Book Title: Updesh Ratnakara
Author(s): Munisundarsuri, Amrutlal
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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सीइ लक्खाई॥१॥जक्खसहस्सा १६००० सोलस, मडंब २४००० कब्बड २४००० सहस्स चउवीसा। रयणायर १६००० दीवंतर १६००० खेडग १६००० सोलस सहस्साणं ॥२॥ अडयालीस सहस्सा, दोणमुहा तह य चउसहि सहस्सा । कल्लाण ६४००० महाकल्लाणकारया ६४००० तह य रमणीओ ६४००० ॥ ३ ॥ कमसो चउदस छप्पन्नया उ छत्तीस सया उ बत्तीसा। संबाह १४००० पिंडगणिआ ५६००० वेलाउल ३६००० नाडयसहस्सा ३२०००॥४॥ गोउलकोडी १हलकोडी तिन्नि दस कोडि धयपडागाओ।छन्नवइ कोडि पाइक्क गाम तह वसुह छ खंडा॥५॥ नवनवई नवई छप्पन्न बावत्तरी सहस्साणं । देसंतर ९९००० हेमागर ९०००० अंतरदीवाओ ५६००० पन्नत्ती ७२०००॥६॥ तिन्नि उ कोडि निओगा अट्ठारस कोडि तुरय सामन्ना । भोअणहाणतिलक्खं, पणलक्खं दीवधारगया ॥७॥ आउजं तिअ लक्खा, सरीरमद्दाणि कोडि बत्तीसा । छत्तीस कोडि आहरण-धारया सूपकार तहा ॥८॥सिन्नसंवाहगाओ, कोडि बत्तीस एरिसा रिद्धी। भुंजेइ चक्कवट्टी, भरहेसरसगरनिवपमुहो॥९॥ इति । त्रिखण्डाधिपत्यसप्तरत्नषोडशसहस्रमुकुटधरनृपादिऋद्धिश्च वासुदेवानां, देवादिसाहाय्यकल्पद्रुमचिन्तामण्यादिप्राप्तिस्वर्णपुरुषसिद्ध्यादिजन्मा महर्द्धिः परेषां च यथार्हमवगन्तव्येति । "मणचिंतिअंसुरा जं ति" यच्च सुखं मनश्चिन्तितं प्राग्दर्शितदिङमात्रेभ्यो युगलिसुखेभ्योऽनन्तगुणं वचनगोचरातीतं सुराः-सौधर्मादिसुरलोकनिवासिनो देवा भुञ्जते तदपि सर्व धर्मादेवेति तृतीयोक्तिघटना।
निशम्य धर्मस्य फलं विशाल-मित्थं स्फुटं युग्मिनरादिकेषु ।
यतध्वमस्मिन् यदि हि स्पृहा वः, सर्वाङ्करद्विजयश्रियां ज्ञाः!॥१॥ ला ॥इति तपाश्री मुनिसुन्दरसूरिविरचिते श्रीउपदेशरत्नाकरे मध्याधिकारे प्रकीर्णकोपदेशनाम्नि तुर्येऽशे प्रथमस्तरङ्गः॥
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