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________________ ( ३३ ) गुरु पूजा पूजा प्रथम जलथी करूं, सुरभी शुचि कलश भरूं, निज पाप पंकने दूर टाली. भाव निर्मलता धरूं । मन वचन तननी शुद्धि थी, हुं भावभक्ति प्रादरूं, संसार arप निवारवा, गुरु देवनी पूजा करूं ॥१॥ ॐ श्री गच्छाधिराज श्री मुक्ति विजयगणि वराणां चरणेभ्यो जल यजा महे स्वाहा: कस्तुरी वास बरास चन्दन, घोली केसर सुन्दरूं। पूजु शीतलता कारणे, मिथ्यात्व भावथो श्रोसरू ॥२॥ मन० ॐ श्री० चंदनं यजामहे स्वाहा: दाउडी जासूद जाइ जुइ, गुलाब केवड़ो मोगरू । विधविध सुगन्धी पंचरंगी, कुसुमनी छाबोभरूं ॥ ३ ॥ मन० ॐ श्री पुष्पाणि यजा महे स्वाहाः मघमघ सुगंधी दशांग तगरु, कृष्ण अगरने कुंदरूं। धूप धाणामां धूपो उखेवी, उर्ध्व गतिने नोतरूं ॥ ४ ॥ मन० ॐ श्री० धूपं यजा महे स्वाहाः सोना तणाशुभ पात्रमा, जयणा धरि गोघृत भरूं। दीपो तणी माला धरूं, अज्ञानतमदूरे करूं ॥५॥ मन० ॐ श्री. दीपं यजामहे स्वाहाः गोधूम माणेक अंक अक्षत, शुद्ध मोति पाथरूं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034847
Book TitleJagadguru Shree Hirvijaysuriji ka Puja Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Kochar
PublisherCharitra Smarak Granthmala
Publication Year1940
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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