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बादशाह ने प्रसन्न होकर सुरिजी महाराज को अपने पास रहा हुवा पुस्तक भण्डार अर्पण किया, बाद में सुरिजी चातुमास के लिये आगरा पधारे । वहां सूरिजी के उपदेश से चिन्तामणि पाश्च नाथजी का मन्दिर मानमलजी चोरडीया ने बनाया, और सूरिजी के करकमलों से चार्तुमास के बाद प्रतिष्ठा करवाई, चार्तुमास में पयूषण के दिनों में बादशाह से अहिंसा पलवाई चातुमास बाद सूरिजी शौरीपुर तीर्थकी यात्राकोपधारे, वहांभीप्रतिष्टा कराई, वहां से मथुरा पधारे वहां ५२७ स्तूपों को वंदना कर पुनः फतेहपुर सीकरी पधारे; सूरिजी के दर्शन कर बादशाह बहुतही प्रसन्न हुये । सूरिजी ने बादशाह को अहिंसा धर्म का तत्व समझाया, प्राणीमात्र का कल्याण कारी मार्ग दिखाया; बादशाह को अहिंसा धर्म के प्रति प्रेम उत्पन्न हुवा और पयूषणा पर्व के ८ दिन और अपनी तरफ से ४ दिन उसमें मिला कर १२ दिन समस्त भारत में अहिंसा पलवाई जाय इनका फरमान दिया; डाबर सरोवर में से मछलियों और अन्य पक्षीयों काशिकार बंद कराया; और भी कै एक दिन हिंसा बंद कराई। सूरिजी का अद्भुत त्याग उत्तम चारित्र महापांडित्वत्यशुद्ध ब्रह्मचर्य और श्रादर्शअहिंसा आदि गुणों से बादशाह सूरिजी पर बहुतहीप्रसन्न हुआ और सूरिजी को "जगदगुरुजी' का अपूर्व मान का बिरुद दिया। वि० सं०१६४१
इसी समय बादशाह ने केदीयों को छोड़ दिये पिंजरे में से पक्षीयों को मुक्त कर दिये । (जै. साः स..पू. ५४७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com