Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 393
________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ३८७ परिणाम में एकदम वीतरागता और निर्मलता आ जाती है।०४५ इसलिए उसे उपशान्तमोह गुणस्थान कहते हैं। उपशमश्रेणी का यह अन्तिम गुणस्थान है। यहाँ से जीव का पतन दो कारणों से होता है १. भवक्षय से २. कालक्षय से। इस गुणस्थानक पर मनुष्य आयु पूर्ण होने पर जीव देवगति में जाता है और सीधे चतुर्थ गुणस्थान पर आ जाता है, कालय होने से पतन होने पर वह जिस क्रम से ऊपर चढ़ता है, उसी क्रम से नीचे के गुणस्थानों में आ जाता है। कभी-कभी प्रथम गुणस्थानक तक पहुँच जाता है। __इस गुणस्थान की कालमर्यादा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। १२. क्षीणमोहगुणस्थान - मोहनीयकर्म का सर्वथा क्षय होने के पश्चात् ही यह गुणस्थान प्राप्त होता है। यह आध्यात्मिक-विकास की पूर्णता की ओर बढ़ती हुई अवस्था है। इस गुणस्थान को प्राप्त करने वाले व्यक्ति का पतन नहीं होता है। अष्टकों में मोह प्रधान है। जिस तरह प्रधान सेनापति के भाग जाने से सेना स्वतः भाग जाती है, उसी तरह मोह के परास्त होने पर अन्तर्मुहूर्त में ही दर्शनावरण, ज्ञानावरण और अन्तराय ये तीनो घातिकर्म भी नष्ट होने लगते हैं। साधक अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतचारित्र से युक्त होकर विकास की अग्रिम श्रेणी में चले जाते है। इसका अजघन्य उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त होता है। इस गुणस्थानक पर मरण भी संभव नहीं है। १३. सयोगीकेवली गुणस्थान - चार घातिकर्मो का क्षय करके अनंतचतुष्टय से युक्त आत्मा का गुणस्थान सयोगीकेवली गुणस्थान कहलाता है। इस गुणस्थानक पर साधक को मनयोग वचनयोग और काययोग होते हैं, इसलिए इसे सयोगी कहा गया है। योग के कारण इस गुणस्थान में मात्र एक सातावेदनीय का ही बंध होता है। कषाय के अभाव में स्थिति तथा रस का बंध भी नहीं होता है, अतः यहाँ प्रथम समय में सातावेदनीय का बंध होता है, दूसरे समय में उदय में आता है और तीसरे समय में निर्जरित हो जाता है। इस अवस्था में स्थित व्यक्ति को जैनदर्शन में अर्हत, सर्वज्ञ, केवली, जिनेश्वर कहा जाता है। यह वेदान्त के अनुसार सदेहमुक्ति की अवस्था है। ७४५. (क) अधोमले यथानीते कतके नाम्भोऽस्तु निर्मलम्। उपरिष्टात्तथा, शान्तं मोह ध्यानेन मोहने। -सं. पंचसंग्रह -१/४७ (ख) गोम्मटसार, गाथा-६१-६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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