Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 447
________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४४१ अन्तर सामने आता है। बड़ी से बड़ी रकम दहेज में मांगते है। यह नारी जाति का नृशंस अपमान है। जिस प्रकार अविकसित, अशिक्षित नारी एक समस्या है उसी प्रकार हर क्षेत्र में पुरुषों के समान शिक्षित व संस्कारित होने की मांग भी एक गंभीर समस्या है। अगर अशिक्षित नारी में स्त्रीत्व के गुणों के विकास संभव नहीं है तो पुरुषों के समान शिक्षा दीक्षा में भी स्त्रीत्व गुणों का हास ही है। उन गुणों के खिलने की संभावना न के बराबर है। पुरुष उपार्जन एवं संघर्ष की क्षमता में आगे है तो नारी में भावनात्मक उत्कृष्टता एवं रचनात्मक सूझबूझ का बाहुल्य है। स्त्रियाँ पुरुष से न हीन है न पुरुष के समान है। जैसे चन्द्रमा सूर्य से न तो हीन है और न ही सूर्य के समान है। जैसे हवा जल से न तो हीन है और न समान है। जीवन जीने लिये दोनों की ही आवश्यकता है। यह ठीक है कि स्त्री की शारीरिक संरचना एवं गुणों में पुरुष से भिन्नता है। स्त्रियों में करुणा, वात्सल्य, ममता, त्याग, बलिदान की भावना अधिक होती है जबकि पुरुषों में प्रायः कोमलता का अभाव होता है। अतः जब तक स्त्रियाँ अपने भिन्न व्यक्तित्त्व, भिन्न गुणों के बारे में नहीं सोचेंगी तब तक वह पुरुष के समक्ष एक सहयोगी शक्ति के रूप में प्रस्तुत नहीं होगी। स्त्री को पुरुष के समकक्ष मानना या उससे कमजोर मानना दोनों ही स्थितियाँ खतरनाक है। पश्चिम में स्त्रियों ने विद्रोह किया, आंदोलन किया परिणाम यह हुआ कि स्त्रियाँ पुरुषों से समानता की होड़ में शामिल हो गई। जैसा पुरुष करते हैं वैसा स्त्रियों को भी करना चाहिए। जो शिक्षा पुरुष को मिलती है उसी प्रकार की शिक्षा स्त्री को भी मिलना चाहिए। पुरुष सैनिक बनकर युद्ध में लड़ने जाते है तो स्त्रियों को भी युद्ध के मैदान में सैनिक बनकर डटे रहना चाहिए। हर क्षेत्र में पुरुषों की नकल करने से, पुरुषों जैसी वेशभूषा पहनने से, पुरुषों जैसे शिक्षा पाकर स्त्री एक नकली पुरुष बन जाती है, असली स्त्रित्व को खो देती है। असली स्वर्ण और नकली स्वर्ण में जितना अन्तर होता है उतना ही अन्तर नकली पुरुष बनी स्त्री में और असली पुरुष में होता हैं। क्योंकि जिन गुणों में स्त्री पुरुषों की प्रतिस्पर्धा करने जा रही है वे गुण तो पुरुषों में सहज ही होते हैं किंतु स्त्रियों के लिए वे असहज धर्म है। ऐसी स्थिति में स्त्रियाँ अशोभनीय हो जाएगी। परिवार टूटने लगेंगे। पश्चिम में जिस प्रकार परिवार टूट रहे हैं, परस्पर प्रेम समाप्त हो रहा है वैसा ही भारत में भी होगा। क्यों कि भारत में भी पुरुष की समानता का दौर चल पड़ा है। प्रकृति ने पुरुषों का दायित्व अलग निर्धारित किया है स्त्रियों का अलग। दोनों की शारीरिक रचना, दोनों के गुण भिन्न-भिन्न है। स्त्रियों में त्याग, बलिदान, वात्सल्य, ममता, करुणा, सेवा, कोमलता, मृदुता जैसे गुण सहज पाये जाते है। पुरुष बनने की नकल में वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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