Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02 Author(s): Siddharshi Gani Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay View full book textPage 7
________________ परन्तु 'श्रीचन्द्र' ने वस्त्र और धन लेने से इन्कार कर दिया तब शिवमती ने अपनी यादगार रूप में एक अंगूठी जबरदस्ती भेंट की / बाद में सूक्ष्म दृष्टि वाले 'श्रीचन्द्र' चोर के पद चिन्हों के अनुसार गुफा के पास एक वृक्ष पर बैठ गये। इतने में ही कुछ मनुष्यों और उस चोर को आते हुए देखा। चोर ने आकर 'श्रीचन्द्र से उसका नाम पूछा। 'श्रीचन्द्र' ने कहा 'मेरा नाम लक्ष्मीचन्द है।' चोर ने कहा 'मेरा नाम रत्नाकर है / ' 'श्रीचन्द्र' ने मन में ऐसा सोचा कि अगर चोर कहे कि मैं गुफा के द्वार को खोलू फिर पूछने लगा कि हे मित्र ! तुम आज चिंतातुर क्यों दिखाई दे रहे हो ? चोर कुछ सोच कर कहने लगा था इतने में ही दुसरे और पांच मुसाफिर आकर उसी वृक्ष की छाया में बैठकर परस्पर बातचीत करने लगे। . सूक्ष्म बुद्धि से यह जानकर कि चोर के सिर पर जो पगड़ी है उसके पल्ले पर अदृश्यकारिणी गोली बंधी हुई है इसलिये 'श्रीचन्द्र' ने पांचों मनुष्यों की साक्षी में शतं लगाई कि दोनों की पगड़ी शिला के नीचे रख दें जो अपने दोनों में से शिला के नीचे से पगड़ी निकालेगा उसे पगड़ियों के पल्लों में जो कुछ बंधा हुआ है सब कुछ मिलेगा / धन के लालच में चोर ने शर्त स्वीकार कर ली मोर पगड़ी को निकालने के लिये भरसक प्रयत्न किया लेकिन शिला टस से मस नहीं हुई। / / बाद में श्रीचन्द्र ने अपनी लीला से दोनों पगड़ियों को निकालं लिया और जीत की खुशी के उपलक्ष में आम लेकर थोड़ा 2 सबको बांट दिया। चोर सोचने लगा कि 'यह लक्ष्मीचंद तो गुफा के द्वार को P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TrustPage Navigation
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