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. एहवू जग गुरे उपदिस्यां छतां तत्त्व गेवषिए परमेश्वरथी फिरी प्रश्न पूछ्यौ स्वामी महाक्रियावान् देखी अमे इम जा" ए कहैं ते साचूं । नै तेनै देख्यां अमे जाणू ए साधु नथी, मूर्तवान् जैन दर्शन छै, नै आप फरमायौ तेहवा तो कहयो न मानवौ, तेहवा ने जैन दर्शनी न कहिवाया तो कुरमावौ नी स्वामी जैनी के कहियै ! एह पूछ्या परमेश्वर नूं वचन । जैन नूं भाव छतां पण सर्वनाम सरवे ग्यानि में छै कथं ! जैन तो पारणामिक धर्म छे ने परणाम नै नाम शुद्ध परणाम नै होज शिव साधन नाम मुक्ति नूं कारण सरदहियै सरदहिणाराखीजै । एतले " शुद्ध भाव एव मुक्ति कारणं स्यात् " यथा
. -बोहा:नमुक्कारली व्रत नहीं, करतौ क्रूर आहार । भाव शुद्ध ते सिद्ध है, कूरगडू अणगार ॥१॥ भाव शुद्धता जौ अर्हतो कहा किया को चार
द्रढ पहार मुगतै गयौ, हत्या कीनी च्यार ॥२॥ [ एषा मदुक्तिः ] फिरी जगतगुरु प्रश्न पूछवा वाला आत्मार्थी ने जैन दर्शन में अत्यंत परिपाक करवा कारणे कहै तमे मार मेष ओयो मुंहपोती देखीने शंका नाम मन संबंधी एहवौ भरम न कीजै नाम न कीज्यो जे परमेश्वरनूं ए मेष छे ! फिरी परमेश्वरे भाषो-पढमे पोरसिज्झायं बीए झाण तीए गोयरिकालं चउत्थे पुणरवि सिज्झायं, रात्रै पढमे पोरसि सिज्जाय, बीए झाणं, तीए सयण कालं, चउत्ये पुणरविसिज्झायं ए आचरणा जोइ नै फिरी महातपस्वी, बाह्येन्द्रिय दमनी जोई नै ते. विषे मुनिनी शंका न कीज्यो एतले तेजेनै देखी मन में इम न जाणस्यो परमेश्वरे सिद्धान्तो में भाख्या तेहवा मुनि ए छे तेथी तेहवाओ नै देखी नै तेमोथी उदासी भाव रहिये । एतेले तेजो ने देखी नै सराग भावे न रहिये नाम न प्रवर्तीजै । इम न जाणीजै । शुद्ध आत्म स्वरूपानुजाई जैन दर्शन नै ए प्रवर्ने छ । एऊनों आसेवना थी हूं शुद्ध जैन दर्शन पामीस एहवू न ते जाणवू । किम ते महा मायावी छता भोळा लोक तेही ज थया मृगने तेउ नै पोताना मतरूप पासमा नांखवा कारण वंचक क्रिया प्रवर्ती रह्या छ । तेथी मूली नै तेहवाओ थी सरागी न रहिये । अक्रियावान थी क्रियावान महा मायावी है। तेथी तेओथी सरागी पणे प्रवत्यो कैत तृकाल पेट में एहवा फलिया घाली दे तेथी जैन धर्म थी भृष्ट थाय ।
ज्ञान सकल नय साधन साध्यौ, किरिया ज्ञान की दासी।
किरिया करत घरत है ममता, एही गले में फासी ॥ ५० जे० ॥७॥ फिरी कोई कहिस्यै अवचक क्रियाकारी हुवै तो पिण नाणी सासोसास एक में जे कर्मनी निर्जरा करै तेतला कर्म दलिया नरकनी तीन वेदना सहितो नारकी एक कोड़ वरस में निर्जरायै । तेथी ज्ञान सकल नयज्ञान नै समस्त नाम साते ही नयरूप साधने कारण साध्यौ एतलै साध्य साधन भावै ज्ञान नै सर्व नये साधी नै, जोयो नाम सात नय रूप साधन कारण ज्ञानरूप कार्य सिद्ध कीजै