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[११] फिर जन्म मास अपना सारा, जीव घात यूं छै महिना टारा। चारित्र सुदर्शन भय हारा ,गुरुचरण में अक्षत पद पाया॥६॥
काव्यम्-हिंसादि. मत्र-ॐ. श्री अक्षतान समर्पयामि स्वाहा ॥६॥
सप्तमी नैवेद्य पूजा
दोहा जगदगुरु ने जीवन में, कीना तप श्री कार । तेले बेले सैकडों, व्रत भी चार हजार ॥१॥ प्रांबिल निवी एकासना, और विविध तप जान । प्रतिदिन बारह द्रव्य का, करे गुरुजी परिमाण ॥२॥ काउसग्गध्यान अभिग्रह करे, प्रतिमा बार मनाय । दशकालिक नित्य जपे, चार क्रोड़ सज्झाय ॥३॥ पण्डित एकसो आठ थे, साधु कई हजार । एक सूरि उवझाय आठ, यह गुरु का परिवार ॥४॥
(ढाल-७) (तज-रामकलि-केशरिया ने कैसे जिहाज तिरस्या) जगद् गुरु आज अमोलक पाया, नर भव सफल मनाया ।टेर। जगद् गुरु ने जगत के हित में, सारा जीवन बिताया। आपके शिष्य प्रशिष्यो ने भी, कीना काम सवाया।जगत०।। वाचक शान्तीचन्द्र ईण ने, कृपा ग्रन्थ बनाया। सुन कर शाह ने अपने बदन में,मुरदा नहीं दफनाया।जगता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com