Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02 Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 9
________________ छब्बीसवां अध्ययन समाचा इस अध्ययन में संयमी साधक की आचार संहिता का वर्णन किया गया है। यानी दिन और रात के २४ घण्टे में संयमी साधक को कौन-कौनसी क्रिया कब करनी चाहिए। जिससे उसकी साधना पुष्ट हो। इस अध्ययन में वर्णित समाचारी की सम्यक् आराधना करने वाला साधक आराधक होकर शीघ्र ही संसार समुद्र को पार कर लेता है। सत्ताईसवां अध्ययन खलुंकीय इस अध्ययन में विनय और अनुशासन को संयमी जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बतलाया है। जो शिष्य अविनीत और अनुशासन हीन होते हैं, वे आगे चलकर स्वच्छन्द - उच्छृंखल बनकर संयम से भ्रष्ट तक हो जाते हैं। गर्गाचार्य एक महान् आचार्य होने के साथ-साथ शास्त्र - विशारद और संयम के सभी गुणों से सम्पन्न थे। किन्तु उनके सभी शिष्य अविनीत, उद्दण्ड एवं आलसी थे। आचार्यश्री के बार-बार समझानें पर भी नहीं माने तो उन्होंने अपनी आराधना के लिए शिष्यों को छोड़कर अकेले ही विचरण करने लगे। वास्तव में जब आत्मार्थी साधक को अपनी संयम समाधि भंग होती हुई नजर आती हो तो उसे अपने शिष्यों का मोह त्याग कर एकान्त साधना में लीन हो जाना चाहिए । - यह प्रेरणा इस अध्ययन से मिलती है। - - अट्ठाईसवां अध्ययन मोक्ष मार्ग गति - संयमी साधक का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति होता है। उस साध्य की प्राप्ति के लिए किन-किन साधनों का आलम्बन उसे लेना आवश्यक होता है, इसका निरूपण इस अध्ययन में किया गया है। इस अध्ययन में मोक्ष प्राप्ति के चार मुख्य साधन बतलाये गये हैं सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप । इन साधनों की युगपद् साधना-आराधना से साधक अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। Jain Education International [8] - उनतीसवाँ अध्ययन सम्यवत्व पराक्रम पराक्रम का अर्थ है शक्ति सामर्थ्य या क्षमता। जीव ने अपनी शक्ति सामर्थ्य का उपयोग तो चारों गतियों में अनन्त बार • किया । किन्तु वह सब अज्ञान दशा में उलटा पुरुषार्थ ही किया। जिससे वह अपने लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त नहीं कर सका। इस अध्ययन में ७३ बोलों के माध्यम से सम्यक् पुरुषार्थ का स्वरूप बतलाया गया है। एक-एक सूत्र आत्मार्थी साधक के लिए अतीव प्रेरक है। इन तलस्पर्शी सूत्रों की यथार्थ साधना साधक को अपने अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करा सकती है। ww - तीसवां अध्ययन तपोमार्ग - सम्यक्तप की आराधना से साधक करोड़ भवों के संचित कर्मों को क्षय कर सकता है। लेकिन तप कैसा हो? इसके लिए आगम में बतलाया - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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