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( ८) सम्राट अन्य संप्रदाय के विद्वानों से मुमुनियों ( श्रमण, जैन साधु) और ब्राह्मयों के साथ ज्यादा समय एकान्त में बैठकर बात चीत करता था", "इससे सम्राट ने इस्लाम धर्म मान्य पुनर्जन्म का सिद्धान्त को; कयामत का दिन और उस संबन्धी बातों को और अपने पेगंबर संबन्धी खयालों से श्रद्धा हटाली थी"।
डो०वि०स्मिथ लिखते हैं कि जैन साधुओं ने निःसन्देह वर्षों तक अकबर को उपदेश दिया था। बादशाह के कार्यों पर इस उपदेश का बहुत प्रभाव पड़ा था। उन्होंने बादशाह से अपने सिद्धान्तों के अनुसार इतने आचरण कराये कि लोग यह समझने लग गये कि बादशाह जैनी होगया।" (अकबर के जैन उपदेशक ले० वि० स्मिथ)
डा०स्मिथ महाशय "अकबर" नामक अपनी पुस्तक के पृष्ट १६६ में लिखते हैं कि “सन् १५६२ के बाद उसकी जोकृतियां हुई हैं, उनका कारण बहुत अंशों में उसका स्वीकार किया हुआ जैनधर्म ही था, अबुलफजल ने विद्वानों की जो सूची दी है उसमें उस समय के तीन महान समर्थ विद्वानों के नाम आये हैं । वह हीरविजयसूरि, विजयसेनसूरि और भानुचन्द्र उपाध्याय ये तीनों जैन गुरु या धर्माचार्य थे।"
डा० स्मिथ की "अकबर" नाम की पुस्तक में एक माके की बात यह है कि उन्होंने उक्त पुस्तक के पृष्ट २६२ में "पिन हरो” ( Pinheiro ) नाम के पोर्तुगीज पादरी के पत्र के उस अंश को प्रकट किया है, जो ऊपर की बात को जाहिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com