Book Title: Yashovijay Smruti Granth
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 437
________________ माने जाते । उन माग्न्याचार्याक समान वैनमत श्री मी वैदिक यज्ञों के विरोध के कारण नातिक नहीं कहा जाना चाहिये। ब्रह्मसूत्र के माध्यमें मगनपाद शंकराचार्य 'पाडगा' मनकी आलोचनामें एक वचन उन करते हैं । निमुकं अनुसार माण्डित्य महर्पिन बाग वैद्रामें परम निःश्रेयसको न प्रात कर. 'याधगत्र' शास्त्रका प्रवचन किया था । इतना बंद विन्द इन परमी 'पाग' मन के माननंबाट नास्तिक नहीं माने जाने इस अवस्थामें जनमन अवेदिक होने के कारण नालिक नहीं हो सकता। आत्मालो सर्वथा नित्य मानने के कारण बंदुवादी दार्शनिक अनेकन्तवाद मिन हो जाने हैं। नैयायिक-बैट्रोपिक हो या सांख्य पातनत्र, वेदान्ती, मीमांजक या कोई भी क्यों न हो । यदि वैदिक है नो बइ आमाको सानिध्य मानना है । बौद्ध और जैन इस विषयमें मिन्न मनु ग्युत हैं। मान्य ऋहन हैं "गपरिणामिनो हि सर्व मात्राः, शेत चिति अत:" अर्थात् मत्र पदार्थ मणक्षगमें परिणामी हैं। केवल चनुन्य बन्छप आत्मा अपरिणामी है। चाँद कहने है सभी भौतिक और अमौनिक पदार्थ गिक है । आमा मी अगिक है। जैन नायिका कहना है-अब पदार्थ अगित मा है. अगिक भी हैं। निस्य भी है अनित्य भी है। जिस प्रकार मुवर्ण ऋटक, कंग, अंगूठी अदिमें अनुमान है परंच ऋक, म्य आदि अनुगन नहीं है. इसी प्रकार बन्नुमात्रमें त्र्य अनुगन म्हता है और पर्याय परिवर्तनल मिन्न हिना है । चेतनतन्त्रमें हप-विषाद, सुख-दुःन्छ आदि पत्र पत्रिनल-मिन भिन्न है और ज्ञान-चैतन्य अंश अनुगत है। जानका हर्ष-विपादादिक साथ मनामद है। अनचान्दवादका अत्यंत विस्तृत निनपण हरिमर आदि आत्रायॉन क्रिया है। जन्दशनकं साथ अन्यानांचा अनेक विषयमें मदद माँ है। इन मुत्र स्तमंडकि ग्हत हुण मी आमन्त्रको स्वीकार के कारण अन्य आत्मवादियांक अनुसार छैन भन्बाद ना प्रगिताका ल्यागारी है। जैन्दर्शन के प्रधानन्या दानिक वाचायोंमें प्राचीन ऋक बार आचार्य प्रधान है ) आचार्य सिद्धमन दिवाकर () मुग्मिलवादी (e) जिनमद्रबिनाया और (e) आचार्य हरिमद्रपि । अपने में इन नली आत्रानि अन्य-लहानकि मात्रा निगण करके बनतत्वचा प्रामाणिकता की प्रऋत्र्यिा है। ग्यारहवीं शताब्दीमें मिथिलाक गंगापायायन व नत्र्यन्यायका प्रयानप प्राशन करके युगान्ता उपस्थिन किया और उसका प्रभाव मारत पानि मान्न दर्शन पर पड़ा दवा हैन, हैन, विशिष्टाद्वैन कि नाननं बांट ममी तिन नअन्यायत्री गेली आश्य कर अपने अपने मनचा निश्पन ऋना आम न्यिा । ग्यान्हवीं सदी के अन्दर हुनबाट बैन और बौदमनक

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