________________
सौन्दर्य को प्रकट करती हैं। • चतुर्थ अक्षर धा:-हिन्दी वर्णमाला में "" अक्षर १९वां है। १+९=१०
का अंक संख्या एक की जानकारी कराती है। एक का अर्थ है परमात्मा एक है। यही औंकार है। सर्व शक्तिमान है। संगीत कला में धा की मधुर ध्वनि का विशिष्ट महत्त्व है। सप्त स्वरों में धैवत वादी स्वर वाले रागों के गाने का समय सुबह का है। ताल और नृत्य रचनाओं को प्रभावी बनाने का कार्य करने वाला 'धा' अक्षर अति महत्त्वपूर्ण माना गया है । अत: 'धा'
की ध्वनि नाद-सौन्दर्य को प्रकट करने में निरन्तर सहयोग करती है। ० पांचवां अक्षर ‘णं'-'ण' अक्षर पर बिन्दु लगाने से ण से णं की ध्वनि में
काफी अन्तर आ जाता हैं। 'ण' की ध्वनि में संगीत कला के तृतीय स्वर गंधार का निवास है। 'णं' अक्षर को उच्चारित करने पर स्वयंभू-नाद के
रूप में गंधार स्वर का बोध होता है।
इस प्रकार "णमो सिद्धाणं" पद के पांचों अक्षरों में नाद-सौदर्य को प्रकट करने वाले संगीत कला के पांच स्वर महत्त्वपूर्ण हैं। इन स्वरों का क्रम हैं- सा, ग, म, ध, नि । इन पंच-स्वरों द्वारा अनेक रागों की जानकारी मिलती है। जैसे-ग, ध, नि कोमल स्वरों से मालकोश, तीव्र होने पर 'हिण्डोल' सभी शुद्ध स्वरों से । भिन्न षड्ज राग बनता है।
पांच स्वरों के राग को ओडव-जाति का राग कहते हैं। मूर्च्छना पद्धति के माध्यम से जब औडव-चक्र के द्वारा पांच नये रागों की उत्पत्ति होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि 'णमो सिद्धाणं' पद अपने आप में एक राग है, जिसकी लयबद्ध साधना करने पर नाद-सौन्दर्य का उस स्थिति में बोध होता है, जब साधक की साधना "सिद्धों" के स्तर तक पहुंच जाती है । संदर्भ : १. संगीत रत्नाकर २. संगीत पारिजात ३. नाद-रूप ४. नाद योग ५. ॐ नाद ब्रह्म ६. भारतीय श्रुति स्वर राग शास्त्र
- (डा० जयचन्द्र शर्मा)
निदेशक श्री संगीत भारती, बीकानेर-३३४००१
खण्ड २२, अंक ३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org