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आचार्य कुन्दकुन्द के सम्पूर्ण वाङ्मय को आधार बनाकर सूक्त वचन, दृष्टान्त, सामाजिक परिप्रेक्ष्य आदि से सम्बन्धित एक विस्तृत परिचय, दार्शनिक चिन्तन के साथ प्रस्तुत किया जाय तो पाश्चात्य एवं भारतीय दार्शनिक परम्परा को एक नई दिशा प्राप्त हो सकती है। कुन्दकुन्द के चिन्तन में ज्ञान-विज्ञान का मन्थन है, जिसे विलोए बिना सर्वोदय तीर्थ की स्थापना और राष्ट्रीय भावना को बल नहीं मिल सकता है।
-(डॉ. उदयचन्द्र जैन)
पिऊ कुञ्ज ३, अरविंदनगर, उदयपुर-३१३००१
(राजस्थान)
२.४
तुलसी प्रज्ञा
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