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________________ पडिक्कमणां प्रकरण ढाल,योग शास्त्र व उपदेश माल । पयन्ना चार रसाल, पढे गुरु के भी दिल को लुभावे ॥धन०॥५॥ हीरजी पाटण में आय, नमें दानसूरि के पाय । सुने वाणि हर्ष बढाय, पाकदिल संयम रंग जमावे ॥धन० ॥६॥ पन्द्रहसे छयाणु की साल, ले दिक्षा हीर सुकुमाल । बने हीर हर्ष, मुनि बाल, न्याय पागम का ज्ञान बढावे॥धन०॥७॥ संवत् सोला सो सात, पन्यास हुये विख्यात । हुये वाचक संवत अाठ, पाट सूरि की दसमें पावे ॥धन०॥८॥ हुए पूज्य सूरीश्वर हीर, नमे सूबा राज वजीर । चन्दन चर्चित गंभीर, धीर चारित्र सुदर्शन गावे॥धन ॥६॥ काव्य-हिंसादि० मंत्र-ॐ श्री चन्दनं समर्पयामि स्वाहा ॥२॥ तृतीय पुष्प पूजा दोहा हीर हर्ष हुये सूरि, हुआ घरघर अानन्द । शासन की शोभा बढी, यश फैला गुण कन्द ॥१॥ (ढाल-३) (तर्ज-कदमों की छाया में प्रभु के पैर पूजना) हीर सूरिश्वर जी, गुरु के गुण गाइये ॥ टेर ॥ हीर मुनीश्वर, हीर सुरीश्वर । अकल महिमा रे भक्ति से फल पाइये ॥ हीर०॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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