Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 423
________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / ४१७ लेता है और अपनी शेष प्रतिभा एवं क्षमता का लाभ दूसरों को पहुँचाता है। यह उदारता, यह धर्म बुद्धि जिस देश में, जिस समाज में बढ़ेगी वहाँ सुख शांति का अवतरण उसी अनुपात से होगा । इस बात की साक्षी के लिए प्रत्यक्ष उदाहरण एशिया के एक छोटे से देश जापान का, जिसने दो दो महायुद्धों में पूरी तरह तहस नहस हो जाने के बाद भी आज विश्व इतिहास में दीप्तिमान स्थान प्राप्त कर लिया। उसका एक ही कारण हैं वहाँ के चरित्रवान नागरिक, देश भक्त और ईमानदार नागरिक, श्रम और समय को महत्त्व देने वाले समर्पित नागरिक। ये सब बातें अध्यात्म को महत्त्व देने पर ही सम्भव हैं। भौतिक संसाधनों के विकास की अंधी दौड़ में चरित्रविकास आध्यात्मिक विकास की बात सुनाई ही नहीं दे रही है। परंतु यह बहुत आवश्यक है । जैसे सरकार प्राथमिक आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान, शिक्षा और चिकित्सा आदि की चिन्ता करती है वैसे ही उसे इस बात की भी चिंता होनी चाहिए कि राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र कैसे उन्नत हो ? चारित्रिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को बढ़ावा कैसे मिलें। जब तक नागरिकों में आध्यात्मिक निष्ठा विकसित नहीं होगी तब तक अपराधिक प्रवृत्तियों और नशा खोरी से मुक्ति सम्भव नहीं है। उपाध्याय यशोविजयजी ने ज्ञानसार, अध्यात्मसार और अध्यात्मोपनिषद में आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति निष्ठा जगाने का प्रयत्न किया है। मादक द्रव्यों का सेवन एक प्रमुख समस्या अपराध वृत्ति के प्रमुख कारण मादक पदार्थों का सेवन ने एक पृथक और जटिल समस्या का रूप धारण कर लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपराध और मादक वस्तुओं के सेवन की विधियों को जानने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित की। उस समिति का जो प्रतिवेदन है से पता चलता है कि अनेक प्रकार की मादक वस्तुएँ विश्व बाजार में छा गई हैं। अमेरिका जैसे राष्ट्र में जहाँ नागरिक प्राज्ञ है वहाँ राष्ट्रपति बुश के कार्यकाल में किए गए सर्वे में पाया गया दो करोड़ अस्सी लाख लोग विशेष मादक पदार्थों के सेवन में व्यस्त थे। शराब आदि सामान्य नशा नहीं बल्कि हेरोइन, कोकीन आदि तीव्र नशीली चीजों के सेवन के आदि थे। राष्ट्रपति बुश ने इन नशीली चीजों के निषेध की अपील की Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460