) श्री जगत्गुरु स्थापनादि मंत्र १. माहवान मंत्र-(आहवान मुद्रा करके बोलना) ___ही श्री अर्ह युगप्रधान,भट्टारक श्री हीरविजयसूरि जगद्गुरो! अत्र अवतर अवतर स्वाहा। २. स्थापना मंत्र-(स्थापन मुद्रा करके बोलना) ॐ हीं श्री अहं युगप्रधान भट्टारक श्री हीरविजयसूरि जगद्गुरो! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा । ३. सनिधि करण मंत्र___ ही श्री अह युगप्रधान भट्टारक श्री हीरविजयसरि जगद्गुरो! मम सन्निहितो भव भव वषट् स्वाहा। ___श्री जगतगुरु की अष्टप्रकारी पूजा की सामग्री(१) पंचामृत कलश (५) दीपक (२) केसर चंदन | (६) सवापाव या सवासेर अक्षत (३) फूल फूलमाला | (७) नैवेद्य ५ या ३६ या ५८ (४) धूप (E) फल ५ या ३६ या ५८ ® शुद्धि अशुद्धि पृ. " पं० १३ मुद्रित-पंडित एक सो पाठ थे, शुद्धि-पंडित एक सो साठ थे, पृ. १२ पं. २ मुद्रित-अम्बू सूत्र सुनाया ॥ ज०॥३॥ शुद्धि-जम्बू कृत्ति बनाया ॥ ज•॥३॥ पृ. १३ पं. ८ मुद्रित-सोलसो तेपन भादो में, शुद्धि-सोलसो बावन भादो में, पृ. १३ पं० ११ मुद्रित-मुन कर दुःख दिल में धरे, शुधि-दिखावे गमी, मुगट छोड़, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ वन्दे वीरम् श्री चारित्रम् ॥ ॐ जगत्गुरु श्री विजय हीरसूरीश्वरजी की बड़ी पूजा प्रथम जल पूजा -दोहा जय जय सुमति जिणंदजी, जय सुपार्श्व जिनन्द | जय जय आदिश्वर प्रभो, जय जय पार्श्व जिनंद ॥ १ ॥ जय जय सूरि वाचक मुनि, जिन शासन शिणगार । जग गुरु हीर सूरीश्वरा, युगप्रधान अवतार ॥ २ ॥ जय चारित्र विजय गुरु, चरण में शीष नमाय । जग गुरु की पूजा रचूं, सबद्दी को सुखदाय ॥ ३ ॥ ( ढाल १ ) (तर्ज- आवो आवो आदीश्वर बाबा, प्रहो इक्षु रस दान ) आवो आवो श्रो प्यारे सज्जन, करो गुरु गुण गान ॥ टेर ॥ महावीर के पाट परंपर, हुये श्री युग प्रधान । वचन सिद्ध और उग्र तपस्वी, जगद्चंद्र सूरि जाण ॥ आवो ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] जिनके चरन में शीष झुकावे, मेदपाट का राण । तपा तपा कह के बुलावे, जैनसिंह बलवान ॥ श्रावो ॥२॥ श्री देवेन्द्र सूरीश्वर त्यागी, देव पूज्य श्रृतवान । कर्म ग्रन्थ आदि शास्त्रों का, किया जिनने निरमाण ॥ श्रावो॥३॥ दादा साहेब धर्मघोष सूरि, त्यागी युग प्रधान । महामंत्रवादी व प्रभाविक, हुये धर्म के प्राण ॥ श्रावो ॥४॥ देवपत्तन में मंत्रपदों से, सागर रत्नप्रधान । गुरु के चरणों में उछाले, रत्न ढेर को आन ॥ श्रावो॥५॥ निर्धन पेथड़ जिनकी कृपा से, बने बड़ा दिवान । शासन का झंडा फहरावे, गुरुकृपा बलवान ॥ श्रावो॥६॥ जिनके वचन से यक्ष कपर्दी, छोड़े मांस वलिदान । सेवक होकर शत्रुजय पर, पावे अपना स्थान ॥ श्रावो॥७॥ ___ जोगणियों ने कारमण कीना, चहा मुनियों का प्राण । उनको पाटे पर चिपटा कर, दिया गुरु ने ज्ञान ॥ श्रावो॥८॥ गुरुके कण्ठको मंत्र से बांधा, यूं ली उनसे वाण । तपगच्छ को उपद्रव नहीं करना, स्थंभित कर अज्ञान॥प्रावो॥६॥ ___एक योगी चूहे के द्वारा, करे गच्छ को परेशान । उसके ऊपद्रवको हटाया, पाया बहु सन्मान ॥ श्रावो॥१०॥ रात में गुरु का पाट उठावे, गोधरा शाकिनी जाण । उनसे भी तब मुनि रक्षा का, लीना वचन प्रमाण ॥ श्रावो॥११॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] सांप काटते कहा संघसे, अपना भविष्य ज्ञान । संघनेभी वह जड़ी लगाई, हुये गुरु सावधान ॥ आवो॥१२॥ भस्म ग्रहकी अवधि होते, शासन के सुलतान । आनन्द विमल गुरु जिन्हों को, ननराज सुरत्राण ॥आवो॥१३॥ क्रियोद्धारसे मुनिपंथ को, उद्धरे युग प्रधान । ज्ञान कृपासे दूर हटावे, कुमति का उफाण ॥ प्रावो॥१४॥ जेसलमेर मेवात मोरबी, वीरमगाम मैदान । सत्य धर्म का झंडा गाड़ा, दिनदिन बढ़ते शान ॥ श्रावो॥१५॥ मणिभद्र सेवा करे जिनकी, विजयदान गुरु मान । उनके पट्ट प्रभाविक सूरि, हीर हीरा की खाण ॥ श्रावो॥१६॥ ____ इन गुरुओं की करे श्राशतना, वह जग में हैवान । भक्ति नीर से चरणों पूजे, चारित्र दर्शन ज्ञान ॥ श्रावो ॥१७॥ काव्यम्- (वसंत तिलका) हिंसादि, दूषण विनाश युग प्रधानश्रीमद् जगद् गुरु सुहीर मुनीश्वराणां उत्पत्ति मृत्यु भव दुःख निवारणाय, भक्त्याप्रणम्य विमलं चरणं यजेहं ॥१॥ मंत्र ॐ श्रीं सकल सूरि पुरंदर जगत्गुरु भट्टारक श्री हीर विजयसूरि चरणेभ्यो जलं समर्पयामि स्वाहा ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] (२) द्वितीय चंदन पूजा दोहा विजयदानसूरि विचरते आये पाटणपुर । उपदेश से भविजीवको, मार्ग बतावे धूर ॥१॥ गुरुवर की सेवा करे, मणिभद्र महावीर । करे समृद्धि गच्छ मे , काटे संघ की पीर ॥२॥ इस समय गुरुदेव को , हुआ शिष्य का लाभ । तपगच्छ में प्रतिदिन बढे, धर्मलाभ धनलाभ॥३॥ (ढाल-२) ( तर्ज-धनरवो जग में नर नार) धन धन वो जग में नर नार, जो गुरुदेव के गुण को गावें ॥टेर॥ पालनपुर भूमिसार, ओसवाल वंश उदार। महाजनके घर श्रीकार, प्रल्हादन पासकी पूजा रचावे॥धन०॥१॥ धन सेठजी कूराशाह, नाथी देवी शुभ चाह । चले जैन धर्म की राह,धर्म के मर्म को दिलमें ठावे॥धन० ॥२॥ संवत् पन्द्रहसो मान, तिर्यासी मिगसिर जाण । हीरजी काजन्म प्रमाण, शान शौकत जोकुल की बढावे॥धन०॥३॥ शिशु वय में हीर सपूत, परतिख ज्यू शारद पूत । बल बुद्धि से अद्भुत, ज्ञान क्षय उपशम के ही प्रभावे॥धन०॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिक्कमणां प्रकरण ढाल,योग शास्त्र व उपदेश माल । पयन्ना चार रसाल, पढे गुरु के भी दिल को लुभावे ॥धन०॥५॥ हीरजी पाटण में आय, नमें दानसूरि के पाय । सुने वाणि हर्ष बढाय, पाकदिल संयम रंग जमावे ॥धन० ॥६॥ पन्द्रहसे छयाणु की साल, ले दिक्षा हीर सुकुमाल । बने हीर हर्ष, मुनि बाल, न्याय पागम का ज्ञान बढावे॥धन०॥७॥ संवत् सोला सो सात, पन्यास हुये विख्यात । हुये वाचक संवत अाठ, पाट सूरि की दसमें पावे ॥धन०॥८॥ हुए पूज्य सूरीश्वर हीर, नमे सूबा राज वजीर । चन्दन चर्चित गंभीर, धीर चारित्र सुदर्शन गावे॥धन ॥६॥ काव्य-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री चन्दनं समर्पयामि स्वाहा ॥२॥ तृतीय पुष्प पूजा दोहा हीर हर्ष हुये सूरि, हुआ घरघर अानन्द । शासन की शोभा बढी, यश फैला गुण कन्द ॥१॥ (ढाल-३) (तर्ज-कदमों की छाया में प्रभु के पैर पूजना) हीर सूरिश्वर जी, गुरु के गुण गाइये ॥ टेर ॥ हीर मुनीश्वर, हीर सुरीश्वर । अकल महिमा रे भक्ति से फल पाइये ॥ हीर०॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६] फत्तेहपुर में, उपकेश घर में । है तप भक्ति रे तप से ही सुख पाइये ॥हीर० ॥२॥ सती शिरोमणि, सद्गुणी रमणी। श्राविका चंपारे दों मासी तप ठाइये । हीर०॥३॥ देव कृपा से, गुरु कृपासे । तप गुण बढते रे कृपा को वारी जाइये ॥ हीर० ॥४॥ हुई तपस्या, मोक्ष समस्या। आनन्द हेतु रे उच्छव रंग चाहिये । हीर०॥५॥ . तप की सवारी, जूलस भारी । बाजित्र बाजे रे जय नारे भी मिलाइये ॥ हीर०॥६॥ अकबर बोले, लोक हैं भोले । झूठी तपस्या रे चंपा को कहै आइये ॥ हीर०॥७॥ पूछे चंपा से, किन की कृपा से। रौजा मनाये रे सञ्चा ही बतलाइये। हीर० ॥८॥ पार्श्व प्रभू की, हीर गुरू की । चम्पा सुनावे रे कृपा का फल पाइये ॥ हीर ॥॥६॥ कृपालु नामी हीरजी स्वामी । ठाना शाही ने रे इन से ही मिल्ना चाहिये । हीर०॥ १०॥ गुरु चरन में भक्ति सुमन है। चारित्र दर्शन रे कर्मों का गढ ढाइये ॥ हीर०॥ ११॥ काव्यम्-हिंसादि . मंत्र-ॐ श्रीं ० पुष्पाणि समर्पयामि स्वी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com का Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७] चतुर्थ धूप पूजा दोहा अकबर दिल में चिंतवे, भारत का सुल्तान । वुला गुरु हीरजी, जैनो का सुल्तान ॥ थानसिंह श्रोसवाल को, बोले अकबर शाह । वुलावों गुरु हीर को, सुधरे जीवन राह ॥२॥ थानसिंह कहे जहांपनाह, दूर ही है गुरुराज । अकबर कहे पर भी उन्हें, बुलावो मय साज ॥३॥ (ढाल-४) (तर्ज- शहीदो के खून का असर देख लेना) हीर सूरि को बुलाना पड़ेगा, हमको भीदर्शन दिलाना पड़ेगा। धन गुर्जर है ऐसे गुरु से, वहां से गुरु को बुलाना पड़ेगा॥हीर॥१॥ राजाराणी दर्शन पावे,उनकाही दर्शन दिलाना पड़ेगाहीर ॥२॥ माम जापसे दुःख विडारे,ऐसे फकीरको यहां लाना पड़ेगा ॥३॥ वहीं से रहारा देवेचंम्पाको, उस ओलिया से मिलाना पड़ेगा। घर दुनिया को दिल से छोड़े,खुदा का बन्दा बताना पड़ेगा॥५॥ सब जीवों की रक्षा चाहे, यही कृपारसपिलाना पड़ेगाहीर॥६॥ स्यागी ध्यानी पंडित ज्ञानी, उन्हों का उपदेश सुनाना पड़ेगा॥७॥ सब मजहब से वाकेफ साहिब, उनका भीमजहब सुनाना पड़ेगा। तेरा गुरु है मेरा गुरु है, ठेका भी हो तो तुड़ाना पड़ेगा ॥६॥. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८] शाह अकबर यों भाव बतावे, हीरे कापाकखिलाना पड़ेगा॥१०॥ चारित्र दर्शन गुरु चरण में, ध्यान काधूप जमाना पड़ेगा ॥११॥ काव्यम्-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री धूपम् समर्पयामि स्वाहा ॥४॥ पंचम दीपक पूजा __ दोहा अब अकबर गुजरात में, मेजे मौदी कमाल । बोलावे गुरु हीर को, फतेहपुर खुशहाल ॥१॥ संवत् सोलसो चालिसा, आये श्री गुरु हीर । बने गुरु उपदेश से, धर्मी अकबर मीर ॥२॥ (ढाल-५) ( तर्ज- घड़ी धन्य श्राजकी सबको, मुबारक हो २) इसी दुनियां में है रोशन, “जगद गुरू" नाम तुम्हारा॥ कई को दीनी जिनदिक्षा, कई को ज्ञान की भिक्षा। कई को नीति की शिक्षा, कई का कीना उद्धारा ॥ इसी० ॥१॥ लूकापति मेघजी स्वामी, अठ्ठाइस शिष्य सहगामी । सूरि चेला बने नामी, करे जीवन का सुधारा । इसी० ॥२॥ कीड़ी का ख्याल दिलवाया, अजा का इल्म बतलाया। मुनिका मार्गसमझाया, संशय सुल्तान का टारा। इसी० ॥३॥ शाही सन्मान तो पाया, पुस्तक भण्डार भी पाया। बड़ा प्राग्रा में खुलवाया, अकब्बर नाम से सारा॥ इसी०॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६] तपगच्छ द्वेष दिलधारा, करे कल्याण खटचारा। उसी का गर्व ऊतारा, सभी के दुःख को टारा ॥ इसी० ॥ ५॥ फतेपुर, श्रागरा, मथुरा, शुरिपुर लाभ मालपुरा। भुवन प्रभु के बने सनूरा, मोगल के राज्य में सारा॥ इसी०॥६॥ करे कोई गुरू पूजन, दीये हाथी हरे उलझन । करे वस्त्रादि से लुछन यतिम याचक का दिल ठारा॥इसी.॥७॥ तीरथ का टैक्स हटवाया, जजिया कर भी मिटवाया। शत्रं जय तीथे फिर पाया, गुरु आधिन बने सारा ॥ इसी० ॥८॥ अकबर ने समझ लीना, बड़ा फरमान लिख दीना। हुकुम सालाना छ महिना, यही उपकार तुम्हारा ॥ इसी०॥६॥ जगत पर कीना उपकारा जगद्गुरु आप हैं प्यारा। अकबर ने यूं उच्चारा, दिया बीरूद जयकारा । इसी० ॥१०॥ गरु उपदेश को पीकर, अकब्बर का हुकुम लेकर । जिताशाहजी बने मुनिवर, बना शाहीयतीप्यारा॥इसी०॥११॥ नमे सुल्तान आजमखान, सिरोही देवड़ा सुल्तान । नमे प्रताप टेक प्रधान, गुणों का है नहीं पारा ॥ इसी० ॥१२॥ मुगल सम्राट् दरबोरा, खुला शुरू में गुरु द्वारा। पीछे जिनचन्द्र सिंह प्यारा, गये सेनादि गरु सारा इसी० ॥१३॥ गुरु चारित्र सीतारा, विमल दर्शन का प्राधारा। बिना गुरु कोई नहीं चारा, गरु दीपक से उजियारा इसी॥१४॥ काव्यम्-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री दीपकं समर्पयामि स्वाहा ॥॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 20 ] षष्ठी अक्षत पूजा । दोहा जगदगुरु करे जगत में, भ्रातृ प्रेम प्रचार । अहिंसा के उपदेश से, अहिंसक बने नरनार ॥ १ ॥ ( ढाल - ६ ) अहिंसा का डंका आलम में, श्री जगदगुरु ने बजवाया । महावीर का झंडा भारत में, श्री हीर सुरी ने फहराया ॥ टेर ॥ मय रानी रोह नगर स्वामी, शिकार को छोड़े सुख कामी । सुलतान सिरोही का नामी, उनका, हिंसादि छुड़वाया ॥ १ ॥ अकबर सुबह में खाता था, सवा सेर कलेवा आता था । चिड़ियों की जीभ मंगाता था, उससे उसका दिल हटवाया ॥ २ ॥ कई पशु पक्षि को मारा था, और कई पर जुल्म गुजारा था । अकबर का यह नित्य चारा था, उसके लिये माफी मंगवाया ॥ ३ ॥ पिंजर से पक्षि छुड़वाये, कई कैदी को भी छुड़वाये | कई गैर इन्साफ को हटवाये, कइयों का जीवन सुलझाया ॥ ४ ॥ काला कानून था जजिया कर जनता को सतावे दुःख देकर । अकबर को मजहब समझा कर, जजिया कर पाप को धुलवाया ॥५॥ पर्यावरण बारह दिन प्यारे, किसी जीवकों कोई भी नहीं मारे । अकबर यूं श्राज्ञा पुकारे, फरमान पत्र गुरु ने पाया ॥ ६ ॥ संक्राति के रवि के दिन में, नत्र रोज मास ईद के दिन में । सूफियान मिद्दीर के सब दिन में, जीवघात शाही ने रुकवाया ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११] फिर जन्म मास अपना सारा, जीव घात यूं छै महिना टारा। चारित्र सुदर्शन भय हारा ,गुरुचरण में अक्षत पद पाया॥६॥ काव्यम्-हिंसादि. मत्र-ॐ. श्री अक्षतान समर्पयामि स्वाहा ॥६॥ सप्तमी नैवेद्य पूजा दोहा जगदगुरु ने जीवन में, कीना तप श्री कार । तेले बेले सैकडों, व्रत भी चार हजार ॥१॥ प्रांबिल निवी एकासना, और विविध तप जान । प्रतिदिन बारह द्रव्य का, करे गुरुजी परिमाण ॥२॥ काउसग्गध्यान अभिग्रह करे, प्रतिमा बार मनाय । दशकालिक नित्य जपे, चार क्रोड़ सज्झाय ॥३॥ पण्डित एकसो आठ थे, साधु कई हजार । एक सूरि उवझाय आठ, यह गुरु का परिवार ॥४॥ (ढाल-७) (तज-रामकलि-केशरिया ने कैसे जिहाज तिरस्या) जगद् गुरु आज अमोलक पाया, नर भव सफल मनाया ।टेर। जगद् गुरु ने जगत के हित में, सारा जीवन बिताया। आपके शिष्य प्रशिष्यो ने भी, कीना काम सवाया।जगत०।। वाचक शान्तीचन्द्र ईण ने, कृपा ग्रन्थ बनाया। सुन कर शाह ने अपने बदन में,मुरदा नहीं दफनाया।जगता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] कल्याणमल के कष्ट पिंजर से, खंभात संघ को छुड़ाया । हुमायूं का इल्म बताया, जम्बू सूत्र सुनाया । जगत ०|३| भानुचन्द्र ने शाही द्वारा, वाचक का पद पाया । शाही के पुत्र को ज्ञान पढाया, तीरथ पट्टा पाया । जगत०|४| पट धर सेन सूरि आलम में, गौतम कल्प गवाया । पाटण राज नगर खंभात में, पर गच्छी को हराया। जगत०।५। सुरत में श्रीभूषणदेव को, वाद में दूर भगाया । शाही सभा में पांच से भटसे, वाद में जय अपनाया जगत०|६| अकबर से षटू जल्प को पाया. मृत धन आदि हटाया । सवाई हीर का बिरूद पाया, परतिख पुन्य गवाया जगत०|७| अकबर के पंण्डित सभ्यों में, जिनका नाम लिखाया । विजय सेन भाणचन्द्र अमर है, शासन राग सवाया । जगत ८ । अष्टावधानी नंदन विजयजी, सिद्धि चन्द्र गणराया । विवेक हर्षे गणी इन्हो ने, शाही से धर्म कराया जगत ०६ पड पट्टधर श्री देव सूरि ने, वादी से जय सुर देवचन्द आदि देवों ने, गुरु का मान बढाया | जगत०।१०। बिरूद जहांगीर महातपा यूं, सलीम शाह से पाया । राणा जगतसिंह से भी दया का, चार हुकुम लिखवाया। ज० ॥११॥ वाचक विनय ने लोक प्रकाश से, सच्चा पंथ बताया । यशो विजयजी वाचक गुरु के, ज्ञान का पार न पाया । ज०।१२श खरतर पति जिन चन्द्र सूरि ने, जगगुरु का यश गाया । पाया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३] फरमान सप्ताह की अहिंसा का, अकबर शाह से पाया।ज०।१३॥ गुरु के नाम से पावे धन सुत. यश सौभाग्य सवाया। चारित्र दर्शन गुरु चरणों में. भावनैवेद्य धराया जग०॥१४॥ काव्यम्-हिंसादि मंत्र-ओं श्री नैवेद्यम् समर्पयामि स्वाहा अष्टमी फल पूजा। __-दोहासोलसो तेपन भादो में, सुदि ग्यारस की रात। गुरुजी स्वर्ग में जा बसे, ऊना में प्रख्यात ॥१॥ अग्निदाह के स्थान में, फले बांझ भी अाम । सन कर दुःख दिल में धरे, अकबर अपने धाम ॥२॥ अकबर से पाकर जमीन, लाडकी करे वहाँ स्तूप । जो परतिख परचा पूरे, नमे देव नर भूप॥३॥ आबू पाटण स्थंभना, राजनगर जयकार । सूरत हैद्राबाद में, बने श्री हीर विहार ॥ ४ ॥ आगरा महुवा मालपुर, पटणा सांगानेर । नमुप्रतिमा स्तूप पादुका जयपुर आदि शहेर ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] ( ढाल-८) ( तर्ज-सरोदा कहाँ भूल आये) श्रावो भाई श्रावो, गरु के गण गात्रो॥ टेर ।। देवीं कहे देवेन्द्र सूरिके , चरण कमल में जाओ। बढती उन्ह के गच्छ की होगी, कुपथ में मत जाओ।गुरु ॥१ पद्मावती कहे तिलक सूरि के, शिष्य को स्तोत्र पढ़ायो। प्रतिदिन तपगच्छ बढ़ता रहेगा,प्रभसूरि! मत घबराओ।गुरु।। २ मणीभद्र कहे दानसूरि को, विजयदान वरसावो । कुशल करूंगा विजय तपाका.विजय ध्वजा फरकावो ।गुरु।। ३ ऐसे गच्छ में जगदगुरु,श्री हीर सूरि को गावो। वर्ष इक्कीस हजार चलेगा, वीर शासन मन लावो ।।गुरु॥ ४ देश प्रदेशों में क्यों दोड़ो, गुरु चरणों में जावो । संग्राम सोनी पेथड़ सम ही, लक्ष्मी इजत पावो ।। गुरु ।। ५ जगद्गुरु के चरण कमलमें, फलपूजा फल पावो। चारित्र दर्शन ज्ञान न्याय से, जय जय नाद गजावो ||गुरु ।। ६ काव्यम्-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री फलं समर्पयामि स्वाहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५] कलश (राग-वस- अवतो पार भये हम साधो) अाज तो जगद्गुरु गुण गाया, अानन्द मंगल हर्ष सवाया॥टेर॥ वीर जगत्गुरु पाट परंपर हुये सूरि गणी मुनिराया। हुये बुद्धिविजय गणी जिनने,संवेगरंग का कलश चढाया ॥१॥ श्राप के आदिम पट्टप्रभावक, मुक्तिविजय गणी शासन राया। अापके पट्टमें विजय कमल सूरि, स्थविरविनय विजयजी गवाया. आपके शिष्य शासन दीपक, श्री चारित्रविजय गुरुराया। आदिम जैन गुरुकुल स्थापक, जिनके यशका पार न पाया ॥३॥ आपके सेवक दर्शन ज्ञानी, न्याय ने जयपुर में गुण गाया। संवत् उन्नोसो लत्तार, जगत्गुरु का दिन मनाया ॥४॥ तप गच्छ मन्दिर में जगगुरु के, चरण कमल सबको लुखदाया। सेवे भंडारी कोचर जी, चोड़िया पालरेचा सुहाया ॥५॥ म्हेता, छाजड़ बैद सचेती, ढाढ गोलेच्छा मुखपाया। ढौर गहेलड़ा वम् छजलानी, नौलखा सिंघीव खीसरा भाया ॥६॥ कोठारी लोढा करणावट, वाफणा पटनी शाहा उमाया। जोहरी हरखावत पोरवाला, श्री श्रीमाल हैं भक्ति रंगाया॥७॥ संघ ने मिल कर भाव सवाया गुरुपूजन का पाठ पढाया। शिर नमायाँ जयजय पाया चारित्र दर्शन नाद गजाया ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] अथ श्रीदादाजी श्रीहोरविजय सूरीश्वरजी की आरती प्रारति श्रीगुरुदेव चरण की, कुमति निवारण सुमति पूरण की प्रा०। पहेली भारती श्रीगुरुदेव की, दुरित निवारण पुन्यकरण की प्रा० ॥१॥ दूसरी पारती धरम धरन की, ___ अशुभ करमदल दूरी हरण की प्रा० ॥२॥ तीसरी दश यति धरम धरण की, तप निरमल उद्धार करण की प्रा० ॥३॥ चौथी संयम श्रुत धरम की, __शुद्ध दया रूप धरम बरघण की प्रा० ॥४॥ पांचमी सभी सद्गुण ग्रहण की, दिन दिन जस परताप करण की प्रा०॥५॥ एह विध भारती कीजै गुरुदेव की, समरण करत भवि पाप हरण की प्रा०कुक्ष इति श्री गुरुदेवजी की आरती । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । अईम् । श्रीजगत्गुरुजीकी छोटी अष्टप्रकारीपूजा प्रथम जलपूजा ॥दोहा॥ अह समसमरी सारदा, सदगुरु चरण नमाय वसुविध हीरसूरींद की, पूजा रचूंसुखदाय ॥१॥ निर्मल जल भारी भरी, प्राणी अंग उमंग। गुरु पद की पूजा करूं, जिम सुख पाऊंचंग ॥२॥ ॥ ढाल सुरती॥ पूजा पहिली करिये, गुरुपदनी सुखकार अनुभववरीये निज गुण, धरिये अधिक उदार ॥१॥ पूजा जलकी साचवे, चढते भाव परिणाम मिथ्यामल दूरे हरे, पामें निरमल ठाम ॥ २ ॥ ॥श्लोक ॥ अशुभकर्मविपाकनिवारणं परमशीतलभावविकासकम् स्व-परवस्तुविकाशनमात्मनः श्रीगुरुहीरसूरीश्वरपूजनम् ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) औं ह्रीँ श्रीँ श्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यो जलं यजामहे नमः ॥१॥ द्वितीय चंदन पूजा। ॥ दोहा ॥ दूजी पूजा गुरुतणी, करिये चित्त उल्लास । मृगमद चंदनसुमिली, केसर शुद्ध बरास ॥१॥ ॥ ढाल । केसर चंदन घसी घणो, मांहि मेलो घनसार । रखड़ित कचोलडे, धरिये चित्त उदार ॥१॥ गुरु पद पूजा वि जन, भव दव ताप समाय । दूजी पूजा कीजीये, अनुभव लच्छी पाय ॥२॥ ॥ श्लोक ॥ परमुदारगुणं गुरुपूजनं जगदुपाधिचयाद् रहितं जितम् । परमपूज्य पदस्थितमर्चत विनयदर्शन केसरचन्दनः ॥१॥ ओँ ही श्री श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरेभ्यश्चन्दनं यजामहे नमः॥२॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा। ॥दोहा॥ त्रीजी पूजाकुसुमनी, करिये निर्मल चित्त । पूजा करतां भव लहे, उत्तम अनुभव वित्त॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ढाल ।। जाई .नई केतकी, उमणो मरुनो सार ..." ' 'मोगरो चंपक मालती, श्रीगुरु चरणे धार ॥१॥ बोलसिरी जाइ फूल, केवडोसरस गुलाब शुद्ध सुगंधित फूले करी, गुरु पूजोभरीछाब ॥२॥ ॥ श्लोक ॥ सरसपुष्पसुगन्धितमर्चितं सकलवाञ्छितदायकचचितम् सकलमङ्गलसंभवकारणं गुरुसुगपादपपूजनधारणम् ॥१॥ ओ ही श्री श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यः पुष्पं यजामहे नमः ॥३॥ अथ चतुर्थी धूप पूजा। . ॥ दोहा ॥ चोथी पूजा धूपनी, करियें हर्षे अमंद । कुमति मिथ्यात्व निवारजो, पूजो श्रीहीर सूरींद ॥१॥ ॥ढाल ॥ अगर चंदन वली मृगमद, कुंदर ने लोबान वस्तु सुगंध मिलाय के, करिये प धूपधान ॥१॥ धूप करो गुरु सन्मुख, प्राणी भाव विशाल । जिम पामो भवि संर्मात, दिन दिन मंगल माल ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) ॥ श्लोक ॥ समसुगन्धकरं तपधूपनं सकलजन्तुमहोदयकारणम् सकलवाञ्छितदायकनायकं श्रीगुरुहीरसुरीचरणं यजेत् ॥१॥ ओँ हौं श्री श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यों धूपं यजामहे नमः ॥ ४॥.. अथ पञ्चमी दीपकपूजा। ॥दोहा॥ पांचमी पूजा गुरुतणी, करिये दीपक सार मिटे तिमिर मिथ्यात्व सब, एह पूजा अधिकार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ भाव दीपक गुरु पागलें, रिथे शुभ व्यवहार द्रत्यं दीपक भले करीइ, जन्म सफल अवतार।।१।। दीप पूजा करतां सही, लहीए ज्ञान विशाल गुरु पूजा मनोवांछित, श्रापे मंगल माल ॥२॥ ॥श्लोक ॥ विमलबोधसुदीपकधारकः परमज्ञानप्रकाशकनायकैः गुरुगृहे शुभदीपकदीपनं भवजले निधिपोतसमो गुरुः ।।१।। ओं ही श्री श्रीपरमगरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यो दीपं यजामहे नमः ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २१ ) अथ षष्ठी अक्षतपूजा। ॥ दोहा॥ छट्ठी पूजा भवि करो, अक्षय शुद्ध प्रखंड । चन्द्रकिरण समउज्जवला, धर्मस्थिति गरुमंड ॥१॥ ॥ ढाल ॥ उज्ज्वल तंदुल अक्षत, विविध प्रकारनां लाय। .. - कंचन मणि रयणे जडया, थाल भरी भरमाय ॥१॥ स्वस्तिक करि गुरु सन्मुखे, भावना भावोसार। अक्षत पूजा जो करे, ते लहे सुख अपार ॥२॥ ॥श्लोक।। . परम-अक्षतभावकृतेऽर्जिते ददति वाञ्छितसुखसमुद्भवैः। मुगरुपूजनलब्धिसमागमे विजयहोरसूरीश्वर-अर्चितः ॥१॥ ओं. हाँ श्री. श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्योऽक्षतं यजामहे नमः ॥ ६॥ अथ सप्तमी फलपूजा । ___ दोहा।। . . सातमी पूजा भवि जना, करिये हर्ष अपार ।। ए पूजा करतां लहो, अनुभव फल सुखकार ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ । . ॥ढाल ॥ श्रीफल कदली सिताफल, दाडिम सरस बदाम । निमजा पिस्ता चारोली, नवनवा मेवां नाम ॥ १ ॥ प्रांबा रायण करणां, नारिंजी फल सार । छाब मरी गुरुने पूजो फल पूजा सुखकार ॥२॥ ॥श्लोक ॥ गुणफलैर्मलदोषनिवारकंबहलमोहतिमिरविनाशकम्। सकलसेवकवाञ्छितदायकं विजयहीरसूरीश्वरनायकम् ॥१॥ ओं ही श्री श्रीपरमगुरुश्रीहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्यः फलं यजामहे नमः ॥ ७ ॥ अथाष्टमी नैवेद्यपूजा। ॥दोहा॥ गुरु पूजा ए आठमी, कीजिये मन उल्लास । शुभ नैवेद्य भले भाव से, धसे गुरु संमुख पास ॥१॥ ॥ ढाल ॥ लाड घेबर पेडा, खुरमा खाजां सार। मोतीचूर में बरफी, माबो वनी कंसार॥१॥ __ साकर फेणी जलेबी, विविध जाति पकवान । ठवो श्रीगुरु मुख पागले, अष्टमी पूजाए मान ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) ॥ श्लोक ॥ !! सकल सूरिपुरन्दरसूरय परमपूज्यगुरुश्रीहीरय । भवजना शुभ भावक पूजनं लद्दति वाञ्छित सुखसमागमम् ॥१॥ ह्रीं श्रीं श्रीपरमगुरुश्रीद्दीरविजयसूरीश्वरचरण -कमलेभ्यो नैवेद्य यजामहे नमः ॥ ८ ॥ इम गुरु गुण वृंदं शुद्ध भावेन किती. परमगुणनिधानं ऋद्धिविजय स्तवंती । प्रति दिवस मनंतं पूजयं पूजयंती, परमसुख निवासं लक्ष्मी लीला लहंती ॥ १ ॥ श्रीँ ही श्रीँ श्रीपरमगुरु श्री द्दीरविजयसूरीश्वरचरणकमलेभ्योऽष्टद्रव्यं यजामहे नमः ॥ काव्यम् ॥ श्रीमत्तपागण शुभाम्बर धर्मरश्मिः श्रीसूरि हीरविजयो ऽजितमानलक्ष्मीः । यस्योपदेश वचनाद् यवनेषु मुख्यो हिंसानिराकृति परः प्रगुणो बभूव ॥ १ ॥ ॥ इति समाप्ताऽष्टप्रकारी पूजा ॥ 886 न है. 3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) ॥अथ दादाजी श्रीहीरविजयजी स्तवन ॥ सोभागी श्रीगुरु हीरविजय सूरीन्द्र, मन मोहन श्रीगुरु हीर०। मैं सेवक सांनिध्यकारी, श्रीगुरु पूरै मनोरथ वृन्द सो० ॥१॥ दोलत दायक श्रीगरु मेरो, दादा हुँचरणनो दास। श्रीगरुनां बिरुद छे भारी, धरिस ही मन पास सो० ॥२॥ तो सेव्यां संकट टलेंजी, मिले मुजने मोहन वेल । दादा ! तुम चरणां सुपसाय, पामै हरखनी रेल सो० ॥ ३॥ तपगच्छ अंबर दीनकर जैसो दादाहीरसूरीन्द्र भाह । अकबर बादकारीन जीते, असुर सहु जिन्द सो० ॥४॥ परगट दादो देवताजी, परचा पूरै सूरीन्द । वाचक जस इम वीनवैजी, संघसकल पाणन्द सो० ॥५॥ स्तवन-चाल रेखता श्रीगुरु हीरदेवके दर्शन, दिल मुज होत हे परशन् । होत आनन्द धनमेरे, सम्पत्ति मिलत बहुतेरे अं'. ॥१॥ गुरु ! तुम ध्यान दिल्लधारू, दुरबुद्धमती दूरवारू। श्रीगरु चरणकी सेवा, सेवक कु दीजिये मेवा श्री.॥२॥ दादा ! दरसण मोहि दीजै, दादा तुम सो हिला कीजै। जे कोई समरण जोपावै,तोश्रचिन्ती लक्ष्मी घरावै श्री.n. दादा ! तुम समरण करती, बाट. घाटमें सुखै बहन्ता। भीत उपद्रव सह जावै, श्रीगह ध्यान दिल ध्यांवै श्री. ॥ ४॥ दादा ! हह अरज दिलधारो, सेवकके कार्य सहु सारो। भीवीहीरसुरी देवा !, पावो सुजश तुम गुरुसेवा श्री. ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) अथ दादा हीरविजय सूरी स्तवन । आज बधाई मेरे रङ्ग बधाई, गुरुचरणां सुपसायैरे, आ.। .. मौतिडे मेह वुठारे ॥ श्रा.॥ मङ्गलमाज मेरेघर फलीयां,सुखसम्पत्तिघरआईरे॥श्रा.॥१॥ वरषानंद भयो दिलमैरे, सुद्धसमकितपालपाइ रे॥श्रा.॥२॥ श्रीगरुचरण कमल दरशण ते, सुमति सही दिल आई रे॥पा.३ दादा श्रीबिजैहीरसूरीश्वर,दिशो दिशि सजसगवाई रे॥प्रा.४ ॥ अथ हीरविजय पद ॥॥चाल जिंदवारी ॥ श्रीगुरुध्यान धरो सदा, शुभ मन सुखकार पटेक ॥ भीगरुमाने जै दिलधरै, पामै सुख अपार । श्रीगरुध्यान जै भावतां गुरु प्रातम भार ॥ श्री. ॥ १॥ गदरशण सख उपजै, होवे जय जयकार । समकित पामे प्राणीयां, पूजो सह नरनार ॥ श्री. ॥२॥ निरमल पहेरी घोतियां, घसी केसर घनसार । श्रीगुरुदेवकु पूजीयें, गरु जग आधार ॥श्री.॥३॥ तपगच्छनायक राजीयो, दादो सेवक आधार । दादो दुनियां मे देवता, जिनशासन जयकार ॥ श्री. ॥४॥ तपगच्छसंघ सांनिध्यकरो, करो सहुविधन निवार । दिन दिन जस चढती कता, वपुत्रपरिवार ॥ श्री.॥५॥ श्रीहीरविजय सूरिसाहिबो, गुरु गणनो भंडार । चरणकमलमें मेटीवा, फतेन्द्रविजयके आधार ॥धी.॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) ॥अथ दादाहीरविजय सूरीस्तवन ॥राग थाये। चालो भवी वंदन जईये, हीरविजय सूरी राय चा. ही.. पूजत परमानन्दा, मिले सजन सहु भाय । चा. ॥१॥ दादोजी परचा पूरे, तपगछ संघ सवाय ॥ चा.॥ अकब्बरसाह प्रतिबोधीयों, दिल्लीनों पतिसाय ॥ चा. २ ॥ . मारीरोग निवारियो, जीव हिंसा मिटाय ॥ चा.॥ अमुना के जल उपरें, गुरुवाट बनाय ॥ चा. ॥ ३॥ जिनमत थिरता थापी, जैन धरम दीपाय ॥ चा.॥ दादोजीसेवकांसांनिध्यकारी, फतेन्द्रविजय गुण गायचा.uk ॥ अथ ददाजी पद ॥ राग विलास ॥ देख हो भवि अाज, गुरु चरण देख। त्रिकरण शुद्धभाव करके, पूजो श्री गुरुराज अज्ञानतिमिर दूर विणसे, प्रगट ज्ञान आवाज श्री. दे.॥१॥ श्री गुरुदेवको ध्यान धरत, होत मंगल काज। आज मुझ घर हर्षवल्यो, मिल्यो मुखसमाज । श्री. दे. ॥२॥ अष्ट भय सहु दूर बिणसे, सरै सहु मन काज । ध्यान धरत सुख उपजत, श्रीगुरुने आवाज । श्री. दे.॥३॥ श्रीगुरु हीरविजयदेव सूरीश्वर, तपगछपति महाराज। ' ज्ञानविमल गुरुचरण सेवत, होत सफल सहकाजाश्री.hem Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथ दादा जीका पद ॥ ढाल-उंबरियो ने गाजे हो भटियाणी राणी बड चूवै। कांह भरमर बरसे मेहा। ए देशी॥ आज दहाडो सफलो हो गुरुचरणांबुज मैं मेटीयां, काईप्रगट यांपुण्यनांसाज,अशुभदाहाडाटल्याहोशुभवलीयादेह। श्राज माहरां काई सरीयां मननां काज।प्रा.॥१॥ मुज घर सुरतरू फलीयो, हो मुज मिलीया गुरुदेव हमारो। थाहरोचरनारो दासा पास धरी, तुम पासे ही मन उल्लासे । प्रावियो गुरुदास निबाजो रीज । प्रा. ॥२॥ गुरु दरशण अब पायो हो मन भायो, छित पामियो रमीयो गुरुगुणे । आज गुरुगुणे जे मर रमता हो मन गमता, लछी पामता काई लहता गुरुगुणे आवाज । पा.॥३॥ श्रीगुरुने परंभावे हो कोई दिन दिन, आनन्द प्राजे सफल फले साहू काज । श्रीगुरुने पर भावे हो बहु पावे घर सुख, सम्पदा काई आपदां आये भाज श्रा.॥४॥ श्रीगुरु देव प्रसादे हो वली बधे, पुत्र कलत्रयी काई मिले सख समाज । दयारुचि गुणगावे हो मन भावे, श्रीगुरु देवना सेवनां लहि में आज । प्रा.॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) ॥ अथ दादा जी स्तवन ॥ म्है तो न्यारा रेहम्यांजी देराणी जेठांणी आय मेला रहम्यांजी। ए देशी। म्हारा गुरुदेवजी हो लाल, गुरुदेव विघन निवार । म्हा-। गुरुदेवनायक माहरे, ने गुरुदेव है शिरदार, श्रीगुरुदेवकेचरण नम्यांथी, होवे जयजय कार । म्हा. ॥१॥ तपगच्छनायक है गुणलायक, श्रीविजय हीरसुरीन्द.। श्रीगुरु तोरा पाय नमन्तां, पांमे दोलत वृन्द । म्हा. ॥२॥ साह अकब्बरवादकों तुम जीते गुरु जस पाय । जीव दया गुरु तुम वरतावी, तपगच्छ सुजस चढाय। म्हा. जमुनां जलपर बाट चलाई, चल पायै गुरु पार । अधर धारा पर चालण लागे, गुरु करामात है सार । म्हा. श्रीगुरु दान सूरीश्वर पाट, हीरविजय में तेज। कुमति तिमिर सहु दूर निवारी, जिनशासन करे हेजाम्हा. वाद चौरासी श्रीगुरु जीत्या, जैनशासन शोभ चढाय । दिल्ली मांहे दया वरतावी, जैन धरम दीपाय । म्हा. ॥६॥ गुरु हीरसूरी सुपसाय, पामै अरथ भण्डार । हीरगुरु के जे गुण गावै, दया रुची जयकार । म्हा. ॥७॥ स्तुति-.. दामेवाखिल भूपमूर्द्धन निजामाझा सदाधारयन भी मान शाहि अकब्बरो नरवरो (देशेष्व ) शेषेवपि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) पएमासा भयदानपुष्टपटहोद् घोषा नघ ध्वसितः कामं कार्यात स्म दृष्ट हृदयो यद्वाक कलारंजितः ॥ १७॥ यदवाचां निचयैर्मुधा कृत सुधा स्वादैरमं 4ः कृता- . . हादः श्रीमदकब्बरः क्षितिपतिः संतुष्टिपुष्ठाशयः त्यक्त्वा तत्करमर्थ सार्थ मतुलं येषां मनः प्रीतये। जैनभ्यः प्रददौ च तीर्थ तिलकं शत्रन्यो वीधिरन ॥२०॥ (शत्र जयप्रशस्ति जै. सा. सं.इ. पृ. ५४३) ॥ अथ दादाजी हीरसूरी पद ॥ ॥राग सारङ्ग ॥ बिजय हीर भये शुभ ध्यान में, ३ . शुद्धष्टि निज प्रातम देखे, परमातम कै ग्यान में । बि. ॥१॥ संयम सुधारस शील का प्याला, छींके अमृत पान में । बि. ॥२॥ सर्माकत पाय मरम सुख पावै, बेठा अविचल थान में । बि. ॥शा अगम अगोचर महिमां तेरी, नहीं पावै अजान में । बि..४॥ घरघर साहिब परचा दीजै, भरमै नहीं जिहांन में । बि. ॥५॥ जिनही पाया तिनही छिपाया, भाखै नही पर कानमें । बि.॥६॥ चेतविजय चपलता छोडौ, भूलो मत अशान में । बि. ॥७॥ ॥ अथ दादा जी का स्तवन ।। श्रीगुरु मेरे हीरसूरीन्द्रजयो गुरु,साहिबमेरोहीरसूरीन्दजयो ॥१॥ श्री जिनशासन उद्योत कारी, श्री गुरु हीर भयो ॥२॥ कुअर पितानाथी देवी माता खीमसरा गोत्र लयो॥श्री ही०॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ) संवत् पनरे छयाणुवेवरसे,महोच्छवदीक्षाकीकियो॥श्री०ही०॥४॥ सोलेसें सातके वर्षे पंडित पदही पायो॥ श्री० ही० ॥५॥ सोलेसें संवत् श्राठा के वरसें, वाचक पद ही लयो॥श्री० ही०॥६॥ सोलेसें संवत् दशा के वरसे, सूरीश्वर पदवीथयो।श्री०वी०॥७॥ सोलेसें श्रागरे नगरे, प्राय चौमासो कियो॥श्री० ही० ॥८॥ साह अकब्बरकुप्रतिबोध्यो, अमारपडह ठयों ॥श्री ही०॥॥ लू पाकमतछांडीमेघऋषिजी,पांचसेसुशिष्यभयोश्री०डी०॥१० छमासी मरीरोग निवारी, गुरु मेरे दान दियो ॥श्रीव्ही०॥११॥ नगर जीजीयागुरु छोडाया, गउ उपकारकियो॥श्री० ही०॥१२॥ चिडियामर तरखी गुरु देव,श्री गुरु जस्स भयो॥श्री०हो०॥१३॥ बडा वाद चौरासी जीत्या, जिनमत हरख थयो॥श्री०ही०॥१४॥ देस देसमें गुरु जस पायो, हर्षानन्द लयो॥श्री० हो ॥१५॥ तपगच्छतिश्रीहीरसूरीश्वर,जयधारीजसलहयोश्री०वी०१६॥ विजय दानसूरीश्वरपाटे,तपगच्छपतितिलकभयो॥श्रीव्ही०१७n श्रीरूपरुचि गुरु चरण प्रसाद,दयाचि सुख भयोश्रीव्ही॥१८॥ * जगद्गुरु काष्टक-राग हरिगीत * श्री तपागच्छ पवित्र गगने, सूर्य सम सूरीश्वरा । श्री विजयदान सूरीशपट्टे, प्रावियाजे गुण धरा ॥ जे जैन शासन स्तम्भ रूपे , राजता प्रा भूतले । ते हीर सूरीश्वर जगत् गुरुने, नमन हो अवनीतले ॥१॥ जे धर्म घोरी मुनि गणना, पण हता महोटा मणि । जे पंच महाबत पालता, जगजीवने निज सम गणि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपदेश अमृत पूर जेनों, जगत मांही जल हले ॥ते.॥२॥ . जे देव गुरुवर धर्मना, शुद्ध पंथ ने देखाड़ता। । प्राविश्वमां उपकार करता, कर्म मलने गालता॥ गुणीअल गुरुजी विचर्या, उपकार करवा भूतले॥ते.॥३॥ दिल्ली पति अकबर नरेश ने, बोध प्रापी रीभन्यो। तत्वों जगावीने अहिंसा, स्तंभ रोपी जे गयो । प्रा प्रांखमां प्रांसुभरातां, जड़े नहीं भूतजे ॥ते ॥४॥ श्री वोर प्रभु वावी गया, जे दयारूपी वेलड़ी। जल सींची सींची हेम सुरिए, वेगथी कीधी वड़ो। ते म्लेच्छमांसाम्राज्य मां, खीलावी खते वीरले ते॥५ निज पाटने दीपाववा, सुयोग्य जागवा झानथी। श्री विजय सेन सूरीशने, निज पाट सॉप्यों मानी।। प्रायु वितावीजे गयाछ, स्वर्ग सुन्दर भुतले ॥ ते॥६॥ श्री जैन शासन तत्व भासन, सिद्ध सेन दीवाकग। श्री वज्र के देवेन्द्र सूरि, हेम जेवा सक्षरा ॥ भी हीरला सम हीर पण, चाल्या जता प्रांमुहले ॥ते.७॥ भाद्र शुदि एकादशी दिन, नगर उन्नत भूमि ने। त्यागी गवा स्वर्गे रह्या, त्यां नमन करीये श्रापने । परित्र, दर्शन, शान, म्बाब,षधा निशदिन भूतले । ते होरमरि सम्राट बोधक, विजयताम् अवनितले ॥ते. ८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) जगद्गुरु की जयन्ती। (राग-भेरवी आशावरी, रामकली, धनाश्री) हीरसुरिको नमामि, जगतगुरु हीरसूरि को नमामि ॥ टेर॥ कूराशा नाथी का नंदन, ऊकेश वंश सितारा। विजयदान सरि के पट्टमें, जिन शासन जयकारा ॥जी॥ तेरह साल की उम्र में दीक्षा, बने पंडित सपाया। सवंत सोलह दश में जिनने, प्राचारज पद पाया । ज०२॥ सम्राट अकबर को उपदेश से, धर्मतत्व समझाया। जैन धर्म का प्रेमी विवेकी, हिंसात्यागी बनाया ॥ ज०३० अकबर शाह ने फरमानों से, सरि का मान बढ़ाया। हर सालाना के महीने का, अभय पटह बजवाया ॥ ज०४॥ जीव छुड़ाये कैदी छुड़ाये, जजिया कर भी हटाया। जैन तीर्थ सुरीको देकर, परवाना भी बनाया ॥ ज०५ ॥ अकबर नृप ने श्रीगुरुजी को, जगदगुरु पद दीना। जगद्गुरु गुजरात पधारे, धर्म उद्योत में लीना ॥ ज०६॥ संपत सोलह से त्रेपन में, गुरुजी स्वर्ग पधारे । भादों शुदि में एकादशी को, उन्नतपुर से प्यारे ॥ ज० । गुरुकृपा से सेवक पावे, अानंद हर्ष सपाया। जगद्गुरु के ध्यान शान से, फकीर नेफिक मिटाया ॥ ज०८॥ -:D:: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) गुरु पूजा पूजा प्रथम जलथी करूं, सुरभी शुचि कलश भरूं, निज पाप पंकने दूर टाली. भाव निर्मलता धरूं । मन वचन तननी शुद्धि थी, हुं भावभक्ति प्रादरूं, संसार arप निवारवा, गुरु देवनी पूजा करूं ॥१॥ ॐ श्री गच्छाधिराज श्री मुक्ति विजयगणि वराणां चरणेभ्यो जल यजा महे स्वाहा: कस्तुरी वास बरास चन्दन, घोली केसर सुन्दरूं। पूजु शीतलता कारणे, मिथ्यात्व भावथो श्रोसरू ॥२॥ मन० ॐ श्री० चंदनं यजामहे स्वाहा: दाउडी जासूद जाइ जुइ, गुलाब केवड़ो मोगरू । विधविध सुगन्धी पंचरंगी, कुसुमनी छाबोभरूं ॥ ३ ॥ मन० ॐ श्री पुष्पाणि यजा महे स्वाहाः मघमघ सुगंधी दशांग तगरु, कृष्ण अगरने कुंदरूं। धूप धाणामां धूपो उखेवी, उर्ध्व गतिने नोतरूं ॥ ४ ॥ मन० ॐ श्री० धूपं यजा महे स्वाहाः सोना तणाशुभ पात्रमा, जयणा धरि गोघृत भरूं। दीपो तणी माला धरूं, अज्ञानतमदूरे करूं ॥५॥ मन० ॐ श्री. दीपं यजामहे स्वाहाः गोधूम माणेक अंक अक्षत, शुद्ध मोति पाथरूं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) स्वस्तिक रचु रत्नो ठq, चारे कुगतिने परिहरूं ॥६॥ मन० ॐ श्री० अक्षतान यजामहे स्वाहाः नव नव रसे भर पूर शुद्ध, निवेद थाली सुन्दरूं । पकवान प्रर्प प्रेमी ज्यू, प्रणाहार दशा वरूं ॥७॥ मन ॐ श्री० नैवेद्यम् बजा महे स्वाहाः मनहारी पूरण सरस निर्मल, शुद्ध फल चरणे धरूं । चारित्र दर्शन फलने पामी, भाव रोगने संहरूं ॥ ८॥ मनक ॐ श्री० फलानि यजामहे स्वाहाः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयपुर की चैत्य परिपाटी। मन्दिर का नाम मूलनायकजी का नाम पता तपों का मन्दिर श्री सुमतिनाथजी घोवालों का रास्ता पंचायती मन्दिर श्री सुपार्श्वनाथजी श्रीमालों का मंदिर श्री पार्श्वनाथजी नया मन्दिर भी ऋषभदेवजी मारूजी का चौक विजय गच्छ का मं. मी करियानाथजी कुंदीगरों के मैरूं के पास मोहनबासी श्री केसरियानाथजी मुरजपोल दरवाजाके बाहर घाट का मंदिर श्री पद्मप्रभुनी घाट की गुणो के नीचे दादावादी श्री पाश्वनाथजो सड़क मोती डूंगरी स्टेशन मंदिर श्री ऋषभदेवजो हजूर सहाब की कोठी के सामने स्टेशन के पास लीलाधरजीका उपासरा, ति श्यामलालजीका उपासरा, चौरासी गच्छ की धर्मशाला, पायचन्द्रगच्छका उपासरा, प्रतापचन्दजी ढह का मकान, आदि में भी चैताला है। जयपुर के चारों ओर गांवों में मन्दिर आमेर श्रीचन्दाप्रभुनी मौत । चौ मी मील १८॥ सांगानेर महावीर स्वामो (तपगच्छ) । खोगांव सपार्श्वनाथजी मील ६॥ श्रीचन्दाप्रभुजी (पंचायती) मील ८ (दलाई शान्तिनाथजी मोल १॥ बरखेडा ओ आदिनाथजी मील १७) चाकसू शान्तिनाषजी मील २४॥ मालपुरा श्रीमुनिसुव्रत स्वामीजी ( तपगच्छ)] मील ५० " मीमादिनाथजी (वियज गच्छ)। मुद्रिवः-जयपुर इलेक्ट्रिक प्रिटिंग वास, बौड़ा राणा, जयपुर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ચશોટિ alchbllo rebro le Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com