Book Title: Tulsi Prajna 2006 01 Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ दृष्टिकोण का परिवर्तन आकांक्षा इतनी तीव्र बनी रहती है कि उसका अन्त ही नहीं आता, इसका मूल कारण है दृष्टिकोण का अपरिवर्तन। दृष्टिकोण का परिवर्तन होना अत्यन्त । आवश्यक है और इसके लिए आध्यात्मिक विकास बहुत जरूरी है आज समाज व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी है कि इसमें पदार्थ व्यवस्था अर्थात् उत्पादन, वितरण और विनिमय पर बहुत ध्यान दिया गया किन्तु उत्पादक, वितरक और विनिमयिक पर बहुत कम ध्यान दिया गया। इसीलिये इतनी विषमतायें और अव्यवस्थायें उत्पन्न हुई हैं जब तक व्यक्ति को बदलने की बात प्राप्त नहीं होती तब तक समस्याएं सुलझती नहीं है। जब तक चेतना जो करता है, करने वाला है, वह नहीं बदलेगा तो प्रणालियों के परिवर्तन से कुछ नहीं बनेगा। इसलिये जरूरी है दृष्टिकोण का परिवर्तन। - अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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