Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 435
________________ . उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४२६ श्रद्धा और तत्परता के साथ कर सके। उत्कर्ष की शिक्षा देने का अधिकारी वही होता है जो अपना उत्कर्ष करने में पहले सक्षम हो। रेलगाड़ी के सभी डिब्बे अपना-अपना बोझ ढोते और गति पकड़ते हैं, पर उन सबका सूत्र संचालन इंजन को करना पड़ता है। इंजन में खराबी आ जाय, वह रुक जाय तो बाकी डिब्बे समर्थ होते हुए भी निश्चित मार्ग पर चलने का साहस नहीं कर सकेंगे। उसी प्रकार इंजन के समान नेता का शौर्य साहस त्याग और बलिदान अनुकरणीय हो तो उसके पीछे चलने वाले न तो कम पड़ते है न धीमें चलते है। भारत में परतन्त्रता काल में नेतृत्त्व का जो प्रभाव जन साधारण पर देखा गया उसका यही कारण था कि नेतृत्त्व सर्वांगीण व्यक्तित्त्व में उभरा था। राजनीति के साथ अध्यात्म का नैतिक पक्ष भी जुड़ा हुआ था। त्याग, साहस, सूझबूझ, विचारशीलता कथनी और करनी की एकता आदि सद्गुणों का वही चमत्कार था कि सर्वसाधारण उनकी निर्दिष्ट दिशा में चलते थे। आज नेता राजा हो गये त्याग का स्थान लालच ने ले लिया कर्मठता प्रमाद में बदल गयी नेता पद जिस त्याग और तपस्या के बाद मिलता था वही आज भोग और विलासिता का कारण बन गया। फलतः राजनीति ने आज व्यवसाय का रूप धारण कर लिया है। हर किसी में नेता बनने की होड़ लगी है। कुर्सी और गद्दी पाकर काम के नाम पर केवल भाषण करना और उपदेश देना किसे घाटे का सौदा लगेगा? अध्यात्मविहीन राजनीति का ही एक भयंकर दुष्परिणाम भ्रष्टाचार है, जिसका हम पृथक से वर्णन करेंगे। नेता आज बदनाम शब्द हो गया है। प्रायः सभी देशों की राजनीति की यही दुर्दशा है। वर्तमान में कई राजनेता अपने स्वार्थ के लिए अपने देश के साथ ही गद्धारी कर लेते है उनसे क्या आशा रखी जाय कि वे विश्वमैत्री का शंखनाद करें और वसुधैव कुटुम्बकम् के उद्घोष को विश्वव्यापी बनाए। आचार्य श्री महाप्रज्ञ का कथन है कि आज सभी क्षेत्रों पर राजनीति का प्रभाव है। सारी शक्ति राजनीति के हाथ में है अतः आवश्यक है कि राजनीति को धर्मनीति से जोड़ा जाय। महात्मा गांधी ने कहा- मेरे लिए धर्महीन राजनीति निरी कूड़ा करकट है और सदैव त्याज्य है। राजनीति का सम्बन्ध राष्ट्रों से है और जिसका सम्बन्ध राष्ट्रों के कल्याण से हैं, उसमें सभी धार्मिक प्रवृत्ति के पुरुषों को रुचि लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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