Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन धापीदेवी (धर्म-पत्नी श्री रामलालजी गोलछा) की स्मृति में प्रदत्त निधि से हुआ है। एतदर्थ इस अनुकरणीय अनुदान के लिए गोलछा-परिवार हार्दिक धन्यवाद का पात्र है। . ___ आगम-साहित्य प्रकाशन समिति की ओर से उक्त निधि से होने वाले प्रकाशन-कार्य की देख-रेख के लिए निम्न सज्जनों की एक उपसमिति गठित की गई है : (1) श्रीमान् हुलासचन्दजी गोलछा (2) " मोहनलालजी बाँठिया (3) " श्रीचन्द रामपुरिया (4) " गोपीचन्दजी चौपड़ा (5) " केवलचन्दजी नाहटा सर्वश्री श्रीचन्द रामपुरिया एवं केवलचन्दजी नाहटा उक्त उपसमिति के संयोजक चुने गए हैं। आगम-साहित्य प्रकाशन-कार्य महासभा के अन्तर्गत गठित आगम-साहित्य प्रकाशन समिति का प्रकाशन-कार्य ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रहा है, त्यों-त्यों हृदय में आनन्द का पारावार नहीं। मैं तो अपने जीवन को एक साध ही पूरी होते देख रहा हूँ। इस अवसर पर मैं अपने अनन्य बन्धु और साथी सर्व श्री गोविन्दरामजी सरावगी, मोहनलालजी बांठिया एवं खेमचन्दजी सेठिया को उनकी मुक्त सेवाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। आभार आचार्य श्री की सुदीर्घ-दृष्टि अत्यन्त भेदिनी है। जहाँ एक ओर जन-मानस की आध्यात्मिक और नैतिक चेतना की जागृति के व्यापक नैतिक आन्दोलनों में उनके अमूल्य जीवन-क्षण लग रहे है, वहाँ दूसरी ओर आगम-साहित्य-गत जैन-संस्कृति के मूल-सन्देश को जन-व्यापी बनाने का उनका उपक्रम भी अनन्य और स्तुत्य है। जैन-आगमों को अभिलषित रूप में भारतीय एवं विदेशी विद्वानों के सम्मुख ला देने की आकांक्षा में वाचना प्रमुख के रूप में आचार्य श्री तुलसी ने जो अथक परिश्रम अपने कन्धों पर लिया है उसके लिए जैनी ही नहीं अपितु सारी भारतीय जनता उनके प्रति कृतज्ञ रहेगी। निकाय सचिव मुनि श्री नथमलजी का सम्पादन-कार्य एवं तेरापन्थ संघ के अन्य विद्वान् मुनि-वृन्द के सक्रिय सहयोग भी वस्तुतः अभिनन्दनीय हैं। हम आचार्य श्री और उनके साधु-परिवार के प्रति इस जनहितकारी पवित्र प्रवृत्ति के लिए नतमस्तक हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा श्रीचन्द रामपुरिया 3, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट, कलकत्ता-१ संयोजक 14 जनवरी, 1968 आगम-साहित्य प्रकाशन समिति