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॥ श्रीः ॥
जगत्गुरु श्री हीरविजयसूरिश्वरजी का
स्तवन
राग (टेर घड़ी धन श्राज की सब को, मुबारक हो २ ) सदा जय हो सदा जय हो, जगत्गुरुदेव की जय हो । कुराशा नाथी के नन्दन, महावीर मार्ग के मण्डन । विजय श्री हीर की जयहो ॥ जगत• ॥१॥ नमें प्रताप और अकबर, अजमखान देवड़ा जुक्कर । हरे दिल की जो संशयहो ॥ जगत्० ॥२॥ गुरु उपदेश को सुनकर लिखे फरमान में अकबर । महिना है की अभयहो || जगत्० ॥३॥ गुरुके गुण को गावे, धर्म भण्डार सुख पावे | मति इज्जत व विजय हो ॥ जगत्० ॥ ४॥ ऐसे गुरुदेव के क्रम में, झुकाऊँ शोर हरदम मैं । बनूं रणजीत निर्भय हो ॥ जगत्० ॥५॥
पुस्तक मिलने का पता -
बाबू चांदमलजी चन्दनमलजी कोचर,
नं० ३३, अपर चीत्तपुर-रोड, कलकत्ता
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