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इसमें स्पष्ट कहा है कि मुविक्रान्त यवन साकेत, पाचाल और मथुरा को आक्रान्त करके उन्हें अपने अधिकार में लाकर, कुसुमध्वज पाटलिपुत्र तक पहुंच जायेंगे। वहां बड़ी मारामारी होगी और समस्त देश आकुल हो उठेगा । किन्तु युद्धदुर्मद यवन मध्यदेश में टहर न पायेंगे, क्योंकि आपसी स्पर्धा से (अन्योन्य संभावाद) उनके अपने ही मंडल में घनघोर युद्ध छिड़ जायगा, जिसके कारण वे मध्यदेश से हटने पर बाध्य होंगे।
इस वर्णन में यवनों द्वारा साकेत और मथुरा पर आक्रमण करने का स्पष्ट उल्लेख है। वही: लोकप्रसिद्ध घटना व्याकरण के निम्नलिखित दो उदाहरणों में कही गई है
अरुणन्महेन्द्रो मथुराम् । अरुण यवनः साकेतम् । जैनेन्द्रमहावृत्ति के लेखक अभयनन्दि के सामने कोई अति प्राचीन अनुश्रति विद्यमान थी, जहांसे शुंगकाल की ऐतिहासिक घटनाओं के ये उदाहरण उन्होंने लिये । व्याकरण के नियम के अनुसार तो लेखक को अपनी समकालीन घटना के उदाहरण देने चाहिये, जैसा-हेमचन्द्रने ख्याते दृश्ये' सूत्र (पा२।८) पर स्वोपन लघुवृत्ति में 'अरुणन सिद्धराजोऽवन्तीम्' लिखकर किया है। किन्तु अभयनन्दिने इसकी उपेक्षा करके दो टकसाली प्राचीन उदाहरण ही रख लिए । उनके सामने ये इस प्रकार के व्याकरण नियम के लिये मूर्धाभिषिक्त उदाहरण की तरह विधमान थे। अभयनन्दि ने कहां से ये उदाहरण लिये यह तो इस समय विदित नहीं, किन्तु इनमें 'अरुणन्महेन्द्रो मथुराम्' उदाहरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जो किसी प्राचीन टीका में पड़ा रह गया होगा। इस उदाहरण में ऐतिहासिक तथ्य यह है कि यहां यवनराज मीनंडर के पूर्वी अभियान के प्रसंग में मथुरा पर अधिकार कर लेने का उल्लेख है । इसका मूलपाठ मेरी समझमें इस प्रकार था
___ अरुणन्मनन्द्रो मथुराम् । अर्थात् मेनन्द्र ने मथुरा को आक्रान्त किया। मौनंडर के सिक्को पर उसके नाम का भारतीय रूप खरोष्ठी लिपि में मेनन्द्र ही मिलता है। पीछे के किसी लेखक ने 'मेनन्द्र' नाम से परिचित न होने के कारण भ्रम में पड़कर 'महेन्द्र' पाठ बना दिया। मेरी दृष्टि में मूलपाट मेनन्द्र निश्चित ही है। साकेत का यवन आक्रमण और मेनन्द्र द्वारा मधुग का आक्रमण-ये दोनों उदाहरण एक ही कोटि के हैं और यूनानी राजा मौनंडर के पूर्वी भारत पर चढ़ाई के स्मारक हैं।
बहुत कुछ सम्भावना यही है कि अभयनन्दि ने उदाहरणों का जो क्रम रखा है वही क्रम उस मूलप्रन्थ में भी था, जहां उन्होंने अपनी सामग्री ली। उन्हें जैसा मिला, वैसा ही यथावत रख लिया। यदि यह अनुमान सत्य हो तो इससे एक परिणाम और निकटता है । पूर्वी अभियान का नेतृत्व स्वयं यवनराज मेनन्द्र कर रहे थे और मधुरा नक को चढाई में स्वयं आप। मधुरा पर अधिकार कर लेने के बाद सम्भवतः वे स्वयं आगे नहीं बढ़े। आगे साकेत की चदाई में मनाया