Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 425
________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/४१६ प्रश्न यह उठता है कि नशे को छोड़ा कैसे जाय क्योंकि एक बार जो उसका आदि बन चुका है उसे छोड़ना मुश्किल हो जाता है। नशे को छुड़वाने के लिए आचार्य हेमचन्द्रसूरि, उ. यशोविजयजी आदि ने अपने ग्रन्थों में ध्यान की प्रक्रिया बताई है जो अभी भी प्रासंगिक है। आचार्य महाप्रज्ञ८६ ने इसी ध्यान की प्रक्रिया को वैज्ञानिक ढंग से प्रकाश में लाते हुए संदेश दिया है कि नशा अपराध तब वर्जित हो सकता है जब हमारी चेतना जागृत हो। जागरुक रहने के लिए केवल कान पर ध्यान केन्द्रित करें। इससे चेतना पवित्र बन जाएगी। यह एक सुन्दर उपाय है नशा मुक्ति का। हमारे शरीर का एक प्रमुख अवयव है कान। प्रेक्षा ध्यान में इसे अप्रमाद का केन्द्र कहा जाता है। जागरुकता का सबसे बड़ा केन्द्र है कान। कान हमारे शरीर का महत्त्वपूर्ण चैतन्य केन्द्र (साइकिक सेन्टर) है। नशे की आदत छुड़ाने के लिए इस पर ध्यान का प्रयोग किया जाए तो नशे की आदत स्वतः छूट जाएगी। आचार्य महाप्रज्ञ जी कहते हैं कि “आजकल मानसिक परिवर्तन या मादक वस्तुओं के सेवन की आदत को छुड़ाने के लिए कुछ औषधियों का प्रयोग किया जाता हैं। डॉक्टर भी करते हैं, होमियोपैथी और एक्यूप्रेशर वाले भी करते हैं। एक्यूप्रेशर में कुछ ऐसे प्वाइण्ट हैं जिन पर दबाव डालने से नशे की आदत बदल जाएगी किन्तु यह जागरुकता का प्रयोग इतना सरल है कि न तो दवा की आवश्यकता और न ही चिकित्सक की। बिना किसी की मदद के चेतना का रुपान्तरण हो जाता है। जो चेतना हमारी नाभि के पास है, उसे ऊपर ले जाएं, आनंदकेन्द्र पर, विशुद्धि केन्द्र और अप्रमाद केन्द्र पर लाएं, दर्शन केन्द्र और ज्ञान केन्द्र पर ले जाए। जैसे जैसे चेतना का ऊर्ध्वारोहण होगा वैसे-वैसे अपराध वृत्ति और नशे की आदत समाप्त होगी।"७६७ । इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए अन्य प्रयत्न के साथ-साथ ध्यान साधना का आयोजन बहुत जरुरी है। ७८६. नया मानव नया विश्व - पृष्ठ ५५- आचार्य महाप्रज्ञ ७८७. नया मानव नया विश्व - पृष्ठ नं ५६ - आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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