Book Title: Yashovijay Smruti Granth
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 435
________________ अवयवनि सर्वथा भिन्न है। जब हमको पट हिन्बाई देना है नब केवल पटही नहीं दिखाई देता किन्नु तन्नु और पट दोनों ही दिखाई देते हैं. वैशेषिकका भी यही मन्तव्य है। सांन्योंचा मत है 'पट नन्नुओं सर्वथा मिन्न नहीं परंतु तन्तुओं में विद्यमान है। केवल अत्र्य पमे है । अब सहकारी कारण मिळत है नो नो पट उन्नुमि अत्यन्त नप रहता है बही प्रगट हो जाना है। संसाग्में अनेक पदार्थ हैं। वो पाइन्ट प्रगट नहीं होते। पर बादमें सहकारी कारणके योगस प्रगट हो जाते हैं। बस दृश्में दही, दहीमें मक्खन, निमें देल। इसी प्रकार दृत्रमें दहीको न देखकर दहीको दृधम सर्वया अविधमान ऋहना अनुचित है। यदि दूबमें दहीं सर्वथा न हो और बादमें उत्पन्न हो जाना हो तो मिट्टीम भी नहीं उपन्न हो जाना चाहिये । पट मी नन्नुओंमें पहिल अन्यक न्युन रहता है। वाइमें सहवाग कारण योग क होना है। माग्योंका यह मन 'मन्त्राबाद' नाम प्रसिद्ध है। चौद्र नानिनि ऋा-उन्नु और पट है तो मिन, घर नैयायिक मनके समान था मिन नहीं हैं। उन्नुकि समूहको पट ऋइन हैं।उन्नु निल बम विशिष्ट आकर धारण करते हैं तो उनका नाम पट डा बाना है। एक पुल तन्नु पृष्ट पमें हिन्वाई देता है, पर उनका समूह पटके रूपमें दिखाई देने लगता है। बौदाका पक्ष 'संधानवाद' नाम मिट्ट है। जैन नवनानि कहा- नन्नु और पट न सर्वश दिन है आ न मर्वया अभिन्न हैं। चिनु मिन्न और अमिन है। उन्नुम पट मिन है इसाय नन्नु और पका संवत्र है। यदि पट या नन्तुति अमिन हो तो उनका संबंध नहीं हो सका। जिस प्रकार नन्तु अपने बन्यो अमिन है इसञ्यि उनका अपन बन्पकं साथ अंई मंत्र नहीं ग्रीन हंन्ता । पटकी पिंड उसका नन्दुक साथ रह है। परंतु उन्नुओंत्री दृष्टिले पट उन्नुम्य है। अत उसका मेद नहीं हैं। जैन परिमापति अनुसार उन्नु और, पट हव्या ई .अमिन-ड और पयंत्री राष्ट्रिय मिन-अंनत्र है। ममन्न जेन्दगन अनान्टबाद पर.अधिन है। अंन्तवादका प्रतिपादन बैन आगनप्रन्थों में मुशिल करने है। ठमका हिन्ना बनमक वेदान्द्रा और दिगवा देना संप्रदायकि. आत्रानि अपने अपने प्रन्याम च्यिा है। चनावर संप्रदायक मन्त्रानि, मिदन दिवा जिनन्द्रगणि, मलबादी, हरिमाबुगि, बहादेवमुनि, इनचन्द्राचार्य, आत्र्याय यश विजयत्री, आदिन इमचा विस्तृन निकपण छिया है। दिगम्बर संप्रदायक यन्नमद्र, पुअपार, मयचंच, विशानंद त्रामी, प्रमाइन्ट, शान्दिन अपने ग्रन्थों में उसका विस्तार त्रिया है। में समझना हूँ-प्राचीन श्रालंक *दिक और अवैदिक अंक वार्षिक अंबान्तवादका सोलार ऋग्ने थे। गौटनीय न्यायदान ऋथै अन्यायमें कुछ.गन्ना मन देन उनका दाहुन यिा है। न्यायदानके अनुसार कुछ पानाही मुब बनुको अमाव-स्त्रलए मानने या

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