Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 451
________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४४५ सामाजिक स्तर पर प्रोग्राम चलाए जाए तो सफलता मिल सकती है। इसके लिए आवश्यक है हर विद्यालय में प्राथमिक कक्षा से ही अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि सिद्धान्त व प्रयोग दोनों को पाठ्यक्रम में लागू कर दिया जाय तो उम्र के साथ-साथ आध्यात्मिक संस्कार भी मस्तिष्क में परिपक्व होते जायेंगे। कच्ची मिट्टी को जिस आकार में ढालना चाहे ढाल सकते हैं। विद्यार्थी जीवन में ही बच्चों में आध्यात्मिक सिद्धान्त हृदय में उतर जायेंगे तो मजबूत जड़ों से युक्त आध्यात्मिक सिद्धान्त का शानदार वृक्ष पल्लवित होगा जिसकी घनी छांव तले सारा विश्व शांति की सांस ले सकेगा। तब एक नया युग आएगा जिसमें मनुष्य की महत्ता, सत्ता, संपत्ति, शक्ति के आधार पर नहीं होगी बल्कि आध्यात्मिक संस्कारों और नैतिक मूल्यों के आधार पर होगी। जन-जन में जागृति लाने के लिए छोटी-छोटी सेमिनार, शिविर, संगोष्ठियाँ आयोजित की जाए साथ ही राजनैतिक क्षेत्रों में, प्रवचन मालाएँ आयोजित की जाए। इसके अलावा आधुनिक संचार माध्यमों से आध्यात्मिक सिद्धान्तों को इसके व्यावहारिक उपयोगिता को विदेशों तक प्रचारित किया जाये। जब जन-जन के मन में होगी, अध्यात्म के प्रति निष्ठा। तब समस्याओं का होगा, अंत विश्वशांति की होगी प्रतिष्ठा।। अध्यात्म की महत्ता बताते हुए उ. यशोविजयजी ने भी कहा है कि - "अध्यात्मशास्त्र रूपी सुराज्य में धर्म का मार्ग सुगम होता है, पापरूपी चोर भाग जाते हैं और अन्य कोई उपद्रव नहीं होता है।"८०८ शोधप्रबन्ध लिखते समय 'आध्यात्मिक ग्रंथों को आधार लेकर जो चिंतन मनन हुआ उससे यही निष्कर्ष निकला कि आध्यात्मिक सिद्धान्त ही विश्व की समस्याओं का अंत करने में सफल है। ८०८. अध्वा धर्मस्य सुस्थः स्यात्पापचौरः पलायते। अध्यात्मशास्त्र सौराज्ये न स्यात्कश्चिदुपप्लवः।।१३। अध्यात्म माहात्म्य अधिकार - अध्यात्मसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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