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________________ ( २६ ) ॥अथ दादाहीरविजय सूरीस्तवन ॥राग थाये। चालो भवी वंदन जईये, हीरविजय सूरी राय चा. ही.. पूजत परमानन्दा, मिले सजन सहु भाय । चा. ॥१॥ दादोजी परचा पूरे, तपगछ संघ सवाय ॥ चा.॥ अकब्बरसाह प्रतिबोधीयों, दिल्लीनों पतिसाय ॥ चा. २ ॥ . मारीरोग निवारियो, जीव हिंसा मिटाय ॥ चा.॥ अमुना के जल उपरें, गुरुवाट बनाय ॥ चा. ॥ ३॥ जिनमत थिरता थापी, जैन धरम दीपाय ॥ चा.॥ दादोजीसेवकांसांनिध्यकारी, फतेन्द्रविजय गुण गायचा.uk ॥ अथ ददाजी पद ॥ राग विलास ॥ देख हो भवि अाज, गुरु चरण देख। त्रिकरण शुद्धभाव करके, पूजो श्री गुरुराज अज्ञानतिमिर दूर विणसे, प्रगट ज्ञान आवाज श्री. दे.॥१॥ श्री गुरुदेवको ध्यान धरत, होत मंगल काज। आज मुझ घर हर्षवल्यो, मिल्यो मुखसमाज । श्री. दे. ॥२॥ अष्ट भय सहु दूर बिणसे, सरै सहु मन काज । ध्यान धरत सुख उपजत, श्रीगुरुने आवाज । श्री. दे.॥३॥ श्रीगुरु हीरविजयदेव सूरीश्वर, तपगछपति महाराज। ' ज्ञानविमल गुरुचरण सेवत, होत सफल सहकाजाश्री.hem Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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