Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 432
________________ ४२६/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री १०. वैचारिक संघर्षों का अनेकान्तवाद से निराकरण व्यक्तिगत स्वामित्व की सीमा अनावश्यक हिंसा का निषेध आत्मविश्वास और पारस्परिक सौहार्द्र का विकास शान्ति का आध्यात्मिक सिद्धान्त सहअस्तित्त्व की कल्पना को साकर रूप दिया जाय। विज्ञान को अध्यात्म के साथ जोड़ा जाय। आज सारी दुनिया को एक विश्व परिवार बनाने की आवश्यकता है। 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना का विस्तार करना होगा तथा विभिन्न देशों के बीच होने वाले आक्रमणों एवं संघर्षों की संभावना को समाप्त करना होगा। जितनी जनसंख्या सेना में भर्ती है, अस्त्र-शस्त्र तथा सेना सामग्री बनाने में जितना धन खर्च होता है वह सब मानव कल्याण के कार्यों में लगाने लगे तो समस्त संसार में स्वर्गीय सुख शांति की स्थापना में देर न लगे। यह तब ही हो सकता हैं कि जब विज्ञान और अध्यात्म का मेल हो। “विज्ञान को सही प्रगति करना है तो उसे ठीक मार्गदर्शन मिलना चाहिए और वह मार्गदर्शन आत्मज्ञान ही दे सकता है।" (७) अध्यात्मविहीन या मूल्यविहीन राजनीति - युग की महत्त्वपूर्ण समस्या राजनीति ने आज मानव जीवन के सभी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया है। स्वास्थ्य, संस्कृति, भाषा, साहित्य, कला विज्ञान जैसे जनरुचि के विषय भी अब राजनैतिक प्रभाव में आ रहे हैं। शिक्षा, उत्पादन, श्रम व्यवसाय, शासन, न्याय, निर्माण, विज्ञान शिल्प आदि तो पहले से ही उसके नियन्त्रण में है। जनजीवन में अपनी प्रमुखता रखने वाली राजनीति में, शासन तन्त्र में गदि कहीं दोष भ्रष्टाचार आदि रहता है तो उसका दुष्परिणाम सभी को भुगतना पड़ता है। अतः शासनतन्त्र के संचालकों का उच्च चारित्रिक गुणों एवं उच्च आदर्शों से परिपूर्ण होना आवश्यक है। किसी सम्प्रदाय की अवधारणा से राष्ट्र को शासित करना जितना खतरनाक है, उतना ही खतरनाक है धर्मविहीन राजनीति से राष्ट्र को संचालित करना। अध्यात्मविहीन राजनीति मानव जाति के लिए खतरा बनी हुई है। देशगत राजनीति पर विचार किया जाय या अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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