Book Title: Tulsi Prajna 1996 10 Author(s): Parmeshwar Solanki Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ मिस्र से निकले थे, दमिश्क से जीसस् टर्की में निसिविस आया। वहां से उत्तर पश्चिम में एण्डपोलिस और पसिया होता हुआ वह १६ वर्ष बाद कश्मीर पहुंचा, जहां उसे यज् असफ कहा गया । यज् असफ का शब्दार्थ होता है पवित्र हुए लोगों का नेता । ऐसा उसे इसलिए कहा गया क्योंकि वह अपवित्र लोगों को पवित्र बनाता था । इसी प्रकार मूसा (Moses) के नेतृत्व में जो कबीले गोहेन ( GOSHEN ) में रहे। वहां से सिनाय पर्वत पहुंचे जो उसी के नाम पर जोबेलमूसा कहा जाता है । फिर कडेस ( Oasis of kades) में रहे जहां मूसा को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हुआ और उसने अपना अन्तिम संदेश देकर मृत्यु को वरण किया। वहां लिखा है कि मूसा मैदानी क्षेत्र (Plains of Moab ) से पर्वतीय क्षेत्र (Mountain of Nebo) में गया और पिस्गा (PISGA) के शिखर पर पहुंचा जो बेथपोर (Beth-peor ) के सामने था । बाइबिल में मूसा की कब्र की पहचान के पांच निशान बताए गए हैं - (1) The plains of Moab, ( 2 ) Mount of Nebo in the Abarin Mountains, (3) The Peak of Mount PISGA, ( 4 ) Beth Peor और (5) Heshbon । इन पांचों निशानों में Beth Peor का शब्दार्थ है, वह स्थान जो खुलता है ( A place that opens) । पर्सियन में झेलम नदी को बेहत ( Behat ) कहते हैं और झेलम का मैदान (Plain of lake wular) जहां शुरू होता है वहां आज भी बंदीपुर (Beth Peor) स्थित है । यह श्रीनगर से ८० किलोमीटर है और बंदीपुर से १८ किलोमीटर उत्तर पूर्व को गांव हस्ब या हस्बल है । पिसंग ( Pisga) इससे उत्तर में है और वहां से उत्तर पूर्व में केवल दो किलोमीटर पर अहं शरीफ है जहां का पानी नीरोगता देता है । इस प्रकार ये सारे निशान श्रीनगर से बाएं बाजू झेलम के किनारे पर स्थित हैं । इसलिए सांग बीबी ( इस्लामी संत) के पास माउन्ट नीबो के नीचे बना समाधिस्थल : Muquam-i- Musa ही मूसा का समाधि स्थल है। का पत्थर) और झेलम और सिंध के संगम पर शादीपुर में कार्नर स्टोन है । वहीं सांग ए मूसा ( मूसा कोह्न - ए - मूसा - मूसा का अर्थात् मूसा पहले कश्मीर पहुंचा और उसके बाद ईशामसीह भी यहीं आकर रहा और दिवंगत हुआ । - परमेश्वर सोलंकी ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.orgPage Navigation
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