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" णमोकार - महामंत्र" की पांच पंक्तियों में " णमो सिद्धाणं" द्वितीय पंक्ति है ।
महामंत्र की प्रत्येक पंक्ति अपने आप में एक पद है । पद का संबंध मात्राओं से होता है । द्वितीय पद (पंक्ति) पांच मात्राओं का है। प्रथम, तृतीय और चतुर्थ पद सात-सात मात्राओं के तथा अन्तिम पद नौ मात्राओं का है । इस प्रकार महामंत्र में कुल ३५ मात्राएं हैं ।
साधारण दृष्टि से देखने पर उक्त पदों से कोई महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिलती है । केवल पांच महान् शक्तियों को नमन करने के भाव हैं । नमन की क्रिया प्रभावशाली है अगर नमन समर्पित भाव से किया गया हो ।
महामंत्र प्रत्येक पद (पंक्ति) में विशिष्ट शक्ति एवं गुण हैं । द्वितीय पद के पांचों अक्षर साधक के हृदय में पंच-तंत्री वीणा के तारों की भांति संकृत होते रहते हैं । इन अक्षरों का सही प्रकार से लयबद्ध उच्चारण करने पर हृदय में स्वयम्भू - नाद की उत्पत्ति होती है, जिसका संबंध सुमधुर-नाद अर्थात् सांगीतिक स्वरों से है । और स्वर की संवादात्मक ध्वनियां नाद - सौन्दर्य को प्रकट करती है, जिसका ज्ञान साधक को नहीं होता पर वह उक्त नाद-तरंगों की लय में लीन होकर आनन्द प्राप्त करता रहता है । आगे इसी विषय पर प्रकाश डाला जा रहा है ।
शब्द
णमो सिद्धाणं : नाव सौन्दर्य
जयचन्द्र शर्मा
शब्द की उत्पति 'नाद" से हुई है और नाद की उत्पत्ति वायु और अग्नि के संयोग से । "संगीत रत्नाकर" ग्रंथकार लिखते हैं
(सांसारिक व्यक्तियों के लिए)
नाद के विषय में प्राचीन एवं आधुनिक विद्वानों ने बहुत कुछ लिखा है । संसार को नादाधीन कहा है, इसीलिये नाद को ब्रह्म कहा गया है ।
नाद
सुमधुर
खण्ड २२, अंक ३
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नकारं प्राणनामानं दकारमनलं विदुः । जातः प्राणाग्निसंयोगात्तेन नादोऽभिधीयते ॥
आहन
अमधुर
अनाहन
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समस्त
( योगियों के लिए)
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