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________________ [ 20 ] षष्ठी अक्षत पूजा । दोहा जगदगुरु करे जगत में, भ्रातृ प्रेम प्रचार । अहिंसा के उपदेश से, अहिंसक बने नरनार ॥ १ ॥ ( ढाल - ६ ) अहिंसा का डंका आलम में, श्री जगदगुरु ने बजवाया । महावीर का झंडा भारत में, श्री हीर सुरी ने फहराया ॥ टेर ॥ मय रानी रोह नगर स्वामी, शिकार को छोड़े सुख कामी । सुलतान सिरोही का नामी, उनका, हिंसादि छुड़वाया ॥ १ ॥ अकबर सुबह में खाता था, सवा सेर कलेवा आता था । चिड़ियों की जीभ मंगाता था, उससे उसका दिल हटवाया ॥ २ ॥ कई पशु पक्षि को मारा था, और कई पर जुल्म गुजारा था । अकबर का यह नित्य चारा था, उसके लिये माफी मंगवाया ॥ ३ ॥ पिंजर से पक्षि छुड़वाये, कई कैदी को भी छुड़वाये | कई गैर इन्साफ को हटवाये, कइयों का जीवन सुलझाया ॥ ४ ॥ काला कानून था जजिया कर जनता को सतावे दुःख देकर । अकबर को मजहब समझा कर, जजिया कर पाप को धुलवाया ॥५॥ पर्यावरण बारह दिन प्यारे, किसी जीवकों कोई भी नहीं मारे । अकबर यूं श्राज्ञा पुकारे, फरमान पत्र गुरु ने पाया ॥ ६ ॥ संक्राति के रवि के दिन में, नत्र रोज मास ईद के दिन में । सूफियान मिद्दीर के सब दिन में, जीवघात शाही ने रुकवाया ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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