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________________ [२] जिनके चरन में शीष झुकावे, मेदपाट का राण । तपा तपा कह के बुलावे, जैनसिंह बलवान ॥ श्रावो ॥२॥ श्री देवेन्द्र सूरीश्वर त्यागी, देव पूज्य श्रृतवान । कर्म ग्रन्थ आदि शास्त्रों का, किया जिनने निरमाण ॥ श्रावो॥३॥ दादा साहेब धर्मघोष सूरि, त्यागी युग प्रधान । महामंत्रवादी व प्रभाविक, हुये धर्म के प्राण ॥ श्रावो ॥४॥ देवपत्तन में मंत्रपदों से, सागर रत्नप्रधान । गुरु के चरणों में उछाले, रत्न ढेर को आन ॥ श्रावो॥५॥ निर्धन पेथड़ जिनकी कृपा से, बने बड़ा दिवान । शासन का झंडा फहरावे, गुरुकृपा बलवान ॥ श्रावो॥६॥ जिनके वचन से यक्ष कपर्दी, छोड़े मांस वलिदान । सेवक होकर शत्रुजय पर, पावे अपना स्थान ॥ श्रावो॥७॥ ___ जोगणियों ने कारमण कीना, चहा मुनियों का प्राण । उनको पाटे पर चिपटा कर, दिया गुरु ने ज्ञान ॥ श्रावो॥८॥ गुरुके कण्ठको मंत्र से बांधा, यूं ली उनसे वाण । तपगच्छ को उपद्रव नहीं करना, स्थंभित कर अज्ञान॥प्रावो॥६॥ ___एक योगी चूहे के द्वारा, करे गच्छ को परेशान । उसके ऊपद्रवको हटाया, पाया बहु सन्मान ॥ श्रावो॥१०॥ रात में गुरु का पाट उठावे, गोधरा शाकिनी जाण । उनसे भी तब मुनि रक्षा का, लीना वचन प्रमाण ॥ श्रावो॥११॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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