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________________ पुरुष है जो निष्पाप धर्म मार्ग का उपदेश करता हो ? सभा में से उत्तर दिया की जैनधर्म के श्रीहीविजय सूरि ऐसे ही हैं" (जै. सा, सं. ई. प ५४० ) बादशाह के कानों तक महाप्रतापी श्री हीरविजयसूरिजी का नाम पहुँच गया था। वहां एक बार चम्पाबाई (सेठ थानसिहजी की माता ) ने छै महीने के उपवास किये, उसका जलूस निकलाथा बादशाह ने पूछा यह जलूस किसका है, जावाब मिला कि एक बाई ने छै महीने के व्रत किये हैं, यह सुनकर बादशाह को आश्चर्य हुआ, उसने बाई को बुलाकर उससे सब हाल पूछा छै महिने का निराहार व्रत सुनकर बादशाह चोकना हो गया। आखिर चम्पा बाई को पूछा तुम किस की कृपा से यह महातप कर रही हो। चम्पा बाई ने कहा देव पार्श्वप्रभु और गुरु सूरिपुरंदर युग प्रधान भट्टारक श्री हीरविजयसूरिजी की कृपा से यह तप कर रही हूँ, बादशाह ने चम्पा बाई की तपश्चर्या की परीक्षा की और सुवर्ण का चूड़ा इनाम में दिया । इसी समय सूरिजी गुजरात में हैं ऐसा मालूम हुअा, बादशाह के दिल में सूरिजी महाराज के दर्शनों की उत्कट भावना जाग्रत हुई, और मोदी और कमाल नामक दो आदमियों को अपना फरमान लेकर उनको गुजरात मेजे। दोनों आदमी अहमदाबाद के सूबेदार की चिट्ठी लेकर जैनसंघ के श्रावकों के संग उसी समय सूरिजी महाराज गंधार-बंदर में विराजमान थे वहां गये। बादशाह का अाग्रह पूर्वक निमन्त्रण प्राप्त कर बादशाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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