Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Bhadrankarsuri
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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શ્રી જીવાજીવવિભક્તિ અધ્યયન-૩૬
૪૦૫ पुढवी असक्करा वालुगा य, उवले सिलाय कोणसे । अयतंबतउअसीसगरुप्पमुवण्णे अ वइरेभ. ॥७३॥ हरिपाले हिंगुबाए, मनोसिला सासगंजणा पवाले। अब्भपडलब्भवालुअ, बायरकाए मणिविहाणा ॥७॥ गोमेज्जए अरुअगे, अके फलिहे अलोहिअक्खे । मरगयमसारगल्ले, भुअमोअग इंदनीले अ॥७५।। चंदण गेरुयहंसगब्भपुलए सोगंधिए अबोधवे। चंदप्पभ वेरुलिए, जलकते सूरकंते अ ॥७६॥
॥ सप्तभिःकुलकम् ।। द्विविधाः पृथिवीजीवास्तु, सूक्ष्माः बादरास्तथा पर्याप्तमपर्याप्ता, एवमेते द्विधाः पुनः
॥७०॥ बादराः ये तु पर्याप्ताः द्विविधास्ते व्याख्याताः श्लक्ष्णाः खराश्च बोद्धव्या, अलक्ष्णास्सप्तविधाः ॥७१॥ कृष्णा नीला श्च रुधिराश्च. हारिद्रा शुक्लास्तथा पाण्डुः पनकमृत्तिका, खरा पत्रिंशद्विधाः ।
॥७२॥ पृथिवी च शर्करा वालुका चोपलो शिला च लवणमुषः । अयस्ताम्रपुकसीसकरूप्य सुवर्णानि च वज्र च ॥७३॥ हरितालो हिंगुलको, मनःशिला सासोऽजनं प्रवालम् । अभ्रपटलमभ्रवालुका, बादरकाये मणिविधानानि ॥७४॥ गोमेदक श्च रुचकोऽङ्कस्स्फटिकश्च लोहिताक्षश्च । मरकतो मसारगल्लो, भुजमोचक ईन्द्रनील श्च चन्दनो गेरुगो हंसगर्भः, पुलकः सौगन्धिकश्च बोद्धव्यः । चन्द्रप्रभो वैडुर्यो, जलकान्तः सूरकान्त श्च
॥ सप्तभिर्कुलकम् ॥
॥७६॥

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