Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 421
________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४१५ सत्रह मिनिट में एक शीलहरण, हर सत्रह सेकण्ड में एक लूट खसोट, हर पच्चीस सेकेण्ड में एक चोरी, हर दो मिनिट में एक घातक हमला और प्रत्येक ३१ मिनिट में एक हत्या और हर मिनिट में आठ गम्भीर अपराध हुए यह दर बहुत चौकानें वाली है। भारत में हर वर्ष लगभग ग्यारह लाख व्यक्ति किसी न किसी अपराध में पकड़े जाते हैं।" जिस गति से अपराध बढ़ रहे है निश्चित ही चिन्ताजनक है। बम्बई जैसे बड़े शहरों में बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, मिलें और प्रॉपर्टी डीलर अपने व्यवसाय में माफिया सरगनाओं की मदद लेते हैं। कोई भी समझदार नागरिक समाज के कानून को देश के कानून को तोड़ना नहीं चाहता हैं। समाज की हो या राष्ट्र की व्यवस्था में भंग करना अपराध है किन्तु जब चेतना विकृत बन जाती है, तब व्यक्ति समाज के नियमों को तोड़ता है और अपराधी बनता है। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार आदि-आदि जितने भी अपराध हैं, वे विकत चेतना के परिणाम हैं। अपराधों का मूलभूत कारण तो यही है है कि भौतिक सुख सुविधाओं के साथ-साथ मनुष्य की वासनान्मुख प्रवृत्ति या विलासिता की वृद्धि हुई। इसका निदान मात्र आध्यात्मिक विकास की दृष्टि ही है। दुनिया के हर देश में नशा और आपराधिक प्रवृत्तियों की रोकथाम पर भारी बजट बनते हैं। दो ही मुद्दों पर सबसे ज्यादा खर्च किया जाता है। (१) युद्ध के लिए (२) अपराधों की रोकथाम के लिए। तस्करी रोकने के लिए सरकार कितना प्रयत्न करती है, किन्तु समाचार पत्रों को पढ़े, प्रतिदिन अखबारों में ऐसी खबरें छपती है- आज इतनी हेरोईन पकड़ी गई, इतनी मात्रा में स्मैक पकड़ी गई या इतने हथियार पकड़े गये। यह केवल भारत की ही नहीं पूरे विश्व की समस्या बनी हुई है। डण्डे के बल पर, भय के सहारे अपराध नहीं रोके जा सकते हैं। इन बढ़ते अपराधों के विषय में विचार करने पर यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि इतने पुलिस कर्मचारी होते हुए भी अपराध द्रुत गति से बढ़ रहें है। 'मर्ज बढ़ता गया ज्युं ज्युं दवा की' यह कहावत यहाँ चरितार्थ होती हैं। अपराध रोकने के लिए तो मनुष्य के मन को अध्यात्म की दिशा में मोड़ना आवश्यक हैं, जो उसे ऊँचा उठाये। मनुष्य के सामने जब तक शाश्वत मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा रहती है, तब तक वह अपराधों की ओर उन्मुक्त नहीं होता है। अध्यात्म के आधार पर ही मनुष्य के विचारों को ऊँचा उठाया जा सकता है। उ. यशोविजयजी ने इस बात पर जोर देते हुए कहा है कि "जिसके हृदय में अध्यात्मशास्त्र के अर्थ का तत्त्व परिणमित है उसके हृदय में विषयों और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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