________________
[१४]
( ढाल-८)
( तर्ज-सरोदा कहाँ भूल आये)
श्रावो भाई श्रावो, गरु के गण गात्रो॥ टेर ।। देवीं कहे देवेन्द्र सूरिके , चरण कमल में जाओ। बढती उन्ह के गच्छ की होगी, कुपथ में मत जाओ।गुरु ॥१ पद्मावती कहे तिलक सूरि के, शिष्य को स्तोत्र पढ़ायो। प्रतिदिन तपगच्छ बढ़ता रहेगा,प्रभसूरि! मत घबराओ।गुरु।। २ मणीभद्र कहे दानसूरि को, विजयदान वरसावो । कुशल करूंगा विजय तपाका.विजय ध्वजा फरकावो ।गुरु।। ३ ऐसे गच्छ में जगदगुरु,श्री हीर सूरि को गावो। वर्ष इक्कीस हजार चलेगा, वीर शासन मन लावो ।।गुरु॥ ४ देश प्रदेशों में क्यों दोड़ो, गुरु चरणों में जावो । संग्राम सोनी पेथड़ सम ही, लक्ष्मी इजत पावो ।। गुरु ।। ५ जगद्गुरु के चरण कमलमें, फलपूजा फल पावो। चारित्र दर्शन ज्ञान न्याय से, जय जय नाद गजावो ||गुरु ।। ६
काव्यम्-हिंसादि०
मंत्र-ॐ श्री फलं समर्पयामि स्वाहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com