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विधिवत्पाणिग्राहकः पतिः। नागकुमार अनेक कन्याओं के साथ विधिपूर्वक पाणिग्रहण संस्कार करता है तथा उनके यौवन का प्रभूत भोग करता है । कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं(१) कश्मीर की राजकुमारी के साथ विवाह
विहिओ सुयणाणं उच्छाहो दुण्डं पुरणाहेण विवाहो।' अहिणवमुग्गमणोहरवयणा बहुलायण्णा दिण्णा कण्णा ।
णायकुमारहो संगें लग्गा अज्झासा इच्छियसंसग्गा । (२) गिरिशिखर नामक नगर के वनराज की पुत्री लक्ष्मीमति के साथ पाणिग्रहण
अण्णहिं दिणे करिवरगइ परिणाविय लच्छीमइ ।'
सो वम्महु सा रइ सई किं वण्णमि हडं जडकइ ।। (३) उज्जैनी की राजकुमारी तिलकसुन्दरी के साथ विवाह--
तो दिण्ण कण्ण जाइउ विवाहु सिरिसंगे णं तुट्ठउ विकाहु ।
थिउ रामई सहुं रामाहिरामु णावई सीयई सहुँ देउ रामु ।' कामप्रवृत्ति के आधार पर नायक की चार श्रेणियां स्वीकृत हैं - अनुकूल दक्षिण, शठ और धृष्ठ । नायकुमार दक्षिण-नायक के अन्तर्गत परिगणित किया जा सकता है। दक्षिण-नायक का स्वरूप है
दक्षिण नायक अनेक नायिकाओं का स्वामी होता है तथा सबसे अनुकूल व्यवहार करता है । कविराज विश्वनाथ ने लिखा है
एषु त्वनेकमहिलासु समरागो दक्षिणः कथितः । भानुदत्त ने रसमंजरी में निर्देश किया है
___सकलनायिकाविषयकसमसहजानुरागो दक्षिणः ।' अर्थात् सभी नायिकाओं के साथ समान रूप से व्यवहार करने वाला दक्षिण नायक है। नागकुमार अनेक राजकुमारियों के साथ विवाह करता है लेकिन सबके साथ समान व्यवहार करता है । जिन कुमारी युवतियों के साथ वह विवाह करता है उनमें कश्मीर की राजकुमारी [५.१०], लक्ष्मीमति [६.९], मामा की पुत्री [७/९], उज्जैन की राजकुमारी [८.८], दन्तीपुर की राजकुमारी [९.१] तथा अन्य राजकुमारियां [८.१६] आदि प्रमुख हैं । सबके साथ नागकुमार सम्मान जनक व्यवहार करता है ।
शील की दृष्टि से नायक के चार भेद स्वीकृत हैं-धीरोदात्त, धीरललित धीरोद्धत और धीरप्रशांत । नागकुमार धीरोदात्त नायक है । धीरोदात्त का लक्षण
महासत्त्वोऽतिगंभीरः क्षमावानविकत्थनः ।
स्थिरो निगुढाहंकारो धीरोदात्तो दृढव्रत ।' अर्थात् धीरोदात्त पराक्रमशाली, गंभीर, क्षमावान्, आत्मश्लाधा से रहित, स्थिर, निगूढाहंकार और दृढ़वती होता है। नागकुमार में ये सारे गुण प्रभूत मात्रा में उपलब्ध हैं। वह अत्यन्त पराक्रमशाली है। अपने शौर्य, पराक्रम, बल एवं वीर्य
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तुलसी प्रशा
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