Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 442
________________ ४३६/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री सम्प्रदाय का सम्बन्ध आचार की बाह्य रुढ़ियों तक सीमित है। इसलिए वह बाहरी है। सम्प्रदाय यदि धर्म से रहित है तो वह ठीक वैसा ही है जैसे आत्मा से रहित शरीर। सम्प्रदाय धर्म का शरीर है और शरीर का होना बुरा भी नहीं हैं किंतु जिस प्रकार शरीर में से आत्मा निकल जाने के बाद वह शव हो जाता है और परिवेश में संडांध व दुर्गन्ध फैलाता है उसी प्रकार धर्म से रहित सम्प्रदाय भी समाज में घृणा और अराजकता उत्पन्न करते हैं, सामाजिक जीवन को गलित व सड़ांधयुक्त बनाते है। वस्तुतः धर्म निष्ठा के साथ मानवीय सद्गुणों को जीवन में जीने के प्रयास से जुड़ा है, जबकि सम्प्रदाय केवल कुछ रुढ़ क्रियाओं को ही पकड़कर चलता है। नैतिक सद्गुण त्रैकालिक सत्य है, वे सदैव शुभ हैं। जबकि साम्प्रदायिक रुढ़ियों का मूल्य युग विशेष और समाज विशेष में ही होता है अतः वे सापेक्ष हैं। जब इन सापेक्षिक सत्यों को ही एक सार्वभौम सत्य मान लिया जाता है तो इसी से सम्प्रदाय वाद का जन्म होता है। यह सम्प्रदायवाद वैमस्य और घृणा के बीज बोता है।"७६६ यदि व्यक्ति धार्मिक है और किसी सम्प्रदाय से जुड़ा है तो वह बुरा नहीं है किंतु यदि व्यक्ति सम्प्रदाय में ही जीता है धर्म में नहीं, तो वह निश्चय समाज के लिए एक चिन्ता का विषय है। आज हम सम्प्रदाय में जीते हैं, धर्म में नहीं। यह साम्प्रदायिक कट्टरता ही खतरनाक है। साम्प्रदायिक विग्रह से राष्ट्र शक्तिहीन होता है और व्यक्ति का मन अपवित्र होता है। सभी धर्मों की मूलभूत शिक्षाएँ तो एक समान ही है। विविध धर्मों में . भिन्नता देश, काल और आवश्यकता के अनुसार हुई। एक कवि का कथन है - “गवामनेकवर्णानां, क्षीरस्यास्त्येकवर्णता। तथैव सर्वधर्माणां, तत्त्वस्यास्त्येकवस्तुता।।" गाये अनेक रंगों की हैं पर उनका दूध एक ही रंग का होता है। उसी प्रकार धर्म अनेक और भाषा भी अनेक है परंतु तत्त्व सबका एक है। धर्मों में जो दृश्यमान भेद है, वह नाममात्र का ही है, वास्तविक नहीं। जो जल समुद्र में लहराता है, वही जल ओस की बूंद में भी है। “धर्म को यदि हम केन्द्र बिन्दु माने तो सम्प्रदाय व्यक्ति रुपी परिधि-बिन्दु को केन्द्र से जोड़ने वाली त्रिज्या रेखा के समान है। एक केन्द्र बिन्दु से परिधि बिन्दुओं को जोड़ने वाली अनेक रेखाएँ खींची जा सकती है। यदि वे सभी रेखाएँ परिधि बिन्दु को केन्द्र से जोड़ती है जब तो वे एक दूसरे को नहीं काटती अपितु केन्द्र पर मिल जाती है। किन्तु कोई भी ७६६. डॉ. सागरमल जैन अभिनंदन ग्रंथ : धर्म का मर्म, पृष्ट ३४६ -डॉ. सागरमल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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