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होकर (बाहिरूचर्याहे ) बहिरात्मापना छोड़ दे ( अंतरसहिउ ) अन्तरात्मा होकर (परिझायहि ) परमात्मा का ध्यान कर ।
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गाथा - ६
छठवीं । अब तीन प्रकार के आत्मा (कहते हैं) । आत्मा .... आत्मा... करते हैं न ? परन्तु आत्मा की पर्याय के तीन प्रकार हैं। पर्याय के, हाँ! समझ में आया ? अकेला सब आत्मा अनादि निर्मल ही है - ऐसा कहते हैं वह मिथ्या; अकेला मलिन ही है। ऐसा कहते हैं वह मिथ्या । यह तीन प्रकार के आत्मा... समझ में आया ? आत्मा के तीन प्रकार
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तिपयारो अप्पा मुणहि परू अंतरू बहिरप्पु ।
पर झायहि अंतरसहिउ बाहिरू चयहि णिभंतु ॥ ६ ॥
आत्मा को तीन प्रकार जानो । आत्मा की पर्याय अवस्था से, हाँ! अवस्था से। द्रव्यरूप से तो त्रिकाल एकरूप है। पर्याय में - अवस्था में - हालत में भूल, भूल का मिटना और निर्भूल की पूर्णता की प्राप्ति सब पर्याय में है । क्या कहा यह ? बहिरात्मपना भी उसकी पर्याय में है। राग, पुण्य को अपना मानना, वह उसकी पर्याय में है । अन्तर आत्मपना - आत्मा शुद्ध है - ऐसा मानना उसकी पर्याय में है और पूर्ण परमात्मारूप परिणमित होना, वह भी उसकी पर्याय में है ।
आत्मा को तीन प्रकार जानो। परमात्मा..... पहले यह लिया । उत्कृष्ट परमात्मदशा । शक्तिरूप से परमात्मा तो प्रत्येक आत्मा है । क्या कहा ? जो परमात्मा की पर्याय प्रगट होनी है, सादि-अनन्त..... वह सब शक्तियाँ वर्तमान अन्तरात्मा में पड़ी हैं। वर्तमान शक्ति पड़ी है परन्तु प्रगट पर्याय की अपेक्षा यहाँ परमात्मा की बात करते हैं। समझ में आया ? अप्रगटरूप से - शक्तिरूप से तो प्रत्येक आत्मा में जितनी परमात्मा की पर्याय प्रगट होनी है, वह सब अप्रगटरूप से - शक्तिरूप से अन्दर आत्मा में अभी पड़ी है। समझ में आया ? परन्तु प्रगट पर्याय की अपेक्षा से परमात्मा होवे, उसे यहाँ परमात्मा गिना गया है । आहा... हा...!