Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 418
________________ ४१२/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री प्रथम तप उपवास है। अमेरिकी डाक्टर सेल्टन ने आहार चिकित्सा पर जो कार्य किया है वह स्वास्थ्य का सिद्धान्त है उन्होंने कहा आहार से विष जमा होते है। यदि विषों को शरीर से बाहर नहीं निकाला जाएगा तो स्वास्थ्य अस्त व्यस्त हो जाएगा। शरीर के विजातीय पदार्थों के निष्कासन का एक मात्र उपाय है-उपवासा .. उपवास से पाचनतंत्र को विश्राम मिलता है। जीवन का आधार है- पाचन तंत्र। पाचनतंत्र, अमाशय, पक्वाशय, लीवर, तिल्ली आदि ठीक कार्य करते हैं तो स्वास्थ्य बना रहता है। जो उपवास नहीं कर सके तो दूसरा प्रकार का तप ऊनोदरी बताया गया है। ऊनोदरी का अर्थ है भूख से कम खाना। अल्पाहार से शक्ति का संचय होता है। अधिक भोजन और कब्ज का गठबंधन है। इसका कारण है कि भोजन पचता नहीं है, कच्चा रस बनता है। उसका निष्कासन कठिन होता है। उससे अनेक बीमारियां सुस्ती, मन की उदासी, घबराहट आदि उत्पन्न होती है। एगभत्तं च भोयणं -एक वक्त भोजन करो बीमारियां नहीं होगी। वृत्ति संक्षेप यह तपस्या या स्वास्थ्य का तीसरा साधन है। भोजन के द्रव्यों की सीमा निर्धारित करना। चौथा तप है रस परित्याग यह भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि निरंतर गरिष्ठ पदार्थों के, स्निग्ध पदार्थों के सेवन से अनेक बीमारियां उत्पन्न हो जाएगी। मानसिक रोग तथा कामुकता की समस्याएँ उभरेगी। कायक्लेश भी बाह्य तप है जिसका तात्पर्य है काया को साधना, कायसिद्धि। इसके अन्तर्गत जैनागमों में हेमचन्द्राचार्य तथा उ. यशोविजयजी ७८ के ग्रंथों में विभिन्न आसनों की चर्चा मिलती है और आसनों का भी स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है। वर्तमान में फिजियोथेरेपी का जो प्रकल्प मेडिकल साइंस के साथ जुड़ा है, उसका प्रयोग यही है आसन करो, व्यायाम करो, कोई न कोई एक्सरसाइज अवश्य करो अन्यथा बीमारी बढ़ती चली जाएगी। हम आसन के द्वारा अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों को स्वस्थ्य रख सकते है, पाचनतंत्र को स्वस्थ्य रख सकते हैं, मेरुदण्ड को लचीला बनाए रख सकते है। अभ्यन्तर तप में ध्यान और कायोत्सर्ग से अनेक बीमारियों की समस्या हल हो सकती है। आचार्य महाप्रज्ञ ७७७. पर्यंकवीरवज्राब्ज, भद्रदण्डासनानि च उत्कटिका, गोदोहिका, कायोत्सर्गस्तथासनम्।।२४।। -योगशास्त्र ४/१२४-१३१ ७७८. (अ) ज्ञानसार -३०/६-७-८ (ब) अध्यात्मसार -१५/८०-८१-८२ ७७६. प्रेक्षाध्यान और स्वास्थ्य : महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र पृष्ठ ६७- आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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