Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 434
________________ ४२८/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री संलग्न रहते हैं, वे यदि उपयोगी कार्यों में लग सके तो संसार में गरीबी बीमारी अशिक्षा आदि का पूरी तरह सफाया होने में देर न लगे। संसार के राजनीतिज्ञों के पास सारे साधन मौजुद है। उच्च शिक्षा, सविकसित मस्तिष्क, चतुर सलाहकार जनसहयोग सभी कुछ तो उन्हें प्राप्त है। कमी केवल एक ही है वह है अध्यात्म की, उदारता और उदात्त भावनाओं की। आज राजनीति की आत्मा अत्यंत दूषित हो गई है। कथनी तथा करनी में जमीन आसमान का अंतर होता है। उदाहरण के रूप में पाकिस्तान अमरीकी गुट में हैं किन्तु सही अर्थ में तो वहाँ जनतंत्र भी नहीं है, वह अधिनायकतावादी है। उसने महान लोकतंत्र को क्षतविक्षत करने का शक्तिशाली प्रयत्न किया और वह भी अमेरिका के शक्ति संरक्षण में किया जो जनतंत्र के विस्तार में सबसे अगुआ है। यह विरोधाभास कितना आश्चर्यकारी है। एक ओर जनतंत्र के विस्तार की अदम्य उत्कण्ठा और दूसरी ओर एक महान जनतंत्र के विकासमान पौधे पर कुठाराघात। इस बिन्दु पर पहुँचकर हम राजनीति की आत्मा को देखते है तो पता चलता है कि उसका गठबंधन सिद्धान्त के साथ उतना नहीं होता है जितना स्वार्थपूर्ति के साथ होता है। सेवा का पाठ पढों। ये बिना व्यक्तित्त्व का परिमार्जन किये बिना सत्ता में जा पहुँचने वाले उन अनगढ़ व्यक्तियों के हाथों में पढ़कर व्यवस्थाएँ अभिशाप सिद्ध होती है। अध्यात्म के अभाव में नेतृत्व का जो स्वरूप आज बना है उसे देखते हुए यही विश्वास होता है कि नवनिर्माण की उनसे कोई आशा नहीं की जाना चाहिए। भारत में कुछ दशकों पूर्व नेता शब्द सार्थक था तथा नेताओं का कर्त्तव्य भी। पर अब वह शब्द सम्मानजनक नहीं रहा। नेता काम लेते ही आम व्यक्ति की नजरों में एक खुदगर्ज व्यक्ति की तस्वीर घूम जाती है, जिसे अपने स्वार्थ के अतिरिक्त किसी से मतलब नहीं। जो कुर्सी एवं पद के लिए आम लोगों के हितों की बलि भी चढ़ा सकता है। राजनीति के क्षेत्र ऐसे निठल्ले व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है। विभिन्न राजनैतिक दलों के राजनेताओं के कार्यक्रम घोषणापत्र उत्तम होते हैं। उनमें से किसी भी दल की घोषित विचारणा व कार्यपद्धति ठीक कर कार्यान्वित हो तो समाज में सुख शांति समृद्धि की संभावना मूर्तिमान हो सकती है पर देखा यह जाता है कि बेचारे अनुयायी तो दूर, दलों के मूर्धन्य राजनेता भी व्यक्तिगत जीवन में उस नीति को कार्यान्वित नहीं करते। कहते कुछ है करते कुछ है। आज ऐसे नेतृत्त्व की आवश्यकता है जो भाषण से नहीं वरन् अपने चरित्र से दूसरों को उसी उत्कृष्टता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा दे सकें। जो निःस्वार्थ सेवा परायण तथा यशलोलुपता से दूर रहकर जनजागरण का कार्य पूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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