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________________ [१२] कल्याणमल के कष्ट पिंजर से, खंभात संघ को छुड़ाया । हुमायूं का इल्म बताया, जम्बू सूत्र सुनाया । जगत ०|३| भानुचन्द्र ने शाही द्वारा, वाचक का पद पाया । शाही के पुत्र को ज्ञान पढाया, तीरथ पट्टा पाया । जगत०|४| पट धर सेन सूरि आलम में, गौतम कल्प गवाया । पाटण राज नगर खंभात में, पर गच्छी को हराया। जगत०।५। सुरत में श्रीभूषणदेव को, वाद में दूर भगाया । शाही सभा में पांच से भटसे, वाद में जय अपनाया जगत०|६| अकबर से षटू जल्प को पाया. मृत धन आदि हटाया । सवाई हीर का बिरूद पाया, परतिख पुन्य गवाया जगत०|७| अकबर के पंण्डित सभ्यों में, जिनका नाम लिखाया । विजय सेन भाणचन्द्र अमर है, शासन राग सवाया । जगत ८ । अष्टावधानी नंदन विजयजी, सिद्धि चन्द्र गणराया । विवेक हर्षे गणी इन्हो ने, शाही से धर्म कराया जगत ०६ पड पट्टधर श्री देव सूरि ने, वादी से जय सुर देवचन्द आदि देवों ने, गुरु का मान बढाया | जगत०।१०। बिरूद जहांगीर महातपा यूं, सलीम शाह से पाया । राणा जगतसिंह से भी दया का, चार हुकुम लिखवाया। ज० ॥११॥ वाचक विनय ने लोक प्रकाश से, सच्चा पंथ बताया । यशो विजयजी वाचक गुरु के, ज्ञान का पार न पाया । ज०।१२श खरतर पति जिन चन्द्र सूरि ने, जगगुरु का यश गाया । पाया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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