Book Title: Vir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय पं. श्री कल्याणविजयजी गणिवर्य विरचित वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना ग्रंथ प्रकाशित करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है । पं. श्री कल्याणविजयजी जैन दर्शन, आगम, इतिहास, शिल्प एवं स्थापत्य के मर्मज्ञ विद्वान् थे । उन्होंने सभी जैन आगमों, प्रबन्धों एवं टीका ग्रंथों का सूक्ष्म अवलोकन करके प्रस्तुत ग्रंथ तैयार किया था । प्रस्तुत ग्रंथ वाराणसी स्थित नागरी प्रचारिणी सभा ने कई सालों पूर्व प्रकाशित किया था । यह ग्रंथ जैन इतिहास के लिए एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ था किन्तु विगत कई सालों से वह अप्राप्य था । अतः सेन्टर द्वारा प्रकाशित करने का विचार कर रहे थे तब पू. आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरिजी म. से मिलना हुआ । उन्होंने मन की ही बात कही । मैंने पूज्य श्री का आदेश ग्रहण किया और उनके आशीर्वाद से ही प्रस्तुत ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है । अतः हम उनके ऋणी हैं । हमें आशा है कि प्रस्तुत ग्रंथ न केवल जैन इतिहासकारों को ही उपयोगी सिद्ध होगा किन्तु भारतीय संस्कृति के इतिहास का अभ्यास करने वाले सभी जिज्ञासुओं को उपयोगी होगा । ता. १२-६-२००० जितेन्द्र बी. शाह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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