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________________ [३] सांप काटते कहा संघसे, अपना भविष्य ज्ञान । संघनेभी वह जड़ी लगाई, हुये गुरु सावधान ॥ आवो॥१२॥ भस्म ग्रहकी अवधि होते, शासन के सुलतान । आनन्द विमल गुरु जिन्हों को, ननराज सुरत्राण ॥आवो॥१३॥ क्रियोद्धारसे मुनिपंथ को, उद्धरे युग प्रधान । ज्ञान कृपासे दूर हटावे, कुमति का उफाण ॥ प्रावो॥१४॥ जेसलमेर मेवात मोरबी, वीरमगाम मैदान । सत्य धर्म का झंडा गाड़ा, दिनदिन बढ़ते शान ॥ श्रावो॥१५॥ मणिभद्र सेवा करे जिनकी, विजयदान गुरु मान । उनके पट्ट प्रभाविक सूरि, हीर हीरा की खाण ॥ श्रावो॥१६॥ ____ इन गुरुओं की करे श्राशतना, वह जग में हैवान । भक्ति नीर से चरणों पूजे, चारित्र दर्शन ज्ञान ॥ श्रावो ॥१७॥ काव्यम्- (वसंत तिलका) हिंसादि, दूषण विनाश युग प्रधानश्रीमद् जगद् गुरु सुहीर मुनीश्वराणां उत्पत्ति मृत्यु भव दुःख निवारणाय, भक्त्याप्रणम्य विमलं चरणं यजेहं ॥१॥ मंत्र ॐ श्रीं सकल सूरि पुरंदर जगत्गुरु भट्टारक श्री हीर विजयसूरि चरणेभ्यो जलं समर्पयामि स्वाहा ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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